Thursday - 11 January 2024 - 8:37 AM

नेहरू के नाम पर कब तक कश्‍मीरियों को भरमाएंगे

सुरेंद्र दुबे 

जम्‍मू-कश्‍मीर से अनुच्‍छेद 370 व धारा 35 ए हटे लगभग दो महीने होने वाले हैं। पूरी कश्‍मीर घाटी सेना के नियंत्रण में है और वहां के रहने वाले अघोषित कर्फ्यू में रह रहे हैं। लोगों को कश्‍मीर घाटी जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से इजाजत लेनी पड़ रही है।

अधिकांश नेता या तो जेल में बंद हैं या फिर हिरासत में हैं। नेताओं और प्रशासन के बीच कोई संवाद नहीं है। सरकार सिर्फ यह कहकर समस्‍या से अपना पल्‍ला झाड़ लेती है कि जल्‍दी कश्‍मीर में स्थिति सामान्‍य हो जाएगी।

कश्‍मीर में राजनैतिक संवाद ठप है। संवाद के नाम पर या तो राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल कश्‍मीर का दौरा करते हैं या फिर राज्‍यपाल प्रेस कांफ्रेस कर स्थिति सामान्‍य होने का दावा कर देते हैं। इस तरह के भी दावे किए जा रहे हैं कि कई‍ जिलों में इंटरनेट सेवाएं व टेलिफोन सुविधाएं बहाल कर दी गई हैं।

परंतु किसी को कोई संदेह न रहे इसके लिए आजतक कोई प्रेस टीम घाटी में नहीं भेजी गई। अगर सब कुछ सामान्‍य है तो अखबारों का प्रकाशन क्‍यों बंद है? बाहर के लोगों को कश्‍मीर में क्‍यों नहीं जाने दिया जा रहा है।

कल ही हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका यात्रा का डंका बजा कर भारत लौटे हैं। उन्‍होंने ह्यूस्‍टन में अनुच्‍छेद 370 हटाने को लेकर भारतीय समुदाय की खूब वाह वाही लूटी। अमेरिका के राष्‍ट्रपति ट्रंप ने उनकी पीठ थपथपाई। अगर कश्‍मीर हमारा आंतरिक मुद्दा है तो बार-बार अमेरिका के सामने सफाई क्‍यों पेश की जा रही है।

कूटनीतिक सफलता के अतिरेक से जम्‍मू-कश्‍मीर हमारा आंतरिक मुद्दा होते हुए भी अंतरर्राष्‍ट्रीय मुद्दा बन गया है। ब्रिटिश संसद ने तो बाकायदा  जम्‍मू-कश्‍मीर पर एक प्रस्‍ताव पारित कर  शांति बहाली की अपेक्षा तक कर डाली। ये ठीक है कि विश्‍व समुदाय के सामने भारत सच्‍चाई पेश करता रहे ताकि पाकिस्‍तान के दुष्‍प्रचार के जाल में दुनिया न फंसे। पर लगता है ज्‍यादा सफाई देने के चक्‍कर में हम बिला वजह अंतरराष्ट्रीय निगरानी के जद में आते जा रहे हैं।

गृहमंत्री अमित शाह कश्‍मीर घाटी की स्थिति सुधारने के बजाए फिर पंडित जवाहर लाल नेहरू को कोसने में लग गए। उनका कहना है कि पंडित नेहरू की गलती को उन्‍होंने सुधारा है। इस पर किसी को गुरेज भी नहीं हो सकता है। क्‍योंकि कश्‍मीर को दिए गए विशेष राज्‍य के दर्जे से अधिकांश भारतीय नाराज चल रहे थे।

पर इतिहास की आड़ में कब तक सरकार अपनी पीठ थप-थपाएगी। अब आम भारतीय ये जानना चाहता है कि कश्‍मीर घाटी के लोग कब खुली हवा में सांस ले सकेंगे। उन्‍हें कब उनके मूल अधिकार वापस किए जाएंगे।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी ये जानना चाहता है कि कश्‍मीर का विशेष दर्जा खत्‍म किए जाने के बाद वहां के नागरिक अब किस दर्जे नागरिक हो गए हैं। पूरे देश से भी यही आवाज उठ रही है पर मूलभूत अधिकारों की वापसी और स्थिति सामान्‍य करने की दिशा में किए गए प्रयास धरातल पर दिखाई नहीं पड़ रहे हैं।

अब तो संपूर्ण विपक्ष ने भी चुप्‍पी साध ली है और यही शायद सरकर के लिए दिक्‍कत का सबब है। इस लिए वह बार-बार पंडित नेहरू के नाम पर कांग्रेस को उकसाना चाहती है। परंतु कांग्रेसी इस दांव को समझ गए हैं। इसलिए उन लोगों ने मौन व्रत धारण कर लिया है।

पाकिस्‍तान के पास भारत के खिलाफ जहर उगलने के अलावा कोई विकल्‍प भी नहीं है। प्रधानमंत्री इमरान खान हर मंच पर कश्‍मीरियों के साथ जुल्‍म किए जाने का ढिंढोरा पीटने में लगे हैं। अमेरिका भी उनकी मदद करने में असमर्थ है, इसलिए ट्रंप साहब बीच-बीच में इमरान खान को डांटते रहते हैं। पर चुनाव हमारे ही देश में नही होते हैं, अमेरिका में भी अगले वर्ष राष्‍ट्रपति का चुनाव होना है।

सो ट्रंप साहब को भारतीय समुदाय के वोट बटोरने के लिए मोदी साहब की तारीफ करना एक राजनैतिक मजबूरी है। कुटिल और चालाक ट्रंप एक ओर अबकी बार ट्रंप सरकार कहलवा कर अमेरिका में रह रहे भारतीयों के दिलों पर छा जाना चाहते हैं तो दूसरी ओर इमरान खान को ईरान के राष्‍ट्रपति से बात करने की ड्यूटी पर लगाए हुए हैं।

सउदी अरब के प्रिंस पर भी इमरान के जरिए ईरान पर दबाव बनाने में ट्रप लगे हुए हैं। यानी मोदी और डोनाल्‍ड ट्रंप दोनों ही अपने-अपने एजेंडे पर लगे हुए हैं और कश्‍मीर घाटी के लोग सामान्‍य जीवन जीने की आस में मोदी की ओर निहार रहे हैं।

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)

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