Sunday - 7 January 2024 - 12:48 PM

ब्रांड नीतीश हुआ कमजोर तो सुशांत को लाने की तैयारी में जुटी बीजेपी

  • तो क्या बिहार चुनाव में सुशांत प्रकरण बनेगा चुनावी मुद्दा?

जुबिली न्यूज डेस्क

बिहार बीजेपी द्वारा कराए गए एक सर्वे ने उसकी नींद उड़ा दी है। इस सर्वे ने बीजेपी के रणनीतिकारों ने अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया है। सर्वे में पता चला कि बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकप्रियता कम हो गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विश्वसनीयता लोगों के बीच घटी है, ऐसा उनके द्वारा एनडीए छोड़कर लालू के साथ जाने और फिर महागठबंधन छोड़ कर एनडीए के साथ आने के कारण हुआ है।

रिपोर्ट के मुताबिक पंद्रह साल से शासन कर रहे नीतीश के कामकाज के प्रति भी लोगों में नाराजगी है यानि इस बार के चुनाव में यहां एंटी इंकम्बैंसी फैक्टर भी अपनी भूमिका निभाएगी। इस रिपोर्ट ने बीजेपी की चिंता बढ़ा दी है। इसलिए पिछले दिनों नीतीश कुमार समेत बीजेपी नेताओं ने एक सुर में कहा कि एनडी चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर लड़ेगी।

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लेकिन इसके इतर बीजेपी राजनीति के चाल-चरित्र के अनुरूप भावनात्मक मुद्दों को भी उभारने की कोशिश में लगी हुई है। पिछले दो महीने बिहार में सिर्फ अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के परिजनों को न्याय दिलाने के बहाने राजनीति करने वाले बीजेपी इसे चुनाव के दौरान भी भुनाने की फिराक में लग गई है। भले ही बीजेपी इसे मुद्दा मामने से इनकार कर रही है पर अंदरखाने वह इसे हवा देने में लगी हुई है।

फ्रंट पर मोदी

बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार एनडीए नीतीश कुमार की जगह प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता को भुनाने की कोशिश में है तो प्रमुख विपक्षी दल राजद लालू यादव के साए से निकलने की जद्दोजहद कर रहा है। इतना ही नहीं सत्तारूढ़ जनता दल यू एससी-एसटी को लेकर खेले गए दलित कार्ड को भी उभारने की कोशिश कर रहा है तो उसकी सहयोगी बीजेपी सुशांत व फिर उसके बाद कंगना प्रकरण को लपकने की फिराक में नजर आ रही है।

हालांकि इस सबसे इतर राष्ट्रीय जनता दल इस बार उन मुद्दों को उठाने की कोशिश कर रहा है जो कहीं न कहीं किसी सरकार के लिए एंटी इंकम्बैंसी के फैक्टर बनते हैं।

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नीतीश की लोकप्रियता में आई कमी

बिहार के सियासी गलियारे में चर्चा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकप्रियता में कमी आई है। विपक्षी दल से लेकर जेडीयू की सहयोगी दल ऐसा कह रही है। पिछले दिनों एनडीए की सहयोगी लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने भी पीएम मोदी को पत्र लिखा था और कहा था कि नीतीश कुमार की लोकप्रियता में कमी आई है। हम उनके भरोसे चुनाव नहीं जीत सकते।

विपक्ष और लोजपा के इस राय से बीजेपी भी इससे इत्तेफाक रखती है। बीजेपी ने भी अपने स्तर पर इस तथ्य को परखा है। राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक बीजेपी ने राज्य सरकार के कामकाज को लेकर पार्टी के ही लोगों द्वारा मंडल स्तर पर एक आंतरिक सर्वे कराया है। सर्वे की रिपोर्ट ने बीजेपी को रणनीति बदलने को विवश कर दिया है।

इस रिपोर्ट के अनुसार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विश्वसनीयता लोगों के बीच घटी है। ऐसा उनके द्वारा एनडीए छोड़कर लालू के साथ जाने और फिर महागठबंधन छोड़ कर एनडीए के साथ आने के कारण हुआ है।

रिपोर्ट के मुताबिक पंद्रह साल से शासन कर रहे नीतीश के कामकाज के प्रति भी लोगों में नाराजगी है यानि इस बार के चुनाव में यहां  एंटी इंकम्बैंसी फैक्टर भी अपनी भूमिका निभाएगी।

दरअसल एनडीए के मतदाताओं को ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार लालू प्रसाद के साथ कहीं न कहीं हमदर्दी रखते हैं। वे लालू के खिलाफ उस अंदाज में कभी हमलावर नहीं होते जिस तेवर में बीजेपी नेता उन पर निशाना साधते हैं।

हालांकि बिहार सरकार के मंत्री इससे इत्तफाक नहीं रखते। नीतीश के मंत्रियों का कहना है कि नीतीश कुमार आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं। उनके चेहरे पर ही इस बार भी बिहार में सरकार बनेगी।

इस मामले में राजद के नेताओं का कहना है कि अब तो नीतीश कुमार के सहयोगी भी समझ चुके हैं कि उनकी जमीन खिसक चुकी है।

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रिपोर्ट ने बढ़ाई बीजेपी की चिंता

इस रिपोर्ट ने बीजेपी की चिंता बढ़ा दी है। शायद इसी वजह से पार्टी ने पीएम की छवि को भुनाने का निश्चय किया है और मोदी ने भी बिहार के लिए सरकारी खजाना खोल दिया है। करीब सोलह हजार करोड़ रुपये से अधिक की योजनाओं के जरिए एनडीए बिहार विधानसभा चुनाव की राह आसान करने की कवायद में जुट गया है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आचार संहिता लागू होने से पहले बिहार में शिलान्यास, उद्घाटन व लोकार्पण की झड़ी लगा दी है। इतना ही नहीं वो केंद्रीय योजनाओं के उन लाभार्थियों से सीधा संवाद भी कर रहे हैं। यह बिहार की राजनीति में एक नया संकेत है।

मोदी यह भी बताने से नहीं चूक रहे कि इन योजनाओं से कितना रोजगार सृजित हुआ और आने वाले दिनों में आत्मनिर्भरता कितनी बढ़ सकेगी। शायद यही वजह है कि बीजेपी इस बार आत्मनिर्भर बिहार का नारा दे रही है।

एक ओर बीजेपी बिहार में चुनाव लडऩे के लिए मुद्दे तलाश रही है तो वहीं दूसरी ओर बिहार में लड़ाई का एकमात्र मुद्दा कांग्रेस-राजद के 45 साल बनाम एनडीए के 15 साल के शासन को बताते हुए उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी कहते हैं, “एनडीए की सरकार ने पंद्रह साल के शासन में जिस तरीके से सभी चुनौतियों को अवसर में बदला और समस्याओं का समाधान किया है, उससे बिहार में आज कानून व्यवस्था, बिजली,पानी, सड़क, बाढ़ व प्रवासी मजदूरों का कोई मुद्दा नहीं रह गया है।”

 

सुशांत प्रकरण को मुद्दा बनाने की कोशिश में जुटी बीजेपी

पिछले दिनों बिहार में प्रदेश बीजेपी ने जिस तरह फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह मामले में राजनीति की उससे तो यही लगता है कि यह चुनाव में भी बीजेपी इस मामले को भुनायेगी।

सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद उनके परिजनों को न्याय दिलाने नाम पर हुई राजनीति में बीजेपी सबसे आगे दिखी। बीजेपी के कला व संस्कृति प्रकोष्ठ ने तो बकायदा सुशांत की एक मुस्कुराती हुई तस्वीर और ‘न भूले हैं और न भूलने देंगे’ के स्लोगन के साथ तीस-तीस हजार स्टीकर व मास्क जारी कर क्रमश: उसे जगह-जगह चिपकाया और वितरित किया।

इस मामले में प्रकोष्ठ के राज्य संयोजक वरुण सिंह का कहना है कि सुशांत के परिजनों को न्याय दिलाने के हमारे अभियान का यह एक हिस्सा है। सुशांत हमारे राज्य के निवासी थे। वह कलाकार थे। इसलिए उनसे भावनात्मक लगाव था।

वह कहते हैं, सुशांत के दो दिन बाद ही हम लोगों ने मामले की सीबीआई जांच की मांग की थी। हमने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से राजीव नगर चौक व नालंदा की प्रस्तावित फिल्म सिटी का नामकरण उनके नाम पर करने की मांग की थी।

बीजेपी जिस तरह बढ़-चढ़कर इस मामले में आगे रही, जाहिर है उसके इस कदम पर सवाल खड़ा होना ही था। सोशल मीडिया में भी इसकी खूब आलोचना हुई। लोगों ने कहा, महाराष्ट्र सरकार पर निशाना साधने की आड़ में बीजेपी सुशांत की मौत पर राजनीति कर रही है ताकि चुनावी लाभ मिल सके।

हालांकि इन आरोपों को भाजपा प्रवक्ता नकारते हुए कहते हैं, “यह तो दिवगंत अभिनेता के परिजनों के प्रति एकजुटता दिखाने की कोशिश भर है जो न्याय की लड़ाई लड़ रहे हैं।”

इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार कुमार भावेश चंद कहते हैं, राजनीति में कुछ भी हो सकता है। जो दूर का सोच पाता है वह मौके को तुरंत लपक लेता है। जैसा की बीजेपी ने सुशांत मामले में किया। यह वहीं बीजेपी जो 2018 में सुशांत की फिल्म केदारनाथ का जमकर विरोध किया था और आज उनके नाम पर राजनीतिक रोटीं सेक रही है।

सुशांत मामले में भी बीजेपी दोहरा रवैया दिखा रही है। एक ओर बिहार के चुनाव प्रभारी व महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस का कहना है, सुशांत सिंह राजपूत का मुद्दा चुनावी मुद्दा नहीं है। सुशांत के परिवार को न्याय मिले ये पूरे की इच्छा थी।

लेकिन जब हम बीते कुछ दिन पहले के बयानों को देखते है तो साफ होता है कि बिहार की राजनीतिक पार्टियां सुशांत के बहाने किस तरह अपना राजनीतिक निहिातार्थ साध रही थी।

जब सुशांत की महिला मित्र रिया चक्रवर्ती को गिरफ्तार किया गया तो बिहार की सभी पार्टियों ने एक सुर में कहा कि उसकी गिरफ्तारी से सीबीआई को सुशांत आत्महत्या प्रकरण का सच सामने लाने में सहायता मिलेगी। जबकि रिया की गिरफ्तारी ड्रग मामले में हुई थी।

रिया की गिरफ्तारी के बाद लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान ने तो कहा कि इससे उन लोगों को मौन साधना पड़ेगा जिन्होंने रिया की तरफदारी की थी तो वहीं बीजेपी प्रवक्ता निखिल आनंद ने कहा था कि महाराष्ट्र के राजनीतिक आकाओं ने रिया को बचाने की भरपूर कोशिश की लेकिन सब व्यर्थ रहा। रिया से पूछताछ से सुशांत की मौत के सही कारणों का पता चल सकेगा। वहीं इस मामले में जदयू ने कहा, “रिया की गिरफ्तारी से साफ हुआ कि जांच सही दिशा में जा रही थी।”

सत्तारूढ़ दल जब इस मामले में बोल ही रहे थे तो राजद भला कैसे पीछे रहती। राजद का कहना था, “तेजस्वी यादव ने तो सबसे पहले इस मामले में सीबीआई जांच की मांग की थी। पार्टी ने इसे सदन के अंदर व बाहर उठाया भी था। रिया की गिरफ्तारी के लिए एनसीबी धन्यवाद की पात्र है।”

राजनीतिक दलों के बयानों से साफ है कि सभी बिहार के राजपूत मतदाताओं को उनके हितैषी होने का भरोसा दिलाने की होड़ में हैं।

मालूम हो कि सोलहवीं विधानसभा में राजपूत वर्ग के उन्नीस विधायक थे और करीब चालीस विधानसभा क्षेत्र में इनका खासा प्रभाव है जो किसी भी दल के लिए एकमुश्त वोट बैंक साबित हो सकता है। हां, भाजपा इस आड़ में महाराष्ट्र सरकार पर भी निशाना साध ले रही है।

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