Saturday - 6 January 2024 - 6:17 AM

क्या ब्राह्मणों के जरिए वापसी का सपना देख रही हैं मायावती

अविनाश भदौरिया 

उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के चौबेपुर थाना क्षेत्र में घटित घटना के बाद सूबे के सियासी समीकरण बदलने लगे हैं। इस घटना का मुख्य आरोपी विकास दुबे पुलिस के हाथों मारा जा चुका है। लेकिन विकास दुबे के मुद्दे को जिन्दा रखने के लिए गैर बीजेपी दल पूरी ताकत झोके हुए हैं।

इस घटना ने एक ओर जहां योगी राज की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं वहीं दूसरी भाजपा के सवर्ण वोट बैंक को भी बहुत प्रभावित किया है। सूबे में वर्तमान समय में जो माहौल बना हुआ है उसे देखकर ऐसा लग रहा है कि अब तक एकतरफा दिखने वाला 2022 का उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव अब दिलचस्प होने जा रहा है।

इसकी बानगी है बसपा सुप्रीमो मायावती द्वारा किया गया ट्वीट। लम्बे वक्त से बीजेपी सरकार के खिलाफ नरम बनी हुई मायावती भी तेवर दिखा रही हैं। उन्होंने ट्वीट कर योगी सरकार पर हमला तो बोला ही है साथ ही अपने समर्थकों को सन्देश भी दिया है।

उन्होंने लिखा कि, बीएसपी का मानना है कि किसी गलत व्यक्ति के अपराध की सजा के तौर पर उसके पूरे समाज को प्रताड़ित व कटघरे में नहीं खड़ा करना चाहिए। इसीलिए कानपुर पुलिस हत्याकाण्ड के दुर्दान्त विकास दुबे व उसके गुर्गों के जुर्म को लेकर उसके समाज में भय व आतंक की जो चर्चा गर्म है उसे दूर करना चाहिए।

साथ ही, यूपी सरकार अब खासकर विकास दुबे-काण्ड की आड़ में राजनीति नहीं बल्कि इस सम्बंध में जनविश्वास की बहाली हेतु मजबूत तथ्यों के आधार पर ही कार्रवाई करे तो बेहतर है। सरकार ऐसा कोई काम नहीं करे जिससे अब ब्राह्मण समाज भी यहाँ अपने आपको भयभीत, आतंकित व असुरक्षित महसूस करे।

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इसी प्रकार, यूपी में आपराधिक तत्वों के विरूद्ध अभियान की आड़ में छांटछांट कर दलित, पिछड़े व मुस्लिम समाज के लोगों को निशाना बनाना, यह भी काफी कुछ राजनीति से प्रेरित लगता है जबकि सरकार को इन सब मामलों में पूरे तौर पर निष्पक्ष व ईमानदार होना चाहिए, तभी प्रदेश अपराध-मुक्त होगा।

गौरतलब है कि मायावती की नजर एकबार फिर दलित-ब्राह्मण और मुस्लिम फार्मूले पर है। इससे पहले भी उन्हें इसी समीकरण से सत्ता सुख भोगने को मिल चुका है।

इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार केपी सिंह का कहना है कि, कानपुर की घटना को लेकर ब्राह्मण समाज में आक्रोश है और उन्होंने सत्ता पलटने का भी ऐलान कर दिया है ऐसे में समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस कोशिश में लगे हैं कि इस समाज को अपने साथ जोड़ लें। लेकिन सबसे बड़ी समस्या ये है कि जो दल ब्राह्मणों को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं उन्हें राष्ट्रवाद के मुद्दे पर संतुष्ट रख पाना एक बड़ी चुनौती होगी। कांग्रेस, बसपा और समाजवादी पार्टी के लिए अल्पसंख्यक वर्ग के तुष्टिकरण को बढ़ावा देना भी ब्राह्मणों को रास नहीं आता ऐसे में उनका ये आक्रोश लम्बे समय तक बना रहेगा ये संभव नहीं। अन्तोगत्वा ये समाज वापस बीजेपी को ही वोट देगा।

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