Sunday - 7 January 2024 - 1:17 PM

झारखंड में ‘ऑपरेशन लोटस’ कितना कारगर होगा

सुरेंद्र दुबे

झारखंड विधानसभा की 81 सीटों के लिए कल मतदान सम्पन्न हो गया। 23 दिसंबर को मतों की गिनती होनी है और उसी दिन परिणाम घोषित हो जायेंगे। परिणाम आते ही देश में फिर राष्ट्रीय स्तर पर नई राजनैतिक पटकथा लिखी जा सकती है। विभिन्न न्यूज चैनलों ने जो सर्वें किए हैं उससे झारखंड से भाजपा के विदा होने के संकेत मिल रहे हैं। पर विदाई से पहले कई दिन तक झारखंड में जुगाड़ की राजनीति के रोचक दृश्य देखने को मिल सकते हैं। एक बार फिर ऑपरेशन लोटस सुर्खियों में आ सकता है।

झारखंड के चुनावी नतीजों में सबसे महत्वपूर्ण होंगे चौथे व पांचवे चरण के मतदान जिसमें पांचवे चरण में 13 सीटों के लिए मतदान हुआ। ये मतदान पूरे देश में चल रहे नागरिकता संसोधन कानून के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों की छाया में हुए, इसलिए यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या भाजपा को देश में चल रहे हिंदू-मुस्लिम परिदृश्य से कोई फायदा हुआ या नहीं। इन तेरह सीटों के परिणाम हमें सीधे-सीधे बतलायेंगे कि झारखंड तक साम्प्रदायिक विभाजन की आंच पहुंची की नहीं। अगर इन तेरह सीटों के परिणाम एकतरफा भाजपा के पक्ष में हुए तो तमाम चैनलों के सर्वें झूठे साबित हो सकते हैं। दावे से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। पलड़ा तो विपक्ष का ही भारी चल रहा है।

इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया एग्जिट पोल से झारखंड का चुनावी मिजाज का अंदाजा लगाया जा सकता है। पोल के मुताबिक बीजेपी झारखंड में सत्ता बाहर जा सकती है। एग्जिट पोल के अनुमान बता रहे हैं कि झारखंड विधानसभा चुनाव में विपक्षी गठबंधन निर्णायक जीत हासिल करने जा रहा है। इस विपक्षी गठबंधन में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) शामिल हैं।

गौरतलब है कि पांच चरणों वाले झारखंड विधानसभा चुनाव में इस बार बीजेपी ने अकेले चुनाव लड़ा है। 81 सदस्यीय सदन में बीजेपी को एग्जिट पोल के अनुमान के मुताबिक 22 से 32 सीटों पर जीत हासिल हो सकती है। वहीं विपक्षी गठबंधन की झोली में 38 से 50 सीट जा सकती है। झारखंड विधानसभा में बहुमत का जादुई आंकड़ा 41 का है। वहीं दूसरे बड़े IANS-Cvoter-ABP एग्जिट पोल ने जेएमएम के नेतृत्व वाले गठबंधन को 31-39 सीटें मिलने का अनुमान जताया है, जबकि भाजपा को 28-38 सीटें मिलने का अनुमान है। इसके अलावा टाइम्स नाउ के एग्जिट पोल में भी बीजेपी सत्ता से जाती हुई दिख रही है। टाइम्स नाउ ने झारखंड में बीजेपी को 28 सीटें मिलने का अनुमान जताया है, जबकि कांग्रेस, जेएमएम और आरजेडी गठबंधन को 44 सीटें मिलती दिख रही हैं।

इन चुनावी सर्वें को देखने से एक अंदाज ये लगता है कि भाजपा किसी भी सर्वें में बहुमत के लिए आवश्यक 41 सीटें नहीं प्राप्त कर रही है। अगर एक औसत निकाला जाए तो भाजपा की गाड़ी 30-32 सीट के आस-पास अटक सकती है। यानी उसे बहुमत जुटाने के लिए 10-12 सीटों की जरूरत पड़ेगी। 81 सदस्यीय विधानसभा में 10-12 सीटे जुटाना बहुत आसान नहीं होगा। पर बहुत मुश्किल भी नहीं होगा। भाजपा की सारी आशाएं आजसू के विजयी प्रत्याशियों को तोड़ने पर आधारित हो सकती हैं जो अभी तक सत्ता में उन्हीं के साथ थी। ये संख्या अधिकतम चार विधायकों की हो सकती है क्योंकि इससे ज्यादा सीटे किसी सर्वें ने आजसू को नहीं दी है। अब भाजपा के 30-32 और आजसू के सर्वाधिक चार सीटे जोड़ लें तो भाजपा 34-36 सीट तक पहुंच सकती है। सर्वे में निर्दलीयों का अनुमान अधिकतम 9 सीटों का है। अब अगर सारे निर्दलीय भाजपा के गोद में गिर जाए तो भाजपा 41 का आंकड़ा पार कर सकती है।

महाराष्ट्र विधानसभा में जिस ढंग से शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की सरकार लगभग एक महीने की जद्दोजहद के बाद बनी उससे ये पता चलता है कि सारी ताकत लगाने के बावजूद भाजपा ऑपरेशन लोटस के तहत न तो विपक्षी विधायकों को खरीद सकी और न ही सीबीआई और ईडी के बल पर उन्हें अपने पाले में कर सकी। इस पृष्ठभूमि को अगर ध्यान में रखे तो भाजपा के लिए ऑपरेशन लोटस के जरिए भी सरकार बना पाना बहुत आसान नहीं होगा। पर एक बात तय है कि भाजपा को ऑपरेशन लोटस का ही सहारा है। मतदाता उनको गद्दी सौंपने के मूड में दिखाई नहीं दिए।

कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा, और राजद एक सशक्त विपक्ष के रूप में भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ी है। इसमें तोडफ़ोड़ की गुंजाइश बहुत ही कम दिखाई देती है। बदले राजनैतिक माहौल में विपक्षी गठबंधन का हौसला बढ़ा है। इनके बीच भी कोई संजय राउत और कोई शरद पवार पैदा हो सकता है। राजनीति संभावनाओं का सबसे चर्चित और सफल खेल है। इसलिए ये खेला झारखंड में भी खेला जा सकता है। भाजपा जो हर हाल में सत्ता हथियाने की कला में माहिर है उसे देखते हुए ऐसा नहीं लगता है कि झारखंड में वह गैर भाजपाई सरकार आसानी से बन जायेगी। आखिर वहां भी राज्यपाल भाजपा का ही है तो वह महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की तरह सत्ता पक्ष के प्रति अपनी निष्ठा दिखाने का हर संभव प्रयास क्यों नहीं करेगा। देखना होगा कि कीचड़ से निकलने वाला ऑपरेशन लोटस कोई करामात दिखाता है या फिर कीचड़ में ही धंस जाता है।

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)

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