Thursday - 11 January 2024 - 10:40 AM

संसदीय समिति की रिपोर्ट में हुआ खुलासा, कोरोना के इलाज के लिए निजी…

जुबिली न्यूज डेस्क

देश में जब कोरोना संक्रमण के मामले बढऩे लगे थे तो प्राइवेट अस्पताल मरीजों से कोरोना के इलाज के नाम पर मनमानी पैसे वसूल रहे थे। इसको लेकर काफी हंगामा भी मचा था। कुछ राज्य सरकारों ने प्राइवेट अस्पतालों के लिए गाइडलाइन भी जारी किया था जिसमें कोरोना के इलाज के लिए शुल्क निर्धारित कर दिया था।

शनिवार को एक संसदीय समिति की रिपोर्ट में भी इस बात की पुष्टि की गई है। स्वास्थ्य संबंधी स्थायी संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 के बढ़ते मामलों के बीच सरकारी अस्पतालों में बिस्तरों की कमी और इस महामारी के इलाज के लिए विशिष्ट दिशानिर्देशों के अभाव में निजी अस्पतालों ने काफी बढ़ा-चढ़ाकर पैसे लिए।

इसके साथ ही समिति ने जोर दिया कि स्थायी मूल्य निर्धारण प्रक्रिया से कई मौतों को टाला जा सकता था।

शनिवार को राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू को स्वास्थ्य संबंधी स्थायी संसदीय समिति के अध्यक्ष राम गोपाल यादव ने कोविड-19 महामारी का प्रकोप और इसका प्रबंधन पर रिपोर्ट सौंपी।

सरकार द्वारा कोविड-19 महामारी से निपटने के संबंध में यह किसी भी संसदीय समिति की पहली रिपोर्ट है।

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रिपोर्ट में कहा गया है कि निजी अस्पतालों में कोविड के इलाज के लिए विशिष्ट दिशानिर्देशों के अभाव के कारण मरीजों को अत्यधिक शुल्क देना पड़ा।

समिति ने जोर दिया कि सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और महामारी के मद्देनजर सरकारी और निजी अस्पतालों के बीच बेहतर साझेदारी की जरूरत है।

समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि जिन डॉक्टरों ने महामारी के खिलाफ लड़ाई में अपनी जान दे दी, उन्हें शहीद के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए और उनके परिवार को पर्याप्त मुआवजा दिया जाना चाहिए।

समिति ने कहा कि 1.3 अरब की आबादी वाले देश में स्वास्थ्य पर खर्च बेहद कम है और भारतीय स्वास्थ्य व्यवस्था की नाजुकता के कारण महामारी से प्रभावी तरीके से मुकाबला करने में एक बड़ी बाधा आई। इसलिए समिति सरकार से सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में अपने निवेश को बढ़ाने की अनुशंसा करती है।

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रिपोर्ट में समिति ने केंद्र सरकार से कहा कि दो साल के भीतर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 2.5 फीसद तक के खर्च के राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करें क्योंकि वर्ष 2025 के निर्धारित समय अभी दूर हैं और उस समय तक सार्वजनिक स्वास्थ्य को जोखिम में नहीं रखा जा सकता है।

मालूम हो राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में 2025 तक जीडीपी का 2.5 फीसद स्वास्थ्य सेवा पर सरकारी खर्च का लक्ष्य रखा गया है जो 2017 में 1.15 फीसद था।

समिति ने कहा है कि यह महसूस किया गया कि देश के सरकारी अस्पतालों में बेड की संख्या कोविड और गैर-कोविड मरीजों की बढ़ती संख्या के लिहाज से पर्याप्त नहीं थी।

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