Friday - 12 January 2024 - 1:00 PM

कोरोना, कट्टरता और पूर्वाग्रह का काकटेल

जावेद अनीस

आजाद भारत अपनी विवधता को लेकर शायद ही कभी इतना असहज रहा हो। आज जबकि कोरोना जैसे संकट से लड़ने के लिये हमें पहले से कहीं अधिक एकजुटता की जरूरत थी लेकिन दुर्भाग्य से इस संकट का उपयोग भी धार्मिक बंटवारे के लिये किया जा रहा है। देश में आपसी नफरत और अविश्वास तो पहले भी था लेकिन पिछले कुछ वर्षों के दौरान हमने मानो इसे हलक तक ठूस लिया है। जिस तरह से कोरोना जैसी महामारी को साम्प्रदायिक रंग दिया गया है उसे देखकर लगता है कि भारत में सांप्रदायिक विभाजन और आपसी नफरत कयामत के दिन ही खत्म होंगीं।

दिल्ली में तबलीगी जमात का मामला सामने आने के बाद पहले से ही जल रहे इस आग में सांप्रदायिक राजनीति और मीडिया ने आग में घी डालने का काम किया है। जमातियों के जाहिलाना और आत्मघाती हरकत सामने आने के बाद टीवी स्क्रीन पर अन्तराक्षी खेल रहे स्टार एंकरों को जैसे अपना पसन्दीदा खेल खेलने का मौका मिल गया और वे तुरंत हरकत में आ गये उनके साथ सांप्रदायिक राजनीति के पैदल सेनानी भी अपने काम में जुट गये।

तबलीगी जमात की दकियानूसी और तर्कहीन धर्मांधता ने हजारों लोगों को खतरे में डालने का काम किया है उनकी यह हरकत नाकाबिले बर्दास्त है और इसका किसी भी तरह से बचाव नहीं किया जा सकता है लेकिन जिस तरह से इस पूरे मामले को हैंडल किया है उसे क्या कहा जाये, क्या इसे उचित ठहराया जा सकता है ? इस पूरे मसले को सांप्रदायिक रंग देते हुये जिस तरह से जमातियों के बहाने पूरे समुदाय को कठघरे में खड़ा करने का काम किया गया उससे किसका हित सधा है?

इस घटना के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से मीडिया को जो ब्रीफिंग दी गयी उसमें जमातियों से जुड़े कोरोना के केस को अलग से पेश किया गया ,इससे भी अलग तरह का सन्देश गया। सोशल मीडिया के साथ मुख्यधारा की मीडिया ने इस पूरे मसले को इस तरह से पेश किया है कि तबलीगी जमात की वजह से ही कोरोना पूरे देश में फैली है नहीं तो इसे नियंत्रित कर लिया गया था। कई चैनलों द्वारा इस मसले को ‘कोरोना जिहाद’ का नाम दे दिया गया और इसे देश के खिलाफ जमात की साजिश के तौर पर पेश किया गया, इसके बाद चैनलों द्वारा सिलसिलेवार तरीके से जमात को केंद्र में रखते हुये कई ऐसी खबरें चलायी गयीं जो बाद में झूठ साबित हुयी हैं। इन सबसे पूरे देश में एक अलग तरह का माहौल बना। नतीजे के तौर पर देश भर में कोरोना के नाम पर मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ दुर्व्यवहार और हमले के कई मामले सामने आ रहे हैं।

भारत सहित पूरी दुनिया में मुसलमानों को एक तरह के स्टीरियोटाइप में पेश किया जाता है। हिन्दुस्तान में मुसलमानों को एक रूप में नहीं देखा जा सकता है। अपने देश की तरह ही उनमें भाषाई क्षेत्रीय और जाति-बिरादरियों के आधार पर बहुत विविधता है, लेकिन जब मुस्लिम समुदाय की बात होती है तो आमतौर पर इस विविधता को नजरअंदाज कर दिया जाता है। भारतीय मानवशास्त्रीय सर्वेक्षण के प्रोजेक्ट पीपुल्स आफ सीरिज के तहत के।एस सिंह के सम्पादन में प्रकाशित ‘इंडियाज कम्युनिटीज’ के अनुसार भारत में कुल 584 मुस्लिम जातियाँ और पेशागत समुदाय हैं। इसके साथ ही भारत में मुस्लिम समुदाय कई फिरकों में भी बंटे हुये हैं।

इसलिये यह समझना होगा कि तबलीगी जमात भारत के सभी मुसलामानों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। तबलीगी जमात मुसलामानों के बीच एक धार्मिक आन्दोलन की तरह है और जरूरी नहीं है कि इससे भारत के सभी मुसलमान सहमत हों। इसकी स्थापना साल 1926 में मौलाना मुहम्मद इलियास कांधलावी द्वारा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक कस्बे में ‘गुमराह’ मुसलामानों को इस्लाम के तरफ वापस लाने के उद्देश्य के साथ की गयी थी। आज तबलीगी जमात की पहुंच सैकड़ों मुल्कों में है।

मुस्लिम समुदाय में ही जमात के काम करने के तरीके और उद्देश्यों को लेकर विवाद रहा है। जमात द्वारा अपने सदस्यों से घर-परिवार और दुनियादारी से दूर होकर पूरी तरह से इबादत और तबलीग के कामों में लगने की अपेक्षा की जाती हैं साथ ही उनसे 1400 साल पहले की इस्लामी जीवन पद्धति अपनाने की अपेक्षा की जाती है। जमात अपने सदस्यों को सिखाता है कि दुनिया तुच्छ है और असली जिंदगी मरने के बाद है। फरवरी 2017 में दारुल उलूम देवबंद द्वारा तबलीगी जमाअत पर कुरआन व हदीस की गलत व्यख्या करने और मुसलामानों को गुमराह का आरोप लगाते हुये उसके खिलाफ फतवा जारी किया गया था साथ ही दारुल उलूम ने अपने कैम्पस के अंदर में तबलीगी जमाअत के किसी हर तरह की गतिविधि पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

तबलीगी जमात के मौजूदा प्रमुख मौलाना मोहम्मद साद इसके संस्थापक मौलाना मुहम्मद इलियास कांधलावी के पोते हैं, वे काफी विवादित रहे हैं उनपर परिवारवाद के साथ इस्लामी सिद्धांत की गलत व्याख्या के आरोप लगते रहे हैं।

कोरोना वायरस को लेकर भी उनका रवैया बहुत ही गैर-जिम्मेदाराना और लाखों लोगों को खतरे में डालने वाला रहा है। सामने आये आडियो में वे कोरोना से बचाव के लिये सामाजिक दूरी बनाने के अपील के तहत मस्जिद में नमाज नहीं पढ़ने की अपील को गलत ठहराते हुये यह आह्वान करते सुनाई पड़ते हैं कि ‘मस्जिद में नमाज पढ़कर ही कोरोना से बचाव किया जा सकता है।; जाहिर है तबलीगी जमात मुसलामानों के बीच एक बुनियादपरस्त और अंधविश्वासी अभियान है जो उन्हें समय से पीछे ले जाना चाहता है। कोरोना को लेकर जमात का अनुभव बताता है कि किस तरह यह अपने कट्टर और अतार्किक विचारों से लोगों के जान-माल के लिये खतरा साबित हो सकता है। आस्था तभी तक निजी होती है जबतक कि इससे किसी दूसरे का नुकसान न हो।

यह भी पढ़ें : कानपुर में हुई घटना के बाद क्यों चर्चा में है ‘अंब्रेला योजना’ ?

तबलीगी जमात के इस हरकत ने इसके सदस्यों के साथ पूरे देश में बड़ी संख्या में लोगों की जान को जोखिम में डाला है बल्कि पूरे मुस्लिम समुदाय को निशाने पर ला दिया है। लेकिन सिर्फ जमाती या मुसलमान ही नहीं हैं, हम सभी की अपनी दकियानूसी और सीमाएं हैं। भारत तो वैसे भी अपने पुरातनपंथ और टोटकों के लिये विख्यात रहा है। इस मामले में हम भारतीय जाति, पंथ, मजहब से परे होकर एक समान हैं। अंधविश्वासी और कर्मकांडी होने में हमारा कोई मुकाबला नहीं है और अब तो इसे मौजूदा हुकूमतदानों का संरक्षण भी मिल गया है। भारत में सत्ताधारियों द्वारा कोरोना से निपटने के लिये जो टोटके सुझाये गये हैं वो शर्मसार करने वाले हैं।

शुरुआत में जब ठोस कदम उठाये जाने की जरूरत थी तब भारत सरकार के स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ‘धूप में बैठकर कोरोना से बचाव का मन्त्र दे रहे थे’, बंगाल में भाजपा के नेता जनता को ‘गौमूत्र पिलाकर’ कोरोना से बचा रहे थे। इसी प्रकार से भारत के आयुष मंत्रालय द्वारा 29 जनवरी को जारी किये गये विज्ञापन में दावा किया गया था कि कोरोना वायरस को होम्योपैथी, आयुर्वेदिक और यूनानी दवाइयों से रोका जा सकता है, हालांकि बाद में 1 अप्रैल को मंत्रालय द्वारा इस विज्ञापन को वापस लिये जाने सम्बन्धी बयान जारी किया गया। इस दौरान दबे-छुपे तरीके से ग्रह नक्षत्रों की चाल और प्रकाश के सहारे कोरोना वायरस के भस्म करने के उपाय भी आजमाए जा चुके हैं।

प्रधानमंत्री की जो भी मंशा रही हो उनके समर्थकों द्वारा ‘थाली बजाने’ को लेकर जिस प्रकार से इसकी व्याख्या की गयी वो अन्धविश्वास नहीं तो और क्या था? इसी प्रकार से दीया, मोमबत्ती जलाने के प्रधानमंत्री मोदी की अपील की भी सर चकरा देने वाले फायदे गिनाये गये और इस काम में बहुत पढ़े लिखे लोग शामिल रहे जैसे इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष पद्मश्री से सम्मानित डॉक्टर के। के। अग्रवाल द्वारा बाकायदा एक वीडियो जारी करके प्रधानमंत्री के 5 अप्रैल के आह्वान के साइंटिफक फायदे गिनाये गए। दुर्भाग्य से इस वीडियो को भारत सरकार के पोर्टल द्वारा भी ट्वीट किया गया। कई और लोगों द्वारा ताली और थाली बजाने से उत्पन्न आवाज के तंरग से कोरोना वायरस के खत्म होने का दावा किया गया। इस सम्बन्ध में भाजपा के उपाध्यक्ष प्रभात झा द्वारा किये गये ट्वीट भी काबिलेगौर है जिसमें उन्होंने लिखा कि ‘भारतीयों ने दीप जलायी, कोरोना की हुयी विदाई’ अपने एक और ट्वीट में लिखते हैं ‘कोरोना, तुम्हे नरेंद्र मोदी जी के भारत में होगा रोना, यह भारत है, यह आध्यात्मिक देश है, नरेंद्र मोदी जी सिर्फ राजनीतिज्ञ नहीं, वह एक सांस्कृतिक-आध्यात्मिक पुरुष हैं।’

एक और भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय ने तो इंदौर में कोरोना मरीजों की बढ़ती संख्या को दीप नहीं जलाने से जोड़ दिया इस सम्बन्ध में उनका ट्वीट है कि “रविवार को दीप जलाए, लेकिन इंदौर में कुछ लोगों ने दीप नहीं जलाए, उन्ही के कारण इंदौर में कोरोना के मरीज बढ़े हैं।

यह इस देश का दुर्भाग्य है कि इतने बड़े संकट में घिरे होने के बाद भी हम भारतीय अपनी कट्टरता, अंधविश्वास और पूर्वाग्रह से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। हम एक वैश्विक महामारी को भी हिन्दू-मुसलमान का मुद्दा बनाये दे रहे हैं। विविधता हमेशा से ही हमारी खासियत रही है और यह हमारी सबसे बड़ी ताकत हो सकती थी लेकिन हम बहुत तेजी से इसे अपनी सबसे बड़ी कमजोरी बनाते जा रहे हैं। तबलीग़ी जमात के लोगों ने एक गंभीर गलती की है लेकिन एक महामारी का सांप्रदायिकरण भी छोटा अपराध नहीं है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी नेताओं को ठीक ही सलाह दी है कि वे इस महामारी का सांप्रदायीकरण ना करें।

इस सम्बन्ध में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी अपील की गयी है कि हमें ‘कोविड-19 के मरीजों को नस्लीय, जातीय और धार्मिक आधार पर वर्गीकृत नहीं करना चाहिए।’ मीडिया खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी चाहिये कि अगर इस संकट के समय में भी ‘पत्रकारिता’ नहीं कर सकते हैं तो अपने आप को अंताक्षरी खेलने में ही व्यस्त रखें। खुद को दुनिया की प्राचीन सभ्यता और सबसे बड़ा लोकतंत्र मानने वाले देश भारत से इतनी समझदारी और परिपक्वता की उम्मीद तो की ही जा सकती है।

यह भी पढ़ें : प्रियंका की इस रणनीति से बढ़ेगी योगी सरकार की टेंशन

यह भी पढ़ें : अब अपनों को बैलेंस करने में जुटे शिवराज, लिया ये फैसला

डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Jubilee Post उत्तरदायी नहीं है।
Radio_Prabhat
English

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com