Sunday - 7 January 2024 - 2:43 AM

अब संसद के बाहर किसान खोलेंगे मोर्चा!

जुबिली न्यूज डेस्क

केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में पिछले सात माह से देश भर के किसान दिल्ली की सीमाओं पर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। किसान इस मुद्दे पर सरकार से बातचीत को तैयार है लेकिन सरकार किसानों के मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है।

फिलहाल किसानों ने सरकार के रवैये को देखते हुए अपने आंदोलन को तेज करने का फैसला किया है। रविवार को संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि मानसून सत्र के दौरान संसद के बाहर प्रतिदिन 200 किसानों का एक समूह प्रदर्शन करेगा।

वहीं हरियाणा के जींद में महिला किसानों के धरने को संबोधित करते हुए भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि देश में अघोषित आपातकाल है और इस देश की जनता को जागना चाहिए।

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संयुक्त किसान मोर्चा ने रविवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा कि मानसून सत्र शुरू होने से दो दिन पहले सदन के अंदर कानूनों का विरोध करने के लिए सभी विपक्षी सांसदों को एक ”चेतावनी पत्र” दिया जाएगा।

किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा कि हम विपक्षी सांसदों से भी 17 जुलाई को सदन के अंदर हर दिन इस मुद्दे को उठाने के लिए कहेंगे और किसान संसद के बाहर बैठेंगे। हम विपक्षी सांसदों से कहेंगे कि सदन से वॉक आउट कर केंद्र को लाभ न पहुंचाएं। जब तक सरकार इस मुद्दे का समाधान नहीं करती तब तक सत्र को नहीं चलने दें।

किसान नेता ने कहा कि जब तक वे हमारी मांगें नहीं सुनेंगे हम संसद के बाहर लगातार विरोध प्रदर्शन करेंगे। इसके लिए प्रत्येक किसान संगठन के पांच लोगों को विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए ले जाया जाएगा।

संसद का मॉनसून सत्र 19 जुलाई से शुरू होने जा रहा है। इसके अलावा किसान संगठनों ने पेट्रोल, डीजल और एलपीजी सिलेंडर की बढ़ती कीमतों के खिलाफ आठ जुलाई को देशव्यापी विरोध का भी आह्वान किया है।

किसान संगठनों ने लोगों से अपील की है कि लोग 8 जुलाई को अपने वाहनों को सड़क पर खड़ा करे। इसके अलावा महिलाओं से भी गैस सिलेंडर को सड़कों पर लाने और विरोध का हिस्सा बनने का आह्वान किया है।

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देश में अघोषित आपातकाल – टिकैत

जींद के उचाना में रविवार को महिला किसानों के धरने को संबोधित करते हुए किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि देश में अघोषित आपातकाल है। इसलिए जनता को अब जाग जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यदि कृषि कानूनों को लागू किया जाता है, तो किसानों को छोटी-मोटी नौकरियां करने के लिए मजबूर किया जाएगा क्योंकि उनकी जमीन बड़े कॉरपोरेट घरानों द्वारा छीन ली जाएगी।

टिकैत ने कहा कि केंद्र सरकार कॉरपोरेट के दबाव में काम कर रही है। भले ही केंद्र किसानों से बात कर लें लेकिन उन्हें कॉरपोरेट ही चला रहे हैं। हमने पहले भी कहा है कि जब भी सरकार बातचीत के लिए तैयार होगी, हम भी तैयार रहेंगे, लेकिन कृषि मंत्री यह कहकर इसे सशर्त क्यों बना रहे हैं कि वे कृषि कानून वापस नहीं लेंगे?

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