Saturday - 6 January 2024 - 4:17 PM

भारत में अल्पसंख्यक कौन ?

न्यूज डेस्क

एक बार फिर सवाल उठ रहा है कि भारत में अल्पसंख्यक कौन है? पिछले कुछ दिनों से देश में नागरिकता कानून का भारी विरोध हो रहा है और इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में अल्पसंख्यक किसे कहा जाए इसकी परिभाषा साफ कर दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धर्म की कोई सीमा नहीं होती। इसे अखिल भारतीय स्तर पर देखा जाना चाहिए, ना की राज्य के आधार पर।

कोर्ट ने यह फैसला भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर दी। अश्विनी ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के राज्यों समेत कुल आठ राज्यों में हिन्दू समुदाय के लोगों की जनसंख्या कम है, जिसकी वजह से उन्हें उन राज्यों में अल्पसंख्यकों का दर्जा और सुविधाएं मिलनी चाहिये।

फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा नेता की याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि इस देश में भाषाएं जरूर एक राज्य या एक से ज्यादा राज्यों तक सीमित हैं, लेकिन धर्मों की राज्य के आधार पर सीमाएं नहीं होतीं। कोर्ट ने यह भी कहा कि अदालत ने किसी को अल्पसंख्यक घोषित नहीं किया और यह सरकार का काम है।

कौन हैं अल्पसंख्यक?

भारत के संविधान में अल्पसंख्यक शब्द का उल्लेख तो है लेकिन परिभाषा नहीं है। जिन छह समुदायों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया है उनमें पारसी, मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन शामिल हैं। इनमें से पारसी, मुस्लिम, ईसाई, सिख और बौद्ध को 1993 में केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर अल्पसंख्यक घोषित किया। वहीं जैनों के लिए 2014 में एक अलग अधिसूचना जारी कर घोषित किया।

अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने इन्हीं अधिसूचनाओं को रद्द करने की अपील की थी, जिसे अदालत ने ठुकरा दिया।

केंद्र के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की तर्ज पर राज्यों में भी अल्पसंख्यक आयोग की शुरुआत हुई लेकिन अभी भी देश के 19 से ज्यादा राज्य ऐसे हैं जहां राज्य अल्पसंख्यक आयोग काम नहीं कर रहा है। इसी वजह से जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य में अल्पसंख्यक समुदाय को लेकर भ्रम की स्थिति कायम है और जिस समुदाय को अल्पसंख्यक माना जाना चाहिए उसके उलट लोगों को लाभ मिल रहा है।

अल्पसंख्यकों के लिए कब आई अलग व्यवस्था

गौरतलब है कि 1978 में गृहमंत्रालय ने अल्पसंख्यकों के लिए एक प्रस्ताव लाया जिसमें उनके लिए एक आयोग बनाने की बात कही। प्रस्ताव में कहा गया था कि “संविधान में दिए गए संरक्षण और कई कानूनों के होने के बावजूद, देश के अल्पसंख्यकों में एक असुरक्षा और भेदभाव की भावना है”। इसी भावना को खत्म करने के लिए अल्पसंख्यक आयोग का जन्म हुआ। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग कानून 1992 में आया, जिसके प्रावधानों के तहत ही 1993 की अधिसूचना आई।

आयोग का मुख्य उद्देश्य है अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों का संरक्षण करना, उनके हालात का समय-समय पर जायजा लेना, उनके विकास के लिए सरकार को सुझाव देना, उनकी शिकायतें सुनना और उनका निवारण करना। इस व्यवस्था में हर राज्य में एक राज्य अल्पसंख्यक आयोग बनाने का भी प्रावधान रखा गया , लेकिन आज भी देश के कम से कम 19 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अल्पसंख्यक आयोग नहीं है।

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में 2017 में भी एक याचिका दायर की गई थी जिसका उद्देश्य था जम्मू और कश्मीर राज्य में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करना। उस याचिका में दलील दी गई थी कि अल्पसंख्यक आयोग कानून राज्य में लागू ना होने के वजह से कई विसंगतियां आ गई थीं।

अदालत में याचिकाकर्ता ने बताया था कि 2007-08 में केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यकों के लिए 20,000 छात्रवृत्तियां निकाली थीं पर जम्मू और कश्मीर में इस योजना के तहत आईं 753 छात्रवृत्तियों में से 717 मुसलमानों को मिलीं, जो वहां अल्पसंख्यक नहीं थे।

हालांकि ऐसा ना हो इसके लिए प्रावधान पहले से है। अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए प्रधानमंत्री के 15-सूत्रीय कार्यक्रम के बारे में केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों में साफ लिखा हुआ है कि अगर किसी राज्य में राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक अधिसूचित किया गया समुदाय राज्य स्तर पर बहुसंख्यक है तो अलग अलग योजनाओं के लक्ष्यों का आबंटन उसके अलावा दूसरे अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों के लिए होना चाहिए।

स्पष्ट है कि जहां ऐसा नहीं हो रहा है वहां दिशानिर्देशों का उल्लंघन हो रहा है और इसे रोकने के लिए कदम उठाये जाने चाहिए।

 

अल्पसंख्यकों को मिलने वाले अधिकार और सुविधाएं

भारत के संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता के जो भी प्रावधान हैं, वे सभी अल्पसंख्यकों के लिए भी हैं। अल्पसंख्यकों को अपने हिसाब से शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना करने का और उन्हें चलाने का भी अधिकार है। इस तरह के संस्थानों को सरकारी मदद में भेदभाव से संरक्षण भी मिलता है।

जहां तक अल्पसंख्यकों को मिलने वाली सुविधाओं की बात है तो सरकारें समय-समय पर उनके लिए तरह-तरह की योजनाएं बनाती हैं। केंद्र सरकार ने 2005 में भारत में मुस्लिम समुदाय के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक हालत जानने के लिए जस्टिस सच्चर कमेटी बनाई थी। इस कमेटी ने 75 अलग-अलग सुझाव दिए और बाद में इनमें से कई को लागू भी किया गया।

इसके अलावा अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए प्रधानमंत्री का एक 15-सूत्री कार्यक्रम है, जिसके तहत सरकार अल्पसंख्यकों के लिए कुछ विशेष कदम उठाती है और विशेष योजनाएं चलाती है। इनमें स्कूली शिक्षा तक इनकी पहुंच को बढ़ाना, उर्दू के प्रचार और प्रसार के लिए और ज्यादा संसाधन देना, मदरसों का आधुनिकीकरण, अल्पसंख्यक विद्यार्थियों के लिए छात्रवृत्तियां, रोजगार और स्वरोजगार के अवसर बढ़ाना, तकनीकी प्रशिक्षण दे कर कौशल विकास करना शामिल है।

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