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पूर्वांचल की 14 सीटों पर किसकी चलेगी लहर

 न्‍यूज डेस्‍क 

लोकसभा चुनाव 2019 के पांच चरण के मतदान हो चुके हैं। इनमें अभी तक कुल 543 लोकसभा सीटों में से 425 संसदीय क्षेत्रों में नेताओं की किस्‍मत ईवीएम में कैद हो गई है। ऐसे में पार्टियों के भीतर चुनावी नतीजों को लेकर भी अनुमान लगाए जाने लगे हैं।

वहीं, बाकी बचे 118 सीटों पर मतदान छठे और सातवें चरण में होगा। छठे चरण में उत्तर प्रदेश की 14 सीटों पर 12 मई को वोट डाले जाएंगे। ये सारी सीटें पूर्वांचल इलाके में आती है। 2014 के लोकसभा चुनाव में 14 में से बीजेपी को 12 और सहयोगी अपना दल को एक और सपा को महज एक सीट से संतोष करना पड़ा था।

आजमगढ़ में गठबंधन बनाम बीजेपी

आजमगढ़ लोकसभा सीट पर 2014 में सपा सरंक्षक मुलायम सिंह यादव ने मोदी लहर के बीच साईकिल को मजबूती से चलाई थी और चुनाव भी जीते थे। इस बार यहां सपा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अखिलेश यादव मैदान में हैं। वहीं, उनको कड़ी टक्‍कर बीजेपी के उम्‍मीदवार और भोजपुर कलाकार दिनेश लाल यादव निरहुआ दे रहें हैं।

इस बार के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा एक साथ हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में मोदी का मैजिक आजमगढ़ में नहीं नजर आया था। इसी का नतीजा था कि बीजेपी आजमगढ़ जिले की 10 सीटों में से महज एक सीट ही जीते में कामयाब रही थी। ऐसे में आजमगढ़ सीट पर अखिलेश के खिलाफ बीजेपी का कमल खिलना आसान नहीं है।

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अंबेडकरनगर में गठबंधन बनाम बीजेपी

अंबेडकरनगर बसपा का गढ़ माना जाता है। ये सीट गठबंधन के तहत बसपा के खाते में गई है, यहां से पार्टी ने ब्राह्मण दांव खेला है और रितेश पांडेय को अपना उम्मीदवार बनाया है। वहीं बदलते हुए समीकरण के बीच बीजेपी ने कुर्मी समुदाय पर दांव लगाया है। बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद हरिओम पांडेय का टिकट काटकर मुकुट विहारी वर्मा पर दांव लगाया है। वहीं, कांग्रेस के उम्मीदवार रहे फूलन देवी के पति उम्मेद सिंह का नामांकन रद्द हो गया है। पिछले चुनाव में मिले सपा और बसपा के वोट जोड़ दें तो बीजेपी से काफी ज्यादा पहुंचता है। ऐसे में बीजेपी के लिए यह सीट बरकरार रखना बड़ी चुनौती है।

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प्रतापगढ़ में चतुष्कोणीय मुकाबला

प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर गठबंधन के तरफ से बसपा के अशोक त्रिपाठी मैदान में हैं। वहीं, कांग्रेस से राजकुमारी रत्नासिंह और बीजेपी के संगमलाल गुप्ता चुनावी मैदान में हैं। हालांकि 2014 में यह सीट बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल के खाते में गई थी और कुंवर हरिबंश सिंह जीतकर सांसद चुने गए थे। प्रतापगढ़ की सियासत की धुरी राजघरानों और सवर्ण समुदाय के इर्द-गिर्द ही घूमती है।

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प्रतापगढ़ सीट पर राजा भैया के करीबी अक्षय प्रताप सिंह उर्फ गोपाल जनसत्ता पार्टी के उम्मीदवार हैं। अक्षय प्रताप से ज्यादा राजा भैया की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। ऐसे में राजा उन्हें जिताने के लिए जमकर पसीना बहा रहे हैं, लेकिन उनका प्रभाव वाला इलाका अब प्रतापगढ़ के बजाय कौशांबी क्षेत्र में आता है। बसपा के अशोक त्रिपाठी ब्राह्मण, दलित और यादव मतों के सहारे जंग जीतना चाहते हैं। जबकि बीजेपी के उम्मीदवार संगमलाल गुप्ता मोदी लहर में अपनी जीत देख रहे हैं।

सुल्तानपुर बीजेपी बनाम गठबंधन

सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर इस बार बीजेपी से वरुण गांधी की जगह उनकी मां मेनका गांधी चुनावी मैदान में हैं। उनके सामने कांग्रेस से डॉ. संजय सिंह और बसपा से चंद्रभद्र सिंह हैं। पिछले चुनाव में वरुण गांधी ने इस सीट पर 4 लाख 10 हजार के करीब वोट हासिल कर सांसद बने थे।

सपा-बसपा एक साथ मिलकर चुनावी मैदान में हैं और 2014 में इन दोनों पार्टियों के वोट मिला दें तो बीजेपी से करीब 50 हजार से ज्यादा होता है। ऐसे में बीजेपी के लिए यह सीट बरकरार रखना बड़ी चुनौती होगी।

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फूलपुर में त्रिकोणीय मुकाबला

फूलपुर लोकसभा सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला है। कभी कांग्रेस का गढ़ रहा इस संसदीय क्षेत्र में 2014 में पहली बार बीजेपी मोदी लहर में कमल खिलाने में कामयाब रही थी, लेकिन 2018 में उपचुनाव में बीजेपी ने यह सीट सपा के हाथों गवां दी थी।

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हालांकि, 2019 के रण में सपा ने अपने मौजूदा सांसद नागेंद्र सिंह पटेल का टिकट काटकर पंधारी यादव को उतारा है, जिनका मुकाबला बीजेपी की केशरी देवी पटेल और कांग्रेस के पंकज निरंजन से है। कुर्मी बहुल सीट होने के नाते बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने कुर्मी समुदाय से अपना प्रत्याशी बनाया है। जबकि सपा ने यादव पर दांव लगाया है।

इलाहाबाद में गठबंधन बनाम बीजेपी

इलाहाबाद लोकसभा सीट पर इस बार बीजेपी से रीता बहुगुणा जोशी, कांग्रेस से योगेश शुक्ला, सपा से राजेंद्र प्रताप सिंह पटेल उर्फ खरे और आम आदमी पार्टी से किन्नर अखाड़े की महामडलेश्वर भवानी नाथ वाल्मीकि सियासी रणभूमि में हैं। 2014 में यह सीट बीजेपी से श्यामा चरण गुप्ता जीतने में कामयाब रहे थे, लेकिन अब वो सपा का दामन थाम चुके हैं।

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जौनपुर में गठबंधन बनाम बीजेपी

जौनपुर लोकसभा सीट पर बसपा और बीजेपी के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है। जौनपुर सीट पर बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद केपी सिंह को उतारा है। वहीं, बसपा ने श्याम सिंह यादव और कांग्रेस ने देव व्रत मिश्र पर दांव लगाया है। 2014 में केपी सिंह ने करीब ढेड़ लाख मतों से जीत दर्ज की थी। हालांकि इस बार के सियासी समीकरण बदले हुए हैं सपा-बसपा एक साथ चुनावी मैदान में है। ऐसे में अगर बसपा और सपा के वोट मिला दें तो बीजेपी से कहीं ज्यादा हो जाता है। ऐसे में बीजेपी के लिए यह सीट बचाए रखने की बड़ी चुनौती है।

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मछलीशहर में गठबंधन बनाम बीजेपी

मछलीशहर लोकसभा सीट पर बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद रामचरित्र निषाद का टिकट काटकर बीपी सरोज को उतारा है। बसपा ने यहां त्रिभुवन राम को प्रत्याशी बनाया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में रामचरित्र निषाद ने पौने दो लाख मतों से जीत हासिल की थी। इस बार के रण में बीजेपी ने बसपा से आए बीपी सरोज पर दांव लगाया है, जिसके चलते रामचरित्र निषाद ने बीजेपी छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है।

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भदोही में त्रिकोणीय मुकाबला

भदोही लोकसभा सीट की सियासी लड़ाई काफी दिलचस्प होती नजर आ रही है। यहां से बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त की जगह रमेश चंद्र बिंद को उतारा है। बसपा ने रंगनाथ मिश्रा और कांग्रेस ने रमाकांत यादव पर दांव लगाया है। 2014 में वीरेंद्र सिंह मस्त ने बसपा के राकेशधर त्रिपाठी को करीब ढेड़ लाख मतों से मात दी थी। हालांकि उस समय सपा से विजय मिश्रा की बेटी चुनावी मैदान में थी। इस बार के चुनाव में विजय मिश्रा ने बीजेपी के समर्थन में खड़े नजर आ रहे हैं। जबकि सपा और बसपा एक हैं, लेकिन कांग्रेस ने जिस तरह यादव उतारा है उससे मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।

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लालगंज में गठबंधन बनाम बीजेपी

लालगंज लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। बीजेपी ने यहां से अपनी मौजूदा सांसद नीलम सोनकर को एक बार फिर उतारा है, जिनका मुकाबला बसपा की संगीता आजाद और कांग्रेस के पंकज मोहन सोनकर से है।

2014 में बीजेपी पहली बार इस सीट पर कमल खिलाने में कामयाब रही थी। इस बार के बदले हुए समीकरण सपा और बसपा एक साथ मिलकर चुनावी मैदान में हैं और दोनों पार्टियों के वोट तो बीजेपी के लिए इस बार की लड़ाई कठिन है।

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डुमरियागंज में बीजेपी बनाम गठबंधन

डुमरियागंज लोकसभा सीट पर जगदंबिका पाल की जीत की हैट्रिक लगाने के लिए बीजेपी से चुनावी मैदान में उतरे हैं। उनके सामने बसपा से आफताब आलम और कांग्रेस से डॉ. चंद्रेश उपाध्याय खड़े हैं। इस बार सपा और बसपा मिलकर चुनावी मैदान में है तो वहीं, बीजेपी का साथ छोड़कर डॉ. चंद्रेश उपाध्याय कांग्रेस से ताल ठोंक रहे हैं। इससे बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं।  

2014 के लोकसभा चुनाव से ऐन पहले जगदंबिका पाल ने कांग्रेस का हाथ छोड़कर बीजेपी में शामिल होकर चुनावी मैदान में उतरे थे और उन्होंने करीब एक लाख मतों से जीत हासिल की थी।

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श्रावस्ती में त्रिकोणीय मुकाबला

श्रावस्ती लोकसभा सीट से बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद दद्दन मिश्र को उतारा है। कांग्रेस ने धीरेन्द्र प्रताप सिंह (धीरू) और बसपा ने राम शिरोमणि वर्मा को उतारा है। 2014 में दद्दन मिश्र ने सपा के अतीक अहमद को एक लाख से ज्यादा मतों से जीत दर्ज की थी। इस बार के चुनावी संग्राम में पिछली बार के कई महारथी मैदान में नहीं हैं, लेकिन तीनों मजबूत उम्मीदवार के होने से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है।

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संतकबीर नगर गठबंधन बनाम बीजेपी

संतकबीर नगर सीट पर बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद शरद त्रिपाठी का टिकट काटकर सपा से आए प्रवीण निषाद को मैदान में उतारा है. बसपा ने यहां बाहुबली हरिशंकर तिवारी के बेटे भीष्मशंकर उर्फ कुशल तिवारी और कांग्रेस ने भालचंद्र यादव पर दांव लगाया है। इस इलाके के यादव समुदाय के बीच भालचंद्र की मजबूत पकड़ मानी जाती है, जिससे महागठबंधन के रणनीतिकारों की नींद उड़ गई है।

हालांकि बीजेपी यहां मोदी-योगी के सहारे जीत की आस लगाए हुए है। जबकि बसपा दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण मतों के सहारे जीत उम्मीद लगाए हुए, लेकिन भालचंद्र ने आखिर वक्त में कांग्रेस से उतरकर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है।

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बस्ती में त्रिकोणीय मुकाबला

बस्ती लोकसभा सीट से बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद हरीश द्विवेदी दोबारा टिकट दिया है। बसपा ने यहां से पूर्व मंत्री राम प्रसाद चौधरी और कांग्रेस ने राजकिशोर सिंह को मैदान में उतारकर चुनाव मुकाबले त्रिकोणीय बना दिया है।

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2014 में राजकिशोर के भाई बृजकिशोर सिंह डिंपल सपा से चुनाव मैदान में उतरे थे, जो बीजेपी के हरीश द्विवेदी से महज 33 हजार वोटों से हार गए थे। इस बार यह सीट गठबंधन के तहत बसपा के खाते में गई है, जिससे वो नाराज होकर कांग्रेस का दामन थाम लिया है। इसके चलते यहां का मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है।

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