Saturday - 13 January 2024 - 7:23 PM

न्याय मांगने गई दुष्कर्म पीड़िता ही भेज दी गई जेल

  • जेल भेजी गई दुष्कर्म पीड़िता के मामले में सामने आए देश के जाने-माने अधिवक्ता

जुबिली न्यूज डेस्क

ऐसा शायद ही सुनने में आया हो कि किसी दुष्कर्म पीड़िता को न्याय दिलाने के बजाए उसे ही जेल भेज दिया गया हो। पर ऐसा बिहार में हुआ है जहां गैंगरेप पीड़िता को ही जेल भेज दिया गया है।

बिहार के अररिया जिले में ऐसा ही एक मामला सामने आया है जिस पर देश के जाने-माने वकीलों ने हाईकोर्ट से दखल देने की गुहार लगाई है।

अररिया जिले में यह घटना उस समय हुई जब गैंगरेप पीडि़ता 22 वर्षीया युवती धारा 164 का बयान दर्ज कराने आई थी। पीड़िता के साथ जनजागरण शक्ति संगठन की दो सहयोगियों को भी जेल भेजा गया है। अब इन्हें जेल से रिहा कराने के लिए देशभर के सामाजिक संगठनों व जाने-माने अधिवक्ताओं ने पहल की है।

ये भी पढ़े:  महिला अधिकारी का मुख्यमंत्री पर आरोप, कहा-ड्रग तस्कर को छोड़ने के लिए…

ये भी पढ़े:  तो विकास दुबे ने नहीं कब्जाई किसी की जमीन?

ये भी पढ़े:  तो क्या सचिन को फिर गले लगायेंगे राहुल ?

विरोध प्रदर्शनों के बावजूद महिलाओं के अपराध कम नहीं हो रहे.

क्या है मामला

अररिया नगर थाना क्षेत्र में सामूहिक बलात्कार की यह घटना छह जुलाई को हुई। सात जुलाई को पीडि़ता ने अररिया महिला थाने में कांड संख्या 59/2020 के तहत एफआईआर दर्ज कराई। दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि पीडि़ता की साहिल नामक एक युवक से पुरानी जान-पहचान थी। उसने छह जुलाई को बाइक सिखाने के बहाने सुनसान जगह में ले जाकर तीन अन्य दोस्तों के साथ उससे सामूहिक बलात्कार किया। इसके बाद साहिल ने उसे एक नहर के पास अकेला छोड़ दिया।

पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए मुख्य आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भी भेज दिया। इसी मामले में 10 जुलाई को वह स्थानीय अदालत में जन जागरण शक्ति संगठन की दो सहयोगियों के साथ अपना बयान दर्ज कराने आई थी। पीडि़ता पर न्यायिक कार्य में कथित तौर पर बाधा डालने का आरोप में जेल भेज दिया गया है।

अब इस इस मामले को लेकर देश के जाने-माने 376 वकीलों एवं कई सामाजिक संस्थाओं व कार्यकर्ताओं ने पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर मामले में हस्तक्षेप करने को कहा है। इन पर संज्ञान लेते हुए अदालत ने इन पत्रों को जनहित याचिका (पीआइएल) में बदल दिया है। मुख्य न्यायाधीश संजय करोल ने अररिया के जिला व सत्र न्यायाधीश से पूरे प्रकरण की रपट तलब करते हुए बीते गुरुवार को सुनवाई का निर्देश जारी कर दिया।

इस पत्र पर सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह, अधिवक्ता प्रशांत भूषण, वृंदा ग्रोवर, रेबेका जॉन, मुंबई हाईकोर्ट की वरीय अधिवक्ता गायत्री सिंह व पटना हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता बसंत कुमार चौधरी समेत 376 वकीलों के हस्ताक्षर हैं।

ये भी पढ़े: गहलोत से नहीं तो फिर किससे नाराज हैं सचिन ?

ये भी पढ़े: क्या अशोक गहलोत का यह बयान राजनीतिक है?

प्रतीकात्मक चित्र .

तीनों को 240 किमी दूर भेजा गया जेल

पटना उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस व अन्य जजों को 15 जुलाई, 2020 को भेजे गए पत्र में देशभर के 376 अधिवक्ताओं ने कहा है कि हमें बिहार के अररिया जिले में छह जुलाई को बलात्कार की शिकार हुई 22 वर्षीया युवती व उसके दो मददगारों के संबंध में बहुत ही विचलित करने वाला समाचार प्राप्त हुआ है। समाचार के मुताबिक धारा 164 के तहत बयान दर्ज कराने आई पीडि़त युवती व उसके दो सहयोगियों को उसकी मनोदशा को संवेदनशीलता के साथ देखे बिना अदालत की अवमानना के आरोप में माननीय विद्वान मजिस्ट्रेट द्वारा न्यायिक हिरासत में लेने का निर्देश जारी किया गया। तीनों को न्यायिक हिरासत में लेकर वहां से 240 किलोमीटर दूर दलसिंहसराय जेल भेज दिया गया।

चीफ जस्टिस को लिखे पत्र में अधिवक्ताओं ने कहा है कि 10 जुलाई को बयान दर्ज कराने के दिन पीडि़त युवती मानसिक तौर पर बहुत तनाव में थी। उस दिन उसने सबेरे से कुछ खाया-पीया भी नहीं था। दुष्कर्म की पीड़ा के कारण वह कुछ दिनों से सो भी नहीं पा रही थी। इसी दौरान उसे बार-बार पुलिस व अन्य लोगों को अपने साथ हुई घटना को बताना पड़ रहा था। उसकी इस नाजुक स्थिति को संवेदनशीलता के साथ देखने की जरूरत थी। इनकी मनोदशा को समझने के बजाए तीनों को जेल भेज दिया गया।

यह भी उल्लेखनीय है कि सामूहिक बलात्कार का शिकार होने के बावजूद पीडि़त युवती का कोरोना टेस्ट नहीं कराया गया। न्यायिक कार्रवाई के घंटे भर के अंदर पिता के नाम के साथ पीडि़ता का विवरण व पूरा पता भी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को बता दिया गया। ऐसी ही एक रिपोर्ट में रिपोर्टर कोर्ट क्लर्क के साथ फाइलिंग सेक्शन में बैठा दिखाई दिया।

अधिवक्ताओं ने कहा है कि हम मानते हैं कि जिस मनोदशा में उन्हें जेल भेजा गया वह ज्यादती है। इनकी स्थिति को संवेदनशीलता से नहीं देखा गया। हमें डर है कि अपने मददगारों से अलग होना और जेल भेजा जाना पीडि़ता  के स्वास्थ्य पर कहीं प्रतिकूल प्रभाव न डाले।

पत्र में यह भी लिखा गया है कि यह भी देखा गया है कि सामूहिक बलात्कार के मूल मामले (59/2020) की जगह अदालत की अवमानना के मामले पर ही ध्यान दिया जा रहा है। इसलिए हम सबों की माननीय उच्च न्यायालय से दरख्वास्त है कि इस मामले में हस्तक्षेप किया जाए जिसमें संवेदनशीलता को पूर्णतया दरकिनार कर दिया गया है।

प्रतीकात्मक चित्र .

महिला आयोग ने भी किया हस्तक्षेप

राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी मामले का संज्ञान लेते हुए पीडि़तों की सुरक्षा के प्रति चिंता जाहिर की है। इस संबंध में आयोग ने पटना उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को भी पत्र लिखा है। पत्र में कहा है- “हमें देश की न्यायिक व्यवस्था पर पूरा भरोसा है। उम्मीद है कि तीनों को न्याय मिलेगा और अदालत उन्हें सभी आरोपों से बरी करेगी। हालांकि हमारी कोशिश होगी कि यथोचित फोरम पर बातों को संज्ञान में लाया जाए ताकि बलात्कार जैसे जघन्य अपराध से पीडि़त महिलाओं के प्रति संवेदना के साथ न्याय किया जा सके।”

ये भी पढ़े:  दुनिया के करोड़पतियों ने सरकारों से की और ज्यादा टैक्स वसूलने की अपील

यह भी पढ़ें :  ‘इस साल के आखिर तक अमेरिका को मिल जाएगी कोरोना वैक्सीन’

Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com