Sunday - 7 January 2024 - 9:03 AM

तू डाल-डाल, मैं पात-पात

नजरिया

अली रजा

समय के साथ देश में चुनावी परिदृश्य भी बदल रहा है। पहले राजनीतिक दल अपनी नीति और सिद्धांत के आधार पर चुनाव लड़ते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब राजनीतिक दल वोटरों के हिसाब से अपना एंजेडा बनाते हैं। प्रत्येक वर्ग को बांटकर उनकी कमजोरियों को सामने रखकर फिर लुभावने घोषणा पत्र तैयार किए जाते हैं।

पिछले चुनाव में पीएम मोदी ने जनता को 15 लाख का प्रलोभन देकर लुभाया तो इस चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कुछ खास वर्ग को साल में 72 हजार का प्रलोभन दे रहे हैं। कुल मिलाकर सभी राजनैतिक दल जनता को प्रलोभन देकर एक तो उनका ब्रेन वाश कर रहे हैं और दूसरा जमीनी मुद्दा गायब कर रहे हैं।

भले ही समय के साथ से मतदाता जागरूक हो चुका है लेकिन राजनैतिक दल उससे भी ज्यादा जागरूक है। वह मतदाता की सोच के हिसाब से अपने को अपडेट कर रहे हैं। वर्तमान में तू डाल-डाल तो मैं पात-पात वाली कहावत चरितार्थ होती दिख रही है।


लोकसभा चुनाव की जंग सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में दिखती है। देश की राजनीति का केन्द्र बिंदु यूपी ही है। प्रदेश की सियासत में सियासी जोड़तोड़, उठापटक होने के पीछे का कारण है कि यहां सबसे ज्यादा लोकसभा सीट है। जिसने उत्तर प्रदेश फतह कर लिया, उसके लिए दिल्ली की राह आसान हो जाती है।

इसीलिए राष्ट्रीय पार्टियों की सारी रणनीति उत्तर प्रदेश को ध्यान में रखकर बनती है। उत्तर प्रदेश की अहमियत इससे भी बढ़ जाती है क्योंकि अब तक 18 में से 10 उत्तर प्रदेश से ही रहे हैं। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि इस बार भी उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनाव में अहम भूमिका अदा करेगा।

उत्तर प्रदेश में सियासी सरगर्मी चरम पर है। राजनीतिक दल मोर्चा संभाले हुए है। सभी अपने एंजेडे को लेकर मैदान में है, लेकिन इस एंजेंडे में जमीनी मुद्दे गायब हैं। दरअसल प्रत्येक राजनैतिक दल का अपना वोट बैंक है और वह उन्हीं को रिझाने में लगे हुए हैं। जिस वर्ग की जो जरूरत है वह उसी की बात कर रहे हैं। दलों को इससे कोई सरोकार नहीं है कि भयमुक्त समाज, रोजगार, शिक्षा, विकास भी जरूरी है।

सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि आज के नेता मतदाताओं को अपनी लुभावनी बातों में फंसाकर वोट तो ले रहे हैं लेकिल चुनाव के दौरान किए वादे पूरा नहीं कर रहे हैं। बड़ी ही होशियारी से वह वोटरों को मूर्ख बना रहे हैं, जबकि आज का मतदाता अपने को बहुत समझदार समझता है।

गांव में शाम को लगने वाली चौपाल हो या शहरों में चौराहे की दुकान पर चाय की चुस्की के साथ होने वाला बहस। इन बहसों में शामिल होने वाले सभी लोग जमीनी मुद्दों की बात करते हैं लेकिन जब वोट देने की बात आती है तो वह नेताओं की बातों में आकर जाति-धर्म और लुभावने वादों में आ जाते हैं। उनकी दूरदर्शी सोच पर छडि़क फायदे के लिए ताला लग जाता है।


दरअसल राजनैतिक दल इतने चालाक हो गए है कि वह वहीं बोल रहे है जो जनता सुनना चाहती है। जो जनता के मन के हिसाब से बोल रहा है वह जनता का सबसे बड़ा हितैषी है। देश में गरीब और अमीर के बीच की खाई बहुत बढ़ गई है। दोनों दो धुरी हो गए है। गरीब और गरीब हो रहा है और अमीर और अमीर।

गरीबों के लिए परमानेंट सोर्स ऑफ इनकम की व्यवस्था न कर उन्हें आर्थिक मदद कर उनका हितैषी बना जा रहा है। पिछले चुनाव में पीएम मोदी सबको 15 लाख रुपए देने की बात कहें तो इस चुनाव में राहुल गांधी कुछ खास वर्ग को 72 हजार साल में देने का वादा कर रहे हैं। कोई किसानों का कर्ज माफ कर रहा है तो कोई आर्थिक मदद देने की बात कर रहा है।

किसान अच्छे से खेती करें, खुशहाल रहे इसके उपाय नहीं किए जा रहे बल्कि उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर राजनीतिक दल सत्तासीन होने की तैयारी कर रहे है। लब्बोलुवाब जनता के हिसाब से जो बोलेगा वोट उसी को मिलेगा।

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