Sunday - 7 January 2024 - 5:48 AM

यहाँ तो घोड़े ने ही सवार की लगाम पकड़ ली है

उत्कर्ष सिन्हा

अदम गोंड़वी की इन लाईनों को पहले याद कर लें –

तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है

उधर जम्हूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो
इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है, नवाबी है।

बीते करीब 15 दिनों से मजबूर सड़कों पर हैं और सरकार आंकड़ों के खेल में व्यस्त है । सरकारी घोषणाओं की ओर निगाह जाते है गुलाबी मौसम का एहसास होना शुरू ही होता है कि सड़कों पर बेचारगी की लू अपनी तपिश से झुलसा देती है।

मजबूरों की तस्वीरें दिल दहला रही हैं मगर शायद ये तस्वीर हुकूमत देख नहीं पा रही, अब तो ये लगाने लगा है कि वो ये देखना चाहती ही नहीं । उसे अपनी अफसरशाही के दिखाए सपनों पर इतना यकीन हो चुका है कि वो असलियत को देखने का आदी ही नहीं रहा ।

हालकि सिद्धांत ये कहता है कि जम्हूरियत में चुना गया हुक्मरान आवाम के दर्द को करीब से समझता है, मगर इस दौर में ये सिद्धांत झूठा साबित हुआ ।

इस बात पे एतबार करने की कई वजहें हैं – यूपी के मुख्यमंत्री कैमरे के सामने बोल देते हैं कि यूपी में हम 90 लाख रोजगार सृजित कर चुके हैं। ये कहते हुए दरअसल वे अपने विवेक को झुठला रहे हैं और अफसरों के दिए पन्ने पढ़ रहे हैं।

एक क्लिक में कई सौ करोड़ रुपये खातों में ट्रांसफर किये जा रहे हैं। कोशिश सुर्खियां बनाने की है।

केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी बता रही हैं कि 80 करोड़ परिवारों को राशन दिया जा चुका है । उनसे ये सवाल पूछने की बजाय कि भारत में इतने परिवार ही नहीं , टीवी की एंकर बलिहारी हुई जा रही है। उसे इस बयान को बार बार चीखना है। स्मृति को ये आँकड़े भी उनके अफसरों ने ही दिए होंगे।

केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल बता रहे हैं कि इस बीच भूख से कोई नहीं मरा। मगर सड़कों पे मरने वालों की तादात के बारे में वो चुप हैं।

प्रधानमंत्री 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा कर के निकल जा रहे हैं और वित्त मंत्री उसे किश्तों में बता रही हैं, मगर कोई कुछ समझ नहीं पा रहा।

इन सबके बीच मजबूर अपने फटे हुए पैरों से सड़कों की दूरियाँ नाप रहा है। उसे ये भी पता नहीं कि अगले किलोमीटर के बात वो आगे बढ़ेगा या कहीं रोक दिया जाएगा।

सरकार बहादुर को इस बात को समझने में 15 दिन लग गए कि इन मजबूर लोगों को घर कैसे भेजा जाए। महाराष्ट्र में सरकार ने जब घोषणा की तो अफसरों ने अंग्रेजी में एक फार्म बना दिया और ई मेल करने को कहा। ये कौन समझेगा कि मजबूर न तो इस भाषा को समझेगा और न ही इस प्रक्रिया को ।

यूपी में चुने गए जनप्रतिनिधि के पास कोई जिम्मेदारी नहीं है । सूबे के 55 मंत्रियों की फौज बेकार पड़ी है । यदा कदा कुछ घोषणाएं करने की कोशिश ये लोग करते हैं मगर उसे अफसरशाही आगे नहीं बढ़ने देती।

जिस वक्त मंत्रियों के कार्यसमूह काम करते दिखने चाहिए थे उस वक्त अफसरों ने मंत्रियों की कुर्सी सम्हाल ली है।

आपदा काल में टीम 11 बनी है । यह आँकड़ेबाजों की फौज के सिवा कुछ नहीं । मुख्यमंत्री को समझा दिया कि चीन से हटने वाली कंपनियां यहाँ आएंगी इसके लिए श्रम कानून बदल दिए गए । जब चारों तरफ से फजीहत हुई और अदालत तक बात पहुंची तो काम के घंटे बढ़ाने का फैसला वापस कर दिया गया ।

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घर लौटने वाले मजदूरों को रोजगार देने की घोषणा हुई मगर मजदूरों को घर पहुंचाने के जो प्रयास हुए वो नाकाफ़ी रहे।

काम बहुत मुश्किल भी नहीं था । बात सिर्फ सोचने की थी । अफसर सोचता नहीं, उसे आवाम के प्रति कोई जवाबदेही भी नहीं । उसकी जवादेही सरकार के प्रति है, और सरकार वही सोचने लगी है जो अफसर उसे बताता है।

सूबे में 20 हजार बसों का बेड़ा खड़ा है , हर जिले में सैकड़ों बसें खड़ी हैं, कितना आसान था जो जहाँ है उसे वहीं से बस में बैठ लेना, लेकिन इस बात को समझने में सरकार को अगर 15 दिन लगे तो उसके पीछे अफसरशाही पर उसकी अति निर्भरता थी।

बहुत आसान था कि सड़कों पर उमड़ी भीड़ को जगह जगह रोक कर उसे खाना खिला देना । कई संवेदनशील लोग ये काम खुद कर रहे हैं , मगर सरकार नहीं कर पा रही । अब 80 करोड़ को 3 वक्त खाना खिलाने वाले आँकड़े कहाँ से पैदा हुए ये स्मृति ईरानी को ही पता होगा।

सरकार सबसे बड़ी मशीनरी होती है लेकिन उसे सही तरह से चलाना होता है। मशीन को ही खुद चलने का जिम्मा दे दिया जाए तो वो किसी काम कि नहीं रहेगी । मगर यूपी में फिलहाल यही हाल है ।

हमारे मजबूत नेता अपने अफसरों के सामने कमजोर पड़ने लगे हैं। उन्हे समझा दिया गया है कि अकेले काम करते दिखने से उनकी छवि और मजबूत होगी।

पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह अक्सर कहा करते थे – “नौकरशाही वो घोडा होती है जो अपने सवार की लगाम पकड़ने के अंदाज से ही सब समझ जाती है । लगाम जरा सी ढीली हुई तो घोडा सवार को पटक देता है ।“

यहाँ तो घोड़े ने ही सवार की लगाम पकड़ ली है।

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