Wednesday - 10 January 2024 - 5:30 AM

चुनाव में इन चुनौतियों कैसे निपटेंगी मायावती ?

न्‍यूज डेस्‍क

बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती लोकसभा चुनाव में 10 सीटों पर जीत के बाद आत्मविश्वास से लबरेज दिख रही हैं। समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अखिलेश यादव के साथ अपने सियासी रिश्‍ते खत्‍म करने के बाद बसपा प्रमुख ने आगामी उपचुनाव में अकेले लड़ने का फैसला किया है।

जानकारों की माने तो लोकसभा चुनाव में सपा के साथ हुए गठबंधन के सहारे मायावती शुन्‍य से 10 सीटों तक पहुंची हैं, लेकिन अखिलेश यादव के बिना अकेले सफर करने का मायावती का फैसला उल्‍टा भी पड़ सकता है। उपचुनाव और 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में बसपा सुप्रीमो की राह आसान नहीं लग रही है।

गौरतलब है कि मायावती ने ऐलानिया तौर पर सपा के साथ संबंध विच्छेद कर लिया है। अब पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यूपी उपचुनाव की है। लोकसभा चुनाव में दस सीटें जीतकर बसपा ने राजनीतिक ताकत थोड़ी मजबूत की है। लेकिन, इन दस सीटों पर उसने जीत तब हासिल की जब वो सपा के साथ गठबंधन में थी।

बता दे कि बसपा ने 2014 का लोकसभा चुनाव मोदी लहर में अकेले लड़ा था और वो अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी। कुछ ऐसा ही 2017 के विधानसभा उपचुनाव में भी हुआ और पार्टी को महज 17 सीटों से समझौता करना पड़ा।

12 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव का समीकरण

लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करके यूपी के 11 विधायक, सांसद बन गए हैं। खाली हुई 11 सीटों में 8 पर बीजेपी का कब्जा था और 1-1 सीट समाजवादी पार्टी और बीएसपी के खाते में थी। इनके साथ हमीरपुर विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव होना है।

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अगर 2017 के चुनावों के मुताबिक इन उपचुनावों के गणित को समझा जाए तो तीन या चार ही सीटें हैं जहां बसपा मजबूत प्रदर्शन कर सकती है। 2017 के आंकड़ों के मुताबिक बसपा तीन क्षेत्रों में ही दूसरे स्थान पर रही थी। जलालपुर सीट उसके कब्जे में थी। अब गठबंधन टूटने के बाद बसपा को सभी सीटों पर समीकरण इस तरह साधने होंगे कि उसके प्रत्याशी जीतें।

दलितों वोट बैंक में सेंध मारी

बसपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने दलित वोट बैंक को बचाना है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) जो तेजी से दलित वोट बैंक में सेंध लगा रही है। वहीं, दूसरी ओर गठबंधन टूटने और मायावती के धोखेबाजी से आहत सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी दलित वोटरों को अपने साथ लाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। ऐसे में दलित मायावती के साथ जाते हैं या उनका साथ छोड़ देते हैं ये देखना दिलचस्‍प होगा।

अल्पसंख्यक

सपा और बसपा के गठबंधन की वजह से यूपी में मुस्लिम वोटरों ने लोकसभा चुनाव में मोटे तौर पर एक जगह वोट किया था, लेकिन अब इस वोटर समूह के सामने भी असमंजस है। इस बार बसपा के जीते हुए प्रत्याशियों में बड़ा प्रतिशत अल्पसंख्यकों का है। हालांकि, बीजेपी के ट्रिपल तलाक बिल के बाद माना जा रहा है कि मुस्लिम वोटरों के बीच बीजेपी ने अपने पैठ बनानी शुरू कर दी हैं। वहीं, सपा को अब भी भरोसा है कि यादव वोटों के साथ मुस्लिम वोटर वापस उनकी तरफ आ सकते हैं।

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अखिलेश का कद 

समाजवादी पार्टी की तरफ से बयान आया है कि मायावती उनका विरोध इस वजह से कर रही हैं क्योंकि दलितों का समर्थन सपा को मिल रहा है। अखिलेश यादव लगातार अपनी छवि एक उदार नेता की बना रहे हैं। दोनों पार्टियों का संबंध जुड़ने से लेकर टूटने तक अखिलेश यादव ने लगातार संयमित भाषा और राजनीति का इस्तेमाल किया है। बसपा को इससे भी लड़ना होगा। मायावती की छोटी सी भूल उनके वोट बैंक और सोशल इंजिनियरिंग को बिगाड सकती हैं।

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