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मुशर्रफ को फांसी से बचाना पाक सेना की मजबूरी

न्यूज डेस्क

पाक के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान से कोसो दूर बैठे हैं, लेकिन उनकी वजह से इमरान सरकार सकते में है। पूर्व सैन्य शासक को अदालत ने मौत की सजा सुनाई तो पाकिस्तान की सेना ने फैसले के विरोध में झंडा बुलंद कर दिया। सेना के विरोध को देखते हुए पकिस्तान सरकार भी मुशर्रफ को बचाने में जुट गई है। अब सरकार क्या करेगी ये तो आने वाला वक्त बतायेगा लेकिन सेना की प्रतिक्रिया से तय है कि मुशर्रफ को दुबई से पाकिस्तान लाने के लिए सरकार विशेष प्रयास नहीं करेगी।

वर्तमान में पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ दुबई में रह रहे हैं। दुबई के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है। उनकी अनुपस्थिति में पाकिस्तान के इस्लामाबाद की एक विशेष अदालत ने 17 दिसंबर को उन्हें फांसी की सजा सुनाई। अदालत ने देशद्रोह के मामले में यह सजा सुनाई।

पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद छह के तहत अदालत ने परवेज मुशर्रफ को देश में आपातकाल लगाने के लिए दोषी पाया, जो नवंबर 2007 में वहां लगाई गई थी।

गौरतलब है कि 3 नवंबर, 2007 को पाकिस्तान में इमरजेंसी लगाने के जुर्म में परवेज मुशर्रफ पर दिसंबर 2013 में देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। मुशर्रफ को 31 मार्च, 2014 को दोषी ठहराया गया था।

पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद छह के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति बल प्रयोग या किसी अन्य असंवैधानिक तरीके से संविधान को रद्द करता है या उलट-पलट करता है या स्थगित करता है या प्रसुप्तावस्था में रखता है या ऐसा करने की साजिश करता है तो वह उच्च राजद्रोह का दोषी होगा। उच्च राजद्रोह के लिए ‘उच्च राजद्रोह (सजा) कानून, 1993, के तहत सजा मौत या आजीवन कारावास है।

अदालत के फैसले से सेना सकते में

पाकिस्तान के 72 वर्ष के शासन में लगभग आधे समय तक सेना ने शासन किया है। तीन जनरलों-अयूब खान, याह्या खान (जिन्होंने अयूब खान से सत्ता की कमान संभाली) और जिया-उल-हक, जिन्होंने जबरन सत्ता पर कब्जा किया और संविधान का उल्लंघन किया, लेकिन इन तीनों में से किसी को भी ट्रायल का सामना नहीं करना पड़ा। परवेज मुशर्रफ पहले सैन्य शासक हैं जिन पर मुकदमा चलाया गया और देशद्रोह का दोषी पाया गया।

अदालत के इस फैसले से सेना सकते में है। सेना ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि ऐसा लग रहा है कि कानूनी प्रक्रिया को अनदेखा किया गया है। सेना के रवैये को देखते हुए सरकार भी बचाव का रास्ता ढूूढ़ने में लग गई है।

मुशर्रफ को सेना का जिस तरह समर्थन मिल रहा है उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह फांसी के फंदे पर लटकने से बच जायेगा। सरकार उन्हें दुबई से पाकिस्तान लाने का कोई विशेष प्रयास नहीं करेगी। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि परवेज मुशर्रफ से सेना का खास लगाव है। हां, यह जरूर हो सकता है कि सेना में उनके कुछ चाहने वाले लोग मौजूद हों। इस प्रतिक्रिया को सेना बनाम सिविलियन की दृष्टि से देखना गलत न होगा।

दरअसल पाकिस्तानी सेना किसी भी हाल में प्रशासनिक कार्यों में अपने दखल पर विराम लगा देखना नहीं चाहती, वह चाहे अदालत के जरिये ही क्यों न हो।

सेना ने पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की वीरता की तारीफ की। पाकिस्तान के डीजी आइएसपीआर ने इसे लेकर एक ट्वीट किया और एक पत्र जारी किया है। सेना ने इस पत्र को शेयर किया है।

इस पत्र में कहा गया है कि पूर्व सेना प्रमुख, स्टाफ कमिटी के ज्वाइंट चीफ और पूर्व राष्ट्रपति, जिसने 40 साल तक देश की सेवा की, कई अहम युद्धों ने भाग हिस्सा लिया, ऐसे में वह गद्दार कैसे हो सकते हैं। इस पत्र के माध्यम से सेना ने पूर्व राष्ट्रपति का समर्थन किया है।

इतना ही नहीं सेना ने अदालत के फैसले पर भी सवाल उठाया है। सेना का तर्क है कि अदालत ने सजा देने की प्रक्रिया में पाक के संविधान की अनदेखी की है। आत्मरक्षा के अधिकार का उल्लंघन किया गया है। इसमें मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया है। सेना के इस पत्र में कहा गया है कि हम उम्मीद करते हैं कि परवेज मुशर्रफ के साथ न्याय किया जाएगा।

पाकिस्तान के इतिहास में ऐसा कोई सैन्य शासक नहीं हुआ जिसने पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद छह को ताक पर न रखा हो। भविष्य में भी ऐसी उम्मीद नहीं है कि कोई सैन्य शासक ऐसा नहीं करेगा। इसलिए मुशर्रफ को बचाना सेना की मजबूरी है। मुशर्रफ के संदर्भ में अदालत का फैसला 2-1 के बहुमत से किया गया।

विशेष अदालत की खंडपीठ के प्रमुख थे पेशावर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश वकार अहमद जहां विशेष अदालत की खंडपीठ के प्रमुख थे तो वहीं दो अन्य सदस्य थे सिंध हाईकोर्ट के जस्टिस नजर अकबर व लाहौर हाईकोर्ट के जस्टिस शाहिद करीम। न्यायाधीश अकबर इस निर्णय से असहमत थे।

सेना ने प्रॉक्सी शासन’  को अपनाया

दरअसल पाकिस्तान का सिविल राजनीतिक तंत्र चाहता है कि सेना का दखल देश के प्रशासनिक कार्यों में न हो। जब नवंबर 2007 में पाकिस्तान में आपातकाल घोषित हुआ था तो यहां की जनता इसके विरोध में सड़क पर उतर आई थी। पाक के मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार चौधरी को जब मुशर्रफ ने ‘बर्खास्त’  किया था तो इसके विरोध में वकील भी सड़क पर उतर आए थे। इसी की वजह से पाकिस्तान में जनता द्वारा चुनी हुई सरकार लौटीं। सरकार ने अपना पांच साल का कार्यकाल भी पूरा किया।

इससे सेना को भलीभांति यह एहसास हो गया कि वह ‘तख्ता पलट से राज’  नहीं कर सकती। इसलिए सेना ने अपनी रणनीति बदलते हुए ‘प्रॉक्सी शासन’  को अपनाया और अपने ही नुमाइंदे (इमरान खान) का ‘चुनाव’  जनता से करवा लिया। अब सेना को डर है कि कहीं ‘प्रॉक्सी शासन’  व्यवस्था भी उसके हाथ से न निकल जाए। इसलिए उसे यह दिखाने की जरूरत है कि हुक्मरानी अभी उसी की चल रही है। इसीलिए वह मुशर्रफ को बचाकर स्वयं को बचाने का प्रयास कर रही है। वह ऐसा मार्ग नहीं खुलने नहीं देना चाहती जो बाद में उसके लिए ही परेशानी का कारण बन जाए।

मुशर्रफ के सामने क्या है विकल्प

पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ वर्तमान में दुबई में हैं। यदि वह दुबई से इंग्लैंड चले गए तो उन्हें पाकिस्तान वापस लाना कठिन हो जायेगा। दूसरा यह कि 30 दिन के भीतर मुशर्रफ सुप्रीम कोर्ट में अपील करें, जिसके लिए उन्हें अदालत में हाजिर होना पड़ेगा, ऐसा वह करेंगे मुश्किल है। यदि सेना उन्हें सुरक्षा की गारंटी देती है तो शायद वह ऐसा करें। अगर सुप्रीम कोर्ट मुशर्रफ की अपील को ठुकराता है तो वह राष्ट्रपति से क्षमा याचना के लिए अपील कर सकते हैं।

फिलहाल इस मामले में पूर्व राष्ट्रपति  मुशर्रफ ने अभी तक कुछ नहीं कहा है। शायद विस्तृत निर्णय आने के बाद वह अपनी योजना तैयार करें।
गौरतलब है कि दिसंबर 2007 में आपातकाल हटाने के बाद परवेज मुशर्रफ ने अपनी सुरक्षा के लिए कुछ विधेयक पारित कराया था, बावजूद इसके नवाज शरीफ की सरकार ने दिसंबर 2013 में उनके खिलाफ अदालत में मामला दर्ज कराया। मार्च 2014 में जब वह अदालत में मौजूद थे तो उन पर आरोप लगाए गए, जिनके बारे में उन्होंने कहा था कि वह निदोर्ष है।

साल 2016 में मुशर्रफ कुछ सप्ताह बाद वापस लौटने का वायदा करते हुए पाकिस्तान छोड़ चले गए, पर वह वतन लौटे नहीं और शायद लौटेंगे भी नहीं।

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