Wednesday - 10 January 2024 - 6:14 AM

मोदी का भाषण और उमर-मुफ्ती पर पब्लिक सेफ्टी एक्ट का लगना

न्यूज डेस्क

जम्मू-कश्मीर के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती पर शुक्रवार रात को पब्लिक सेफ्टी एक्ट लगा दिया गया है।
सरकार के इस कदम का विपक्षी दल कांग्रेस ने विरोध किया है तो वहीं महबूबा मुफ्ती की बेटी ने भी मोदी सरकार पर निशाना साधा है।

पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा मुफ्ती ने अपनी मां पर लगाये गए पीएसए के बारे में कहा कि उनकी मां पर बीती रात 9.&0 बजे पीएसए लगाया गया है।

इल्तिजा ने लिखा है, “जब मैं छोटी थी, मैंने अपनी मां को अवैध रूप से गिरफ्तार किए गए नौजवानों को छुड़ाने के लिए मशक्कत करते हुए देखा। अब मुझे ये संघर्ष करना पड़ रहा है। जिदंगी फिर वहीं आ गई है।”

वहीं दूसरे ट्वीट में इल्तिजा ने लिखा है, बीजेपी के मंत्री मुसलमानों के खिलाफ अपने भाषणों में आग उगल रहे हैं और सम्मानित हो रहे है। दूसरी तरफ जम्मू कश्मीर के तीन मुख्यमंत्री पिछले 6 महीने से जेल में हैं जो भारत का इकलौता मुस्लिम बहुल राज्य है। आप क्रोनोलॉजी समझिए।

पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के अलावा नेशनल कॉन्फ्रेंस के महासचिव अली मोहम्मद सागर और पीडीपी के महासचिव सरताज मदनी पर भी ये कानून लगाया गया है।

वहीं इन नेताओं पर पीएसए लगाए जाने पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व वित्त मंत्रीनेता पी चिदांबरम ने ट्विटर पर लिखा, ” उमर अब्दुल्लाह, महबूबा मुफ़्ती और अन्य लोगों के खिलाफ पब्लिक सेफ्टी एक्ट के क्रूर आह्वान से हैरान और परेशान हूं।”

मालूम हो कि पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के पिता फारूक अब्दुल्ला को भी 5 अगस्त 2019 में इसी कानून के तहत हिरासत में लिया गया था।

लोकसभा में पीएम मोदी का भाषण

दरअसल सरकार के इस कदम को लोग छह जनवरी को लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए भाषण से जोड़कर देख रहे हैं।

पीएम मोदी गुरुवार को जम्मू-कश्मीर और अनुच्छेद 370 का जिक्र करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला का जिक्र किए थे। उन्होंने कहा, महबूबा मुफ्ती ने 5 अगस्त को कहा था कि भारत ने कश्मीर के साथ धोखा किया। हमने जिस देश के साथ रहने का फैसला किया था, उसने हमें धोखा दिया है। ऐसा लगता है कि हमने 1947 में गलत चुनाव कर लिया था। क्या ये संविधान को मानने वाले लोग इस प्रकार की भाषा को स्वीकार कर सकते हैं?

मोदी ने आगे कहा, “उमर अब्दुल्लाह ने कहा था कि 370 को हटाने से ऐसा भूकंप आएगा कि कश्मीर भारत से अलग हो जाएगा। फारूक अब्दुल्लाह जी ने कहा कि 370 को हटाए जाने से कश्मीर की आजादी का रास्ता साफ होगा। अगर 370 हटाया गया तो भारत का झंडा लहराने के लिए कश्मीर में कोई नहीं बचेगा। क्या भारत का संविधान मानने वाला ऐसी बात स्वीकार कर सकता है क्या?”

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पीएसए के तहत कब-कौन गिरफ्तार हुआ

जब पब्लिक सेफ्टी एक्ट लागू किया गया तो इसका मकसद लकड़ी के तस्करों को रोकना था। लेकिन बाद में इसका बहुत दुरुपयोग हुआ और इसका राजनीतिक कारणों से इस्तेमाल किया जाने लगा।

जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी और चरमपंथी घटनाओं को रोकने को लेकर इस कानून का बहुतायत में इस्तेमाल किया जाता रहा है।

2016 में चरमपंथी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की मुठभेड़ में मौत के बाद घाटी के सैकड़ों लोगों को इसी कानून के तहत हिरासत में लिया गया था।

मानवाधिकारों की रक्षा से जुड़े संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 2012 और 2018 के बीच 200 मामलों का अध्ययन किया। इसके मुताबिक तत्कालीन मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने विधानसभा में यह कहा था कि 2016-2017 में पीएसए के तहत 2,400 लोगों को हिरासत में लिया गया। हालांकि इनमें से 58 फीसदी मामलों को कोर्ट ने खारिज कर दिया।

पब्लिक सेफ्टी एक्ट क्या है?

पब्लिक सेफ्टी एक्ट राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के समान है जिसे सरकारें एहतियातन हिरासत में लेने के लिए इस्तेमाल करती रही हैं। पीएसए किसी व्यक्ति को सुरक्षा के लिहाज से खतरा मानते हुए एहतियातन हिरासत में लेने का अधिकार देता है।

इस कानून के तहत किसी स्थान पर जाने पर रोक लगाई जा सकती है। सरकार आदेश पारित कर किसी स्थान पर लोगों के जाने पर रोक लगा सकती है। इस कानून की धारा 23 के तहत इस अधिनियम में बीच-बीच में बदलाव किए जाने का प्रावधान भी है।

राज्य की सुरक्षा और कानून व्यवस्था के लिए खतरा समझते हुए किसी महिला या पुरुष को इस कानून के तहत हिरासत में लिया जा सकता है।

जैसा कि इसकी परिभाषा से स्पष्ट है हिरासत में लेना सुरक्षात्मक (निवारक) कदम है न कि दंडात्मक। पीएसए बिना किसी ट्रायल के किसी व्यक्ति को दो साल हिरासत में रखने की इजाजत देता है।

इसे डिविजनल कमिश्नर या जिलाधिकारी के प्रशासनिक आदेश पर ही अमल में लाया जा सकता है न कि पुलिस से आदेश पर।

पीएसए में हिरासत में लिए गए दोनों के पास एडवाइजरी बोर्ड के पास जाने का अधिकार भी है और उसे (बोर्ड को) आठ हफ्तों के भीतर इस पर रिपोर्ट सौंपनी होगी।

गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में पब्लिक सेफ्टी एक्ट शेख अब्दुल्लाह के शासनकाल में 8 अप्रैल 1978 को लागू किया गया था। उन्होंने इसे विधानसभा में पारित कराया था। इसके तहत 18 साल से अधिक उम्र के किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लिया जा सकता है और उस पर बिना कोई मुकदमा चलाए उसे दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है।

हालांकि पहले यह उम्र सीमा 16 साल थी, जिसे 2012 में संशोधित कर 18 वर्ष कर दिया गया। 2018 में यह भी संशोधन किया गया कि जम्मू-कश्मीर के बाहर के भी किसी व्यक्ति को पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत हिरासत में लिया जा सकता है।

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