Sunday - 7 January 2024 - 8:55 AM

अब आलोचकों को भी योगी सरकार के बारे में बदलनी पड़ रही धारणा

केपी सिंह

शिक्षक दिवस पर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में इस बार एक अलग पाठशाला आयोजित होगी। राजभवन में होने वाली इस पाठशाला में शिक्षक की भूमिका में राज्यपाल आनंदी बेन पटेल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रहेंगे। इसमें मुख्य रूप से नये मंत्रियों को लोकलाज की चिंता करने का पाठ पढ़ाया जायेगा।

मंत्रिमंडल में फेरबदल के दौरान भ्रष्टाचार के लिए चर्चित मंत्रियों के पर कतर कर योगी आदित्यनाथ ने ईमानदारी पर डट जाने का संदेश देने की कोशिश की थी लेकिन इसमें आधा अधूरा काम ही हो पाया था। लेकिन मुख्यमंत्री के दृष्टिकोण की सही तस्वीर उनके सवा दो साल के कार्यकाल के बाद अब उभरकर सामने आ रही है।

मुख्यमंत्री यह दिखाने में सफल होते जा रहे है कि उनकी नीतियों में निरंतरता है जो स्थायी प्रभाव के लिए अपरिहार्य शर्त है। इसलिए बदलाव के उनके दावों की विश्वसनीयता अब लोगों को महसूस हो सकती है।

योगी आदित्यनाथ बदलाव के लिए दीर्घकालीन प्रभाव वाले कदम तो उठा रहे हैं लेकिन उनकी कमजोरी यह है कि उन्होंने बिगड़ी हुई स्थितियों को ठीक करने के लिए तात्कालिक कदमों की उपयोगिता पर अभी तक ध्यान नहीं दिया है।

सवा दो वर्ष तक जनप्रतिनिधियों से लेकर अधिकारियों तक के भ्रष्टाचार और गैर जबावदेही के जारी रहने से लोग उनसे ऊबने लगे थे लेकिन पिछले कुछ सप्ताह से उन्होंने जिस तरह से अधिकारियों पर कार्रवाई शुरू की और इसके बाद मंत्रिमंडल में दागी सहयोगियों को सबक सिखाया उसके बाद उनके आलोचकों को उनके बारे में राय बदलनी पड़ रही है।

हाल के दशकों में नेताओं के चरित्र में भारी गिरावट आयी है और जनप्रतिनिधियों में अहंकार व मनमानापन बढ़ा है। इसके बावजूद बिगाड़ के लिए जिम्मेदार पार्टियां चुनाव जीतती जा रही थी जिससे लोकतंत्र होते हुए भी लोग हस्तक्षेप करने में लाचार अनुभव करने लगे थे।

इस बीच उत्तर प्रदेश में भाजपा को भी समय-समय पर सरकार बनाने का मौका मिला लेकिन कल्याण सिंह के पहले कार्यकाल को छोड़कर भाजपा ने जो सरकारें बनाई वे मजबूर सरकारें थी क्योंकि सहयोगी दल उन पर हावी रहे थे। इसलिए भाजपा की गठबंधन सरकारों को भी समय-समय पर अपनी थुक्का फजीहत करानी पड़ी।

लेकिन 2017 में जब भाजपा ने प्रचंड बहुमत से उत्तर प्रदेश में सरकार बनाई तो पार्टी के समर्पित जमीनी कार्यकर्ताओं से लेकर अन्य जनता जनार्दन सभी यह चाह रहे थे कि राजनीति और प्रशासन की गंदगी साफ करने के लिए ताबड़तोड़ कार्रवाइयां हों लेकिन तात्कालिक रूप से योगी सरकार ने इस मामले में उन्हे निराश किया।

इसी का नतीजा था कि सरकार बनने के कुछ ही दिनों बाद मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की सीटें तक उपचुनाव में पार्टी को गंवा देनी पड़ी। लोकसभा चुनाव में इसी माहौल के कारण यूपी में भाजपा के शर्मनाक पराजय के अनुमान लगाये जा रहे थे लेकिन हुआ इसका उल्टा।

यूपी में भी लोकसभा चुनाव में भाजपा को जो प्रचंड सफलता मिली उसका श्रेय योगी की बजाय पूरी तरह मोदी को देने का ट्रेंड अभी तक चला। पर अब इस आंकलन को बदलने के लिए समीक्षकों को बाध्य होना पड़ रहा है।

योगी ने गो संरक्षण के लिए सरकार की पूरी ताकत झोंक दी। इसे तुगलकी सनक के नमूने के तौर पर पेश किया गया क्योंकि सरकार अपने बुनियादी एजेंडे पर कोई काम करती दिखाई नहीं दे रही थी। इसी तरह जिलों के नाम बदलने के निर्णय को लेकर भी अच्छी प्रतिक्रियायें सामने नहीं आयी थी।

यह कहा गया था कि योगी एकांगी एजेंडे पर काम कर रहे हैं जिससे उत्तर प्रदेश में भाजपा का भट्टा बैठ जायेगा। लेकिन अब जो स्थिति सामने आ रही है उससे यह स्पष्ट होता जा रहा है कि चाहे वह नाम बदलने का मामला हो, गो संरक्षण का हो या धार्मिक पर्वो को राजकीय महोत्सव देने का, योगी के इन प्रयासों से उत्तर प्रदेश में हिन्दुत्व की धार बहुत पैनी हुई है। जिससे भाजपा को अदृश्य रूप में बड़ा राजनैतिक लाभ हुआ है और हो रहा है।

इस बीच अब शासन प्रशासन में सुधार के मामले में भी उनकी सही दिशा का बोध जनमानस को होने लगा है। नेता सुधर जायें तो अधिकारियों में अपने आप बड़ा सुधार हो सकता है। दागी मंत्रियों को हाशिये पर करके इस मामले में मुख्यमंत्री ने नेताओं में खलबली मचा दी है। कुछ मंत्रियों के द्वारा किये गये गलत तबादलों की सूची रद्द करके उन्होंने यह जाहिर किया था कि मंत्रियों की कार्यप्रणाली की उनके स्तर से बारीक निगरानी की जा रही है।

लालची मंत्रियों में भी इसके कारण भय पैदा हो गया है। योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनते ही वृंदावन में संघ की समन्वय बैठक हुई थी जिसमें नये विधायकों की बेईमानी का मुद्दा उठा था लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई जिससे ऐसे विधायक निरंकुश होकर काम करने लगे पर अब स्थिति बदलने वाली है।

ऐसे विधायक यह सोचकर डरे हुए हैं कि अपनी रिपोर्टो के कारण वे मंत्री बनने का अवसर तो प्राप्त कर ही नहीं पायेंगे अगली बार टिकट भी गंवा बैठेंगे। मुख्यमंत्री के पैर दिन पर दिन मजबूत होते जा रहे हैं जिससे यह धारणा भी खत्म हो गई है कि वे अंतरिम मुख्यमंत्री हैं। बल्कि पहले विस्तार के बाद से यह स्थापित हुआ है कि उत्तर प्रदेश में आने वाले दिनों में सिर्फ वही होगा जो योगी आदित्यनाथ चाहेंगे।

खनन नीति से लेकर निर्माण कार्यो और आपूर्ति के टेंडर की प्रक्रिया में उत्तर प्रदेश में धीरे-धीरे ऐसे बदलाव किये गये हैं जिससे चोर ठेकेदार काम से भागने लगे हैं और राजनीतिक बदलाव के साथ ही जो ठेकेदारों की खरपतवार उग आती थी उस पर विराम लग गया है।

अब प्रोफेशनल व विश्वसनीय ठेकेदार ही उत्तर प्रदेश में काम करा पायेंगे, शराब के ठेके चला पायेंगे, सप्लाई दे पायेंगे और खनन कर पायेंगे। इससे एक बड़ा बदलाव प्रत्यक्ष रूप से लोगों को दिखाना संभव होगा। जिसकी बहुत जरूरत है।

इसके साथ-साथ नागरिकों में कर्तव्य बोध का विकास करने की पहली बार कोई ठोस पहल उत्तर प्रदेश में हो रही है। बिजली और वाहनों की लगातार चेकिंग नियमों के उल्लंधन के मामले में जीरों टोलरेंस की दिशा में बेहद सार्थक कार्रवाई साबित हो रही है जिससे अनुशासित समाज के निर्माण का उद्देश्य पूरी तरह से सफल होगा।

पश्चिमी देशों में रूल आफ ला इसीलिए कामयाब है क्योंकि वहां 95 प्रतिशत लोग अपने से नियमों और कानूनों का पालन करते हैं जिससे इसके लिए काम करने वाली एजेंसियों को भारी सहूलियत रहती है। हर जिम्मेदार नागरिक अपने देश में भी ऐसी ही स्थिति की कल्पना शुरू से कर रहा है। जिसके साकार होने के आसार उसे पहली बार दिखाई दिये हैं।

यह तस्वीर उभरने के बाद अब धैर्य रखा जा सकता है और योगी पर विश्वास किया जा सकता है। हालांकि इसके बाद भी योगी सरकार को यह याद दिलाना नहीं भूला जा सकता कि धमाकेदार तात्कालिक कार्रवाइयों की भी जरूरत है जिसमें उसे संकोच क्यों है।

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)

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