Wednesday - 31 July 2024 - 5:20 AM

एसिम्प्टोमैटिक कोरोना कितना खतरनाक ?

डॉ. चक्रपाणि पाडेंय

एसिम्प्टोमैटिक कोरोना मतलब बिना लक्षण वाले कोरोना मरीज। मतलब ये वो मरीज हैं जिनमें कोरोना का कोई लक्षण नहीं होता फिर भी ये कोरोना पॉजिटिव होते हैं। अब ये मामले डॉक्टरों के लिए नया सिरदर्द बन गए हैं। ऐसे मामले देश के कई राज्यों से सामने आ रहे हैं, जो चिंता बढ़ाने वाले हैं।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी एसिम्प्टोमैटिक बिना लक्षण वाले कोरोना मरीजों के मिलने को लेकर चिंता जाहिर कर चुके हैं। उन्होंने रविवार के पत्रकारों से बातचीत में चिंता जताते हुए कहा था कि एक दिन में हुए 736 टेस्ट रिपोर्ट में से 186 लोग कोरोना पॉजिटिव निकले और ये सभी ‘एसिम्प्टोमैटिक’ मामले हैं। किसी को बुखार, खासी, सांस की शिकायत नहीं थी। इन लोगें को पता ही नहीं था कि ये लोग कोरोना लेकर घूम रहे हैं। ये और भी खतरनाक हैं।

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मुख्यमंत्री केजरीवाल की चिंता जायज है। उन्होंने सिर्फ दिल्ली के परिप्रेक्ष्य में यह बातें कही है लेकिन भारत जैसी घनी आबादी वाले देश में एसिम्प्टोमैटिक कोरोना मरीज कितने खतरनाक साबित हो सकते हैं इसका अंदाजा लगा पाना मुश्किल है। तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, असम, राजस्थान जैसे दूसरे  राज्यों ने भी इस तरह के मामले सामने आने की बात स्वीकार की है।

दरअसल बिना लक्षण वाले कोरोना मरीज ‘दो मुंही’ तलवार हैं। जब किसी मरीज में कोई लक्षण नहीं होगा, तो वो अपना टेस्ट भी नहीं कराएंगे, तो इन्हें पता ही नहीं चलेगा और ये कोरोना फैलाते चले जाएंगे। इसलिए जो भी आदमी बाहर जाता है, उसे टेस्ट कराना चाहिए। जैसे ही लोगों को पता चलता है कि जिनके सम्पर्क में आए हैं वो कोरोना पॉजिटिव है, उनको ख़ुद आगे आकर टेस्ट कराना चाहिए।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक कोरोना संक्रमण फैलने के तीन रास्ते हो सकते हैं। पहला है सिम्प्टोमैटिक। इसमें वो लोग आते हैं जिनमें कोरोना के लक्षण देखने को मिले और फिर उन्होंने दूसरों को इसे फैलाया। ये लोग लक्षण दिखने के पहले तीन दिन में लोगों को कोरोना फैला सकते हैं।

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दूसरा है प्री सिम्प्टोमैटिक। इसमें कोरोना वायरस के संक्रमण फैलाने और लक्षण दिखने के बीच भी कोरोना का संक्रमण फैल सकता है। इसकी समय सीमा 14 दिन की होती है, जो इस वायरस का इंक्यूबेशन पीरियड भी है। इनमें सीधे तौर पर कोरोना के लक्षण नहीं दिखते, लेकिन हल्का बुखार, बदन दर्द जैसे लक्षण शुरुआती दिनों में दिखते हैं। तीसरा है एसिम्प्टोमैटिक। इसमें मरीज में कोरोना का कोई लक्षण नहीं दिखता लेकिन वह कोरोना पॉजिटिव होता है और मरीज संक्रमण फैला सकते हैं।

दुनिया के अन्य देशों में भी एसिम्प्टोमैटिक मामले देखने को मिले हैं, लेकिन भारत में इनकी संख्या थोड़ी ज़्यादा है। एसिम्प्टोमैटिक मामले सभी देशों के लिए चुनौती बन रहे हैं। डॉक्टरों के मुताबिक दुनिया भर में इस तरह के एसिम्प्टोमैटिक कोरोना पॉजिटिव मामले तकरीबन 50 फीसदी के आस-पास हैं। भारत में भी इसके मामले लगभग 40 फीसदी मिले हैं। भारत के लिए चिंता की बात है, क्योंकि यहां युवा लोगों की जनसंख्या बाकी देशों के मुकाबले अधिक है, और उन्हीं को कोरोना संक्रमण ज्यादा हो रहा है। यही वजह है कि भारत को इस नए ट्रेंड से चिंतित होने की जरूरत है।

केंद्र सरकार की ओर से 4 अप्रैल को जो आंकड़ा जारी किया गया था उसमें देश में 20 से 49 की उम्र के बीच के 41.9 फीसदी लोग कोरोना पॉजिटिव तो वहीं 41 से 60 साल की उम्र वाले तकरीबन 32.8 फीसदी लोग कोरोना पॉजिटिव पाये गए थे। इन आंकड़ों से साफ है कि देश में युवा ही कोरोना के संक्रमण की चपेट में ज़्यादा आ रहे हैं। इसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि भारत की इम्यून सिस्टम दूसरे देश के नागरिकों के मुकाबले ज़्यादा बेहतर है, इसलिए भारतीयों में कोरोना के लक्षण नहीं दिखते और फिर भी कोरोना के मरीज होते हैं।

 

दरअसल हम भारतीयों का रहन-सहन, भोगौलिक स्थितियां इसके लिए जिम्मेदार है। हमारा प्रदेश गर्म है, हम गर्म खाना खाते हैं, गर्म पेय पीते हैं, इस वजह से हमारे यहां एसिम्प्टोमैटिक मामले ज्यादा  देखने को मिलते हैं। कोरोना वायरस हीट सेंसेटिव है। हमारे यहां युवाओं में ये बीमारी ज्यादा फैल रही है और लोग ज्यादा ठीक भी हो रहे हैं। ये सब इस बात का सबूत है कि भारतीयों का इम्यून सिस्टम ज़्यादा बेहतर तरीके से काम करता है और इसलिए कोरोना से होने वाली मौत भी भारत में इस वक्त कम है।

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भारत सरकार की माने तो एसिम्प्टोमैटिक कोरोना मरीजों की संख्या दुनिया में बहुत ज़्यादा नहीं है, लेकिन सरकार इसे चुनौती जरूर मानती है। केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल भी कह चुके हैं कि हमें इस तरह के मामलों से निपटने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो लोग हॉटस्पॉट एरिया में रह रहे हैं और बुज़ुर्ग हैं, हाई रिस्क में हैं, उन्हें अपने टेस्ट कराने चाहिए। उसी तरह से जो लोग एसिम्प्टोमैटिक हैं लेकिन कोरोना पाजिटिव लोगों के सम्पर्क में आए हैं, उन्हें ख़ुद को सेल्फ आईसोलेट करना चाहिए। जरूरत पड़े तो हमसे सम्पर्क करें, उन्हें अस्पताल में रखने की जरूरत होगी तो हम वो भी सुविधा उन्हें देंगे।

क्या कहते हैं शोध

15 अप्रैल को मेडिकल जरनल नेचर मेडिसिन में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसमें कहा गया है कि कोविड 19 का मरीज लक्षण दिखने के 2-& दिन पहले ही लोगों को संक्रमित करना शुरू कर सकता है। 44 फीसदी मामलों में ऐसा ही पाया गया। पहला लक्षण दिखने के बाद, दूसरों को संक्रमित करने की क्षमता भी पहले के मुकाबले कम होती है। इस रिपोर्ट में 94 मरीजों के टेस्ट सैम्पल लिए गए थे। उन पर की गई शोध से ही उन्हें इस बात का पता चला।

भारत के अशिकतर डॉक्टरों का मानना है कि भारत को एसिम्प्टोमैटिक मामलों पर अपनी अलग रिसर्च भी करनी चाहिए ताकि इससे ठोस जानकारी निकाल कर उस पर सरकार अमल कर सके। इससे ये भी पता चल पाएगा, कि हमें कोरोना हॉटस्पॉट के बाहर भी ऐसे एसिम्प्टोमैटिक लोगों के टेस्ट करने की जरूरत है या नहीं।

(डा. चक्रपाणि पांडेय वरिष्ठ फीजिशियन हैं। वह कई हेल्थ जर्नल में नियमित लिखते हैं।) 

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