Saturday - 6 January 2024 - 11:10 PM

फिरने वाले है तकिया और गद्दे के दिन

सुरेन्द्र दुबे

राजकपूर की एक बड़ी चर्चित फिल्म थी-‘जिस देश में गंगा बहती है’। उसका एक बड़ा चर्चित गाना था- ‘आ अब लौट चले, तुझको पुकारे देश तेरा’। अब सोचेंगे देश को कोई कुर्बानी की जरूरत पड़ गई है। इसलिए इस गाने की चर्चा हो रही है। देश को कुर्बानी की जरूरत नहीं है। हम वैसे ही हर मोर्चें पर कुर्बान हो रहे हैं। मामला थोड़ा पेंचीदा है।

पंजाब एंड महाराष्ट्र कॉपरेटिव (पीएमसी) बैंक पर आए संकट से कई लाख खाताधारक अचानक खुद को ठगा महसूस करने लगे हैं। उनकी जमापूंजी एक तरह से लुट गई है और उनसे कहा जा रहा है कि चूंकि बैंक में बड़े पैमाने पर फ्रॉड हो गया है , इसलिए खाताधारक अब अपना पैसा नहीं निकाल पायेंगे। फ्रॉड बैंक की साजिश से एचडीआईएल ने किया और पैसा खाताधारकों का डूब गया। खाताधारक जार-जार रो रहे हैं कि उनकी जिदंगी भर की गाढ़ी कमाई लुट गई है। पर वित्त मंत्री सीतारमण कह रही हैं कि इस मामले में वित्त मंत्रालय कुछ नहीं कर सकता है, क्योंकि पीएमसी एक कॉपरेटिव बैंक है।

सैकड़ों लोगों को जब बैंक के बाहर आंसू बहाते देखा कि वे सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि उनका जमा पैसा वापस दिला दिया जाए तो मुझे अपनी दादी अम्मा, नानी-नाना यानी की बुर्जुगों की याद आ गई। उन्हें मालूम था कि बैंक भरोसे लायक नहीं है। इसलिए वह अपना धन रजाई-गद्दों में व तकियों में छिपाकर रखती थीं। ब्याज के लालच में उन्होंने तत्कालीन प्राइवेट बैंकों में पैसा रखना ज्यादा पंसद नहीं था। आज के बैंक तत्कालीन प्राइवेट बैंकों से भी ज्यादा खतरनाक हो गए हैं। सरकार का रिर्जव बैंक इन बैंकों को लाइसेंस जरूर देता है पर उसके बाद अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेता है।

 

ये कोई पहला मौका नहीं है जब कोई कॉपरेटिव बैंक पैसे डकार का बैठ गया है। अब तक दर्जनों कॉपरेटिव बैंक जनता की गाढ़ी कमाई को लूट चुके हैं और यह सिलसिला आज भी जारी है क्योंकि हर कॉपरेटिव के पीछे कोई न कोई बड़ा नेता होता है, जा फ्रॉड को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अंजाम देकर अंतध्र्यान हो जाता है। ऐसा लगता है कि बैंकिग सिस्टम पूरी तरह से पूंजीपतियों व नेताओं के चंगुल में है। आम आदमी के लिए यही अच्छा है कि वह अपनी जमा पूंजी गद्दे व तकियों में छिपाकर रखे। ब्याज भले नहीं मिलेगा पर कम से कम पूंजी तो नहीं डूबेगी। अब ऐसे में अगर ये लोग कहने लग गए हैं कि ‘आ अब लौट चले ….’  तो उनका सीधा-सीधा इशारा पुरानी व्यवस्था की ओर लौट चलने का ही है।

आइये पीएमसी बैंक में हुए घोटाले की बात करते हैं। पीएमसी बैंक फिलहाल रिजर्व बैंक द्वारा नियुक्त प्रशासक के अंतर्गत काम कर रहा है। पीएमसी 11,600 करोड़ रुपये से अधिक जमा के साथ देश के शीर्ष 10 सहकारी बैंकों में से एक है। यानी की अन्य सहकारी बैंकों की भी जांच होनी चाहिए कि वहां कौन से घोटाले को अंजाम दिया जा रहा है। बैंक ने अपने कुल अपने कुल कर्ज 8,880 करोड़ रुपये में से 6,500 करोड़ रुपये का ऋण रियल स्टेट कंपनी एचडीआईएल को दे दिया। अब इसके कई डायरेक्टर गिरफ्तार भी कर लिए गए हैं। पर इनकी गिरफ्तारी से लुट चुके बैंक खाता धारकों का पैसा तो वापस नहीं मिल जायेगा।

जब सरकार बैंकों को संकट से उबारने के लिए हर वर्ष हजारों करोड़ रुपए गिफ्ट कर देती है तो खाताधारकों को संकट से उबारने के लिए सरकार को बेलआउट पैकेज क्यों नहीं देती। परंतु हम एक लोकतांत्रिक व लोककल्याण वाली व्यवस्था में रहते हैं इसलिए सरकार पूंजीपतियों व बैंकों को तो तुरंत उबार लेती है पर आम खाताधारक के लिए उसका खजाना कभी खुलता ही नहीं। अब जनता की तरफ से इतना ही कहा जा सकता है खुल जा सिमसिम, खुल जा सिमसिम।

अभी कल ही खबर आई है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने पूंजीपतियों के 76 हजार करोड़ रुपए बट्टेखाते में डाल दिया है। इसका आम भाषा में मतलब है कि पूंजीपतियों से अब पैसे नहीं मांगे जायेंगे। अब सरकार को अगर लोककल्याण की चिंता होती तो इससे काफी कम पैसे में पीएमसी बैंक के खाताधारकों को बर्बाद होने से बचा लेती। पर ये खाताधारक उसे सिर्फ वोट देते हैं। सरकार तो पूंजीपति ही चलाते हैं। इसलिए हर सरकार पूंजीपतियों के साथ खड़ी नजर आती है।

ये भी पता चला है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने पिछले तीन साल में लगभग ढ़ाई लाख करोड़ रुपए पूंजीपतियों से न वसूलने का निर्णय लिया है। यानी ये खेल बैंकों में बदस्तूर चलता रहता है। अगर यही सब होना था तो फिर बैंकों के राष्ट्रीयकरण का क्या फायदा हुआ। इस तरह के फ्रॉड तो आज से 50 साल पहले निजी बैंकों में चल ही रहे थे। लगता है सरकार का इरादा 50साल पूर्व की बैंकिंग व्यवस्था की ओर लौटने का ही है। इसीलिए निजीकरण का हो-हल्ला चारों ओर जारी है।

अभी रेलवे के आंशिक निजीकरण का प्रयोग किया जा रहा है। इसके बाद सरकार निजीकरण के फायदे गिनाते हुए बैंकों को भी निजी हाथों में सौंपने का काम कर सकती है। अगर ऐसा होता है, जिसकी संभावनाएं काफी है तो दादी अम्मा और सरकार दोनों एक सुर में गायेंगे-‘आ अब लौट चले….’।

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)

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