Monday - 8 January 2024 - 8:00 PM

मंत्रियों और अधिकारियों को देखना चाहिए आईना

के पी सिंह

भारतीय जनता पार्टी के नव नियुक्त प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह के आवास पर तड़के से ही प्रदेश के विभिन्न कोनों से आये पार्टी के पीड़ित कार्यकर्ताओं की भीड़ उमड़ने लगती है। वे कार्यालय पहुंचते है तो वहां भी भीड़ का तांता नहीं टूटता। इसके बाद आवास पर भी देर रात तक यह सिलसिला चलता रहता है।

कार्यकर्ताओं के इस रेले की वजह से उनकी निजी जिंदगी अस्त व्यस्त हो चुकी है लेकिन इसके बावजूद वे मुलाकातियों को प्रतिबंधित करने के लिए तैयार नहीं है यह उनकी अच्छाई कही जायेगी लेकिन इससे यह भी जाहिर हो रहा है कि सरकार में जिन लोगों को पीड़ितों की बात सुननी चाहिए वे फिर नेता हो या अधिकारी उन्हें यह गंवारा नहीं है।

इसका मतलब यह भी है कि सरकार और प्रशासन में आम लोगों की समस्याओं के निदान के लिए बहुत कम काम हो रहा है जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मोर्चे पर काफी संवेदनशीलता दिखाने की कोशिश की है।

तहसील दिवस और थाना समाधान दिवस जैसे आयोजन इस कारण शुरू हुए थे ताकि लोगों की जायज समस्यायें तहसील और जिला स्तर पर ही हल की जाने लगें जिससे लखनऊ आने वाली भीड़ में कमी आ सके। किसी सरकार में यह प्रयोग पूरी तरह कामयाब नहीं हो सके। वजह है भ्रष्टाचार और मनमानी करने की जिम्मेदारों में गहरा चुकी आदत।

योगी आदित्यनाथ ने सरकार के माध्यम से आम पीड़ितों को राहत दिलाने के लिए कई नये प्रभावी प्रयास किये। इनमें 1076 हेल्पलाइन शामिल है जिसकी लांचिंग बहुत जोर शोर से की गई थी और लोगों को भरोसा दिलाया गया था कि इस फोरम पर आने वाली शिकायतों की जांच में गड़बड़ी हुई तो अधिकारियों को गंभीर खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

इस योजना की लांचिंग के समय मुख्यमंत्री ऐसे अवतार की मुद्रा में थे जो कह रहा हो कि जिसका कोई नहीं उसका सबसे बड़ा मददगार उनकी सरकार है यारो। लेकिन व्यवहारिक स्तर पर यह हेल्पलाइन खोखली साबित हो रही है। इस पर की जाने वाली शिकायतों को लेकर गड़बड़ी करने वाले अधिकारियों में अभी तक कोई भय नहीं जाग पाया है।

लाचार लोग करें तो क्या करें। जिलों में पार्टी का जो संगठन है उसके लोगों के व्यक्तिगत कामों तक में अधिकारी गड़बड़ी कर जाते हैं। लखनऊ में बैठे जो मंत्री हैं वे इंद्रासन पर बैठने के बाद इतने मगरूर हैं कि उन्हें निहित स्वार्थो के अलावा किसी से मिलना सुहाता नहीं है।

गत 16 जुलाई को डा. महेन्द्र नाथ पाण्डेय के स्थान पर स्वतंत्रदेव सिंह को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाने की घोषणा की गई जिनकी न तो कोई दमदार पारिवारिक पृष्ठभूमि रही और न ही कोई हाई प्रोफाइल राजनीतिक पृष्ठभूमि। भाजपा के साधारण कार्यकर्ता को स्वतंत्रदेव सिंह में अपना अक्स नजर आया तो उनकी ये सारी कमियों ही सबसे बड़ी ताकत बन गई।

प्रदेश के इतिहास में स्वतंत्रदेव सिंह के प्रदेश अध्यक्ष बनकर लखनऊ पहुंचने पर जो टूटकर स्वागत हुआ वह अभी तक का सबसे बड़ा स्वागत रहा। स्वतंत्रदेव सिंह ने भी आम कार्यकर्ताओं ने उनमें जो बिम्ब देखा उसका निर्वाह करने का इरादा बना रखा है। इसीलिए उन्होंने आगन्तुकों के मामले में कोई परदा न रखने की नीति अपनाई है।

पहले कोई प्रदेश अध्यक्ष इतने लोगों से नहीं मिलता था जितना वे मिल रहे हैं और बहुत साधारण तरीके से। वे दिनभर मुलाकातियों से चर्चा के लिए खड़े रहते हैं। इस कारण मंत्रियों और अधिकारियों के अनुपलब्ध रहने से सरकार और पार्टी के प्रति जो असंतोष उबल रहा था वह काफी हद तक संतुलित हुआ है।

लेकिन संगठन के प्रदेश अध्यक्ष पीड़ितों का सहयोग करने के लिए प्रशासन में सीधे मदद नहीं दे सकते। इसलिए उनकी अपनी सीमायें हैं। यह काम तो तभी होगा जब सरकार और प्रशासन को चुस्त किया जाये। स्वतंत्रदेव सिंह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का निश्चित रूप से बहुत आदर करते हैं लेकिन आज वे संगठन के मुखिया हैं इसलिए सरकार और पार्टी दोनों को निर्देशित करने के लिए अधिकृत हैं।

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यह बहुत ठीक है कि उन्होंने पहले दिन से ही अपने अभूतपूर्व स्वागत की स्थितियों को लोगों के बीच सत्ता के दो केन्द्र उभर आने के आभास के तौर पर परिवर्तित नहीं होने दिया लेकिन अपनी जिम्मेदारी के साथ पूरी तरह से न्याय करने के लिए उन्हें भले ही सुझाव के रूप में करें लेकिन सरकार के कार्य संचालन में भी अपना हस्तक्षेप दिखाना होगा।

हर विभाग का मंत्री अपने विभाग की समस्याओं के संबंध में आम लोगों से मिलने का समय तय करे इसकी एडवाइजरी उन्हें जारी करनी होगी भले ही वे अनौपचारिक तौर पर ऐसा करें। साथ ही जिले और ब्लाक स्तर तक के सत्तारूढ़ पार्टी के संगठन को प्रशासन की मानिटरिंग करने वाले तंत्र के रूप में स्वीकृति मिलनी चाहिए। इस मामले में वे कितना हस्तक्षेप दिखा पाते हैं यह देखने वाली बात होगी।

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सत्तारूढ़ पार्टी के जनप्रतिनिधियों की बेलगाम कार्यशैली को लेकर पहले दिन से रोना रोया जा रहा है। जो अपने कार्यकर्ताओं और संगठन के सलाह मशविरे से चलने की बजाय पार्टी तंत्र को बाईपास करके निजी दलालों और परिवार के लोगों को अपने अधिकार डेलीगेट किये हुए हैं। उन्हें ऐसे समय प्रदेश के संगठन की बागडोर मिली है जब विधानसभा के 13 क्षेत्रों में उपचुनाव होने वाले हैं।

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इस कारण अभी इस मिनी महाभारत में उनका ध्यान बंटा होना स्वाभाविक है। लेकिन इसके बाद वे संगठन के स्तर पर एक नीति तय करेंगे जो उनकी कार्यक्षमता की सबसे महत्वपूर्ण अग्नि परीक्षा होगी।

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