Tuesday - 23 January 2024 - 8:38 PM

आर्थिक पैकेज की तीसरी किस्त: नीति अच्छी अब नीयत की बारी  

डॉ योगेश बन्धु

कृषि क्षेत्र की बेहतरी के लिए सरकार ने जो बहुप्रतीक्षित घोषणाएँ की हैं, उस पर पहले की सरकारें  भी बात करती रहीं हैं, लेकिन उसे कभी धरातल पर नही उतारा जा सका। अगर मोदी सरकार अपने वादों को ईमानदारी से लागू करती है तो इन उपायों से कृषि और सम्बद्ध क्षेत्र को एक सफल व्यावसायिक उपक्रम में बदलने में सफलता मिल सकती है। इन नीतिगत उपायों की अच्छी बात ये है कि इनमे कृषि के साथ-साथ पशुपालन, डेयरी, मत्स्य पालन, बाग़वानी और कृषि तथा खाद्य प्रसंस्करण सहित विपणन  से सम्बंधित सभी सुधार शामिल हैं।


वित्त मंत्री ने आर्थिक पैकेज के तीसरे विवरण में कुल 11 कदमों की घोषणा की। इनमें 8 उपाय कृषि क्षेत्र की आय बढ़ाने के लिए आधारभूत संरचनाओं को बढ़ाने से सम्बंधित हैं शामिल हैं, इनके अलावा उन्होंने ऐसे 3 कदमों की घोषणा की, जिनका संबंध कृषि सम्बंधित कानून से है।

ये भी पढ़े: भूखे थे बच्चें, नहीं बिके जेवर तो उठाया ये कदम

ये भी पढ़े: यूपी सरकार के इस ऐलान से क्यों खफा है दवा कारोबारी

उल्लेखनीय है कि कृषि के व्यावसायीकरण की प्रक्रिया में किसानो के हितो को लेकर इन क़ानून को बदलने का विरोध होता रहा है। जिसे सरकार कोरोना संकट से निपटने के लिए आर्थिक उपायों के नाम पर एक झटके बदलने जा रही है। अगर इन घोषणाओं को ईमानदारी से लागू किया गया तो इन सभी 11 उपायों से कृषि और संबंधित क्षेत्रों में बड़ा बदलाव आएगा, किसानों की आय बढ़ेगी, उन्हें अपनी फसल की सही कीमत मिल सकेगी औरकिसानो का शोषण रुकेगा।

आर्थिक पैकेज के हिस्से के रूप में कृषि और किसानों को सपोर्ट करने के लिए मिनिमम सपोर्ट प्राइस पर कृषि उपज की ख़रीद, पीएम किसान फंड केमाध्यम से किसानों को सहायता और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लाभ जैसी उपाय नियमित सरकारी कार्यक्रम का हिस्सा हैं। वास्तविक रूप से इन्हें आर्थिक पैकेज के रूप में नही देखा जाना चाहिए। 

महत्वपूर्ण बातों में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने किसानों की निश्चित आय, जोखिम रहित खेती और गुणवत्ता के मानकीकरण और  उत्पाद की अंतर्राज्यीय बिक्री के लिए के नए क़ानून सहित पुराने  कानूनो में परिवर्तन की बात है। कृषि क्षेत्र में गवर्नेंस और सुधार के इन फैसलों से किसानों केजीवन स्तर में सुधार की आशा की जा सकती है।


प्राथमिक क्षेत्र में कृषि के बाद पशुपालन सबसे बड़ा योगदान देता है। जिसके लिए  सरकार एनिमल हसबेंडरी इन्फ्राट्रक्चर डेवलपमेंट फंड के रूप में15,000 करोड़ रुपये का प्रावधान करने की बात कह रही है  रही है, इससे डेयरी प्रोसेसिंग, वैल्यू एडिशन और कैटल फीड इंफ्रास्ट्रक्चर में निजी निवेशको भी बढ़ावा मिल सकता है।

ये भी पढ़े: शिवपाल बोले अब तो कुछ कीजिये सरकार… कहीं देर न हो जाए

ये भी पढ़े: जन आकांक्षाओं के अनुरूप हो लाकडाउन 4.0

इसी प्रकार देश में ताज़े पानी और समुद्री मछली के उत्पादन और व्यापार की असीम सम्भावनाएँ हैं, लेकिन उत्पादन से बाज़ार तक के बीच मछली पालन के लिए वैल्यू चैन में बहुत महत्वपूर्ण गैप है जिसके लिए प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के माध्यम से 11,000 करोड़ रुपये का प्रावधान मैरीन इनलैंडफिशरीज और एक्वाकल्चर के लिए किया और 9,000 करोड़ रुपये का प्रावधान इंफ्रास्ट्रक्चर के द्वारा फिशिंग हार्बर, कोल्ड चेन, मार्केट विकासइत्यादि का प्रस्ताव शामिल है। इसके त्वरित और बेहतर कार्यान्वयन से देश में अगले 5 साल में 70 लाख टन मछली उत्पादन के साथ 55 लाख लोगोंको नए रोजगार मिल सकते हैं, साथ ही भारत का निर्यात दोगुना होकर ₹1,00,000 करोड़ हो सकता है।

भारत में हर्बल उत्पादों की खेती नया और तेज़ी से विकसित होता बाज़ार है, देश के अलावा विदेशों में भी इन उत्पादों की माँग को देखते हुए सरकार₹4,000 का प्रावधान करने जा रही है, इसमें  मेडिसिनल प्लांट्स की खेती को 2.5 लाख हेक्टेयर से बढ़ाकर10 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर कियाकरने का इरादा है। इसके साथ ही ऑपरेशन ग्रीन के तहत टमाटर, प्याज और आलू को भी शामिल करने से किसानो के एक बड़े तबके को अपनी  उपजको बाज़ार में बेचने में लाभ मिलेगा। सरकार के वादे के अनुसार इनको सपोर्ट करने के लिए 500 करोड़ रुपये के फंड का प्रावधान किया जा रहा है, जिसमें ट्रांसपोर्टेशन और कोल्ड स्टोरेज के लिए 50 फीसदी सब्सिडी का प्रावधान है।

ये भी पढ़े: तो इसलिए मधुमक्खी पालन को मिला वित्त मंत्री का साथ

ये भी पढ़े: लोकल को वोकल बनाने की तैयारी में सरकार

किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य सुनिश्चित सबसे बड़ी समस्या है , इसके लिए नीतिगत बदलावों में अनाज के साथ खाद्य तेल, तिलहन, दाल, प्याज और आलू जैसी कृषि उपज को डीरेगुलेट किया जा रहा है। वैल्यू चेन में शामिल प्रोसेसर और निर्यातकों के लिए स्टॉक लिमिट की कोई सीमालागू नहीं होगी, स्टॉक लिमिट की नीति को प्राकृतिक आपदा या अचानक कीमत बढ़ने की स्थिति तक सीमित रखा जा रहा है। कृषि से संबद्ध उद्योगों द्वारा यह माँग काफ़ी समय से की जा रही थी। इसके साथ ही वित्तमंत्री द्वारा कृषि क्षेत्र में निजी निवेश को आकर्षित करने के लिए भी विस्तृत दिशा-निर्देश लाने की बात की गयी है जिससे प्रोसेसर, एग्रीगेटर, बड़े रिटेलर और एक्सपोर्टर के साथ किसान जुड़ सकें और अपना कृषि उपज सीधा उन्हें बेचसकें। इसके लिए एक किसानो के हितो की रखा करने वाला एक व्यावहारिक कानूनी ढांचा ज़रूरी है।

इन सभी उपायों और प्रस्तावित नीतिगत बदलावों की माँग समय समय पर होती रही है, उम्मीद की जानी चाहिए कि इन बदलावो से सिर्फ़ कृषि से जुड़े उद्योगों, व्यापारियों और कृषि निर्यातको को ही इसका लाभ नही मेलगा बल्कि यह निचले स्तर पर किसानो और उत्पादकों को भी भागीदार बनाएगा।
इसे में फिर से नीति से ज़्यादा सरकार की नीयत  मायने रखती है और इस मामले में अभी तक किसानो का अनुभव अच्छा नही रहा है।

(लेखक वरिष्ठ अर्थशास्त्री हैं)

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com