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आखिर सरकारें कब पूरा करेंगी सुशासन देने का वादा?

प्रीति सिंह

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम ही सुशासन बाबू हैं। बिहार की जनता ने उन्हें सत्ता में इसीलिए सौंपा था कि बिहार के जंगलराज को खत्म कर सुशासन स्थापित करेंगे, लेकिन हालात इसके इतर है। बिहार में स्वास्थ्य, शिक्षा, क्राइम, रोजगार जैसी अनगिनत समस्याएं मुंह बाएं खड़ी हैं।

ऐसा ही कुछ हाल उत्तर प्रदेश का है। क्राइम की बड़ी-बड़ी घटनाओं की वजह से उत्तर प्रदेश आए दिन चर्चा में बना रहता है। एक ओर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दावा करते हैं कि उनके सत्ता में आने के बाद से अपराधी उत्तर प्रदेश छोड़कर जा रहे हैं या तो दुनिया।

बहू-बेटियों की सुरक्षा का वादा लेकर सत्ता में आई बीजेपी के राज में ही आए दिन राज्य में बहु-बेटियों की इज्जत तार-तार हो रही है। इसकी जह से योगी की कानून-व्यवस्था पर सवाल उठ रहा है। कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर योगी सरकार लंबे समय से कटघरे में हैं।

ऊपर जिन दो राज्यों का जिक्र इसलिए किया गया है वो पूरे देश में सबसे ज्यादा चर्चा में रहते हैं। यूपी तो देश की राजनीति का केंद्र बिंदु हैं। दिल्ली की कुर्सी किसको मिलेगी ये उत्तर प्रदेश की राजनीति तय करती है। और वहीं यूपी बदहाल कानून-व्यवस्था की वजह से चर्चा में रहता है। जबकि बीजेपी 2017 के विधानसभा चुनाव में रामराज्य लाने का वादा लेकर सत्ता में आई थी, लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा।

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कामकाज पर सवाल सिर्फ विपक्षी दल और जनता ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय एजेंसियों की रिपोर्ट में भी उठ रही हैं। सुशासन के मामले में केरल शीर्ष पर है तो उत्तर प्रदेश सबसे नीचे।

दरसअल सत्ता की कमान संभालते वक्त हर सरकार बेहतर सुशासन देने के दावे करती है, मगर हकीकत में वे दावे सिरे नहीं चढ़ पाते। सुशासन मतलब चुस्त कानून-व्यवस्था, बेहतर बुनियादी सुविधाएं और सेवाएं, कारोबार और रोजगार के अच्छे अवसर आदि।

फिलहाल ये सब बातें अब सिर्फ पक्ष या विपक्ष में बंटे नागरिकों के संतोष या असंतोष पर निर्भर नहीं करतीं। अब तो कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां अध्ययन करने लगी हैं कि दुनिया के किस देश, किस राज्य और शहर में नागरिक सुविधाओं की क्या स्थिति है।

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देश के बंगलुरू की पब्लिक अफेयर सेंटर नामक एजेंसी ने भारत के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का सार्वजनिक मामलों को लेकर अध्ययन किया है। एजेंसी ने उन्हें अंकों के आधार पर वर्गीकृत करते हुए बताया है कि केंद्र शासित प्रदेशों में सुशासन के मामले में चंडीगढ़ सबसे ऊपर है।

यदि हम राज्यों की बात करें तो केरल शीर्ष पर और दक्षिण दूसरे सभी राज्य ऊपर के पायदान पर हैं और चर्चा में रहने वाला उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडीशा सबसे खराब स्थिति में हैं। उत्तर प्रदेश सबसे निचले पायदान पर है।

हां, कुछ दिनों पहले ही एक दूसरी एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि उत्तर प्रदेश कारोबार करने की दृष्टि से बाकी सभी राज्यों की तुलना में सबसे बेहतर है। इसी तरह के विरोधाभास दूसरे कुछ राज्यों के मामले में भी उभर सकते हैं।

दरअसल नेताओं ने सुशासन को चुनावी जुमला बनाकर रख दिया है। वह चुनाव में जनता को लुभाने के लिए सुशासन लाने का वादा करते हैं और चुनाव बाद उसे अगले चुनाव में इस्तेमाल करने के लिए संभाल कर रख देते हैं।

दरअसल सुशासन समग्र प्रयास से स्थापित होता है। यह कभी एकांगी नहीं हो सकता। ऐसा भी नहीं हो सकता कि लचीली नीतियां बना कर या कुछ आसानी उपलब्ध करा कर राज्य में कारोबार के लिए स्थितियां तो बेहतर बना ली जाएं, पर अपराध और भ्रष्टाचार रोकने के मामले में शिथिलता बरतते रहें।

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जब भी किसी प्रदेश में सुशासन और खुशहाली आंकी जाती है तो उसमें देखा जाता है कि वहां की सड़कों की क्या हालत है, वहां स्वास्थ्य सुविधाएं, शिक्षण संस्थाएं कैसी हैं। वहां के किसान, दुकानदार कितने सहज महसूस करते हैं।

राज्यों में महिलाएं और समाज के निर्बल कहे जाने वाले तबकों के लोग कितने सुरक्षित हैं। प्रशासन से आम लोगों की कितनी नजदीकी है। अगर कोई अपराध होता है, तो दोषियों की धर-पकड़ में कितनी मुस्तैदी दिखाई जाती है और कितने न्यायपूर्ण तरीके से उसे निपटाया जाता है।

बंगलुरू की पब्लिक अफेयर सेंटर नामक एजेंसी ने राज्यों में सुशासन संबंधी जो ताजा रिपोर्ट जारी की है उसने भी समानता, विकास और निरंतरता के आधार पर अध्ययन किया। इन बिंदुओं के महत्व को समझा जा सकता है।

इसके आधार पर अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले दिनों में किन राज्यों का देश के आर्थिक विकास में कैसा और कितना योगदान रह सकता है। टिकाऊ विकास के मामले में इनसे कितनी मदद मिल सकती है।

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हालांकि कुछ लोगों का यह तर्क हो सकता है कि छोटे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का दायरा छोटा और उनकी आबादी कम होती है, इसलिए वहां कानून-व्यवस्था और बुनियादी सुविधाओं के मामले में बेहतर काम हो पाते हैं, मगर उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे बड़े और सघन आबादी वाले राज्यों में सरकारों के सामने कई मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।

लेकिन यह भी सच है कि यह तर्क देकर जिम्मेदारियों से नहीं बचा जा सकता। यह तर्क देकर आप सरकार को नहीं बचा सकते।

राज्यों को उनके आकार और आबादी के हिसाब से ही बजटीय आबंटन किए जाते हैं, उनकी आमदनी भी उसी अनुपात में छोटे राज्यों की अपेक्षा अधिक मानी जा सकती है।

ऐसे में अगर बुनियादी स्तर पर वे बेहतर काम नहीं कर पातीं, तो यह उनकी नाकामी ही कही जाएगी। सुशासन के मामले में पिछड़े हर राज्य को अपने से बेहतर राज्यों से प्रेरणा लेनी चाहिए।

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