Wednesday - 10 January 2024 - 8:23 AM

आखिर क्यों नहीं मिलेगा लेखा परीक्षा के कार्मिकों को सेवानिवृत्ति का लाभ

जुबिली न्यूज ब्यूरो

जुबिली पोस्ट ने अपने पिछले अंक में बताया था कि वित्त विभाग के अंतर्गत सहकारी समितियां एवं पंचायतें, उत्तर प्रदेश के लेखा परीक्षा विभाग के मुखिया मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी अवनीन्द्र दीक्षित पर भ्रष्टाचार करने और शासन के आदेशों के विरूद्ध निर्णय लेकर प्रतिनयुक्ति पर कार्मिकों को भेजने और ट्रांसफर के बाद भी लिपिकों को रिलीव न करने के बाद भी शासन के उच्च अधिकारी इस अधिकारी के विरुद्ध कोई भी कारवाई नहीं कर पा रहे हैं। अब मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी के द्वारा की गई अनियमितताओं और कारगुजारियों की फेहरिस्तर लंबी है।

मुख्यालय में अभिलेख नहीं हैं, कह कर शासन को नहीं दी सूचना

सहकारी समितियां एवं पंचायतें के लेखा परीक्षा विभाग में तैनात लेखा परीक्षकों को 5 जुलाई 2007 के शासनादेश से दिनांक 1 जुलाई 1995 से नोशनल पदोन्नति की गयी। वित्ता विभाग के अंर्तगत वेतन वित्ते आयोग नियमों के सुसंगत परीक्षण में पाया कि ज्येष्ठ लेखा परीक्षकों को नोशनल प्रमोशन 1995 से पूर्व से रिक्त पदों के सापेक्ष स्वीकृत किया जा सकता है।

इसी बाबत शासन ने दिनांक 12.05.2017 में मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी से वर्ष 1991-94 के बीच ज्येष्ठ लेखा परीक्षकों की रिक्तियों की संख्या बताने को कहा। लेकिन मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी ने यह कर कि 1991से 1994 के मध्य के कार्यरत और रिक्त पदों का विवरण कार्यालय में उपलब्ध नहीं है और ना ही उसे संबंधित अभिलेख हैं अत:सूचना नहीं दी जा सकती है।जबकि 2007 में रिक्तियों की सूचना  माननीय उच्च न्यायालय में दी गयी थी और इसी आधार पर  उच्च न्यायालय के निर्देश पर  पदोन्नति की गयी थी। अब यह अभिलेख मुख्यालय में क्यों नहीं हैं एक बडा़ प्रश्न है?

संबंधित कार्मिकों में यह चर्चा है कि पहले प्रमोशन के लिए  मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी द्वारा भारी धन राशि की डिमांड की गई थी जो पूरी नहीं की जा सकी और इसीलिए कार्यालय के उन्हीं लिपिकों (ट्रांसफर किये गये पर कार्यमुक्त नहीं)के कहने पर  मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी ने शासन को यह सूचित कर दिया कि 1991 से 1994 के मध्य रिक्तियों एवं कार्यरत  कार्यालय में उपलब्ध नहीं है। इंपॉर्टेंट अभिलेख कार्यालय से गायब  होने की सूचना पर भी शासन के उच्च अधिकारियों (प्रमुख सचिव,वित्त)ने इस अधिकारी के विरुद्ध कोई भी प्रशासनिक कार्रवाई नहीं की।

अब जिन कार्मिकों की नियुक्ति 1991 या इससे पूर्व की है और उनका विवरण तथा अभिलेख कार्यालय में  नहीं हैं या गायब हैं तो  फिर उनकी सेवा निवृत्ति पर देयकों को देना संभव नहीं होगा।इसके लिये कौन जिम्मेदार होगा शासन को निर्णय लेना होगा।

 भ्रष्टाचार में लिप्त पाये जाने पर छीने अधिकार,  पर नहीं की प्रशासनिक कारवाई –

पिछले वर्ष से ही सरकारी समितियां और पंचायतों के लेखा परीक्षा विभाग में कार्मिकों के तबादलों और नियुक्ति में भारी भ्रष्टाचार करने का आरोप मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी पर लगा और शिकायत सही पाए जाने पर शासन ने मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी से तबादले और नियुक्ति का अधिकार छीन लिया। लेकिन शासन ने  भ्रष्टाचार का आरोप साबित होने पर भी  मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी के विरुद्ध कोई कार्रवाई न करके पद पर बनाए रखा है।

 मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी के कारनामे से बढा़ सरकारी राजस्व का बोझ-

विभागीय सूत्रों के अनुसार पहले जिला लेखा परीक्षा अधिकारियों की मासिक मीटिंग रेंज में तैनात रेंज के अधिकारी लेते थे और फिर रेंज के अफसरों की मीटिंग मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी के कार्यालय में होती थी, लेकिन अब सीधे जिला लेखा परीक्षा अधिकारी की  मासिक बैठकें अब मुख्यालय में की जा रही है ।बताया जाता है कि यह भी धन उगाही का एक साधन बना है।यह भी पता चला है कि नव नियुक्त  जिला लेखा परीक्षा अधिकारियों की मीटिंग पुरानों से अलग की जा रही है।

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नाम न बताने की शर्त पर एक  जिला लेखा परीक्षा अधिकारी ने बताया कि मीटिंग में जनपदों से किसी भी स्तर पर जाकर पैसा वसूलने का दबाव   बनाया जाता है। इसके अलावा जनपद के अधिकारियों को बार बार मुख्यालय बुलाने से टीए, डीए का भुगतान भी करना पड़ रहा है और शासन के राजकोष पर  भारी बोझ बढ़ गया है।

अब देखना है कि राजस्व की बचत करने के लिए होमगार्डों की की नौकरी खत्म करने वाली योगी सरकार राजस्व का बोझ बढा़ने वाले मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी के विरुद्ध कारवाई करती है या नहीं।मुख्यालय से गायब अभिलेखों /सूचनाओं को शासन को न देने, कार्मिकों को  सेवा निवृत्ति पर लाभ न मिलने तथा तबादले और नियुक्ति में भ्रष्टाचार के आरोपों पर शासन कब गंभीर  होगा ,इसकी प्रतीक्षा रहेगी।

(अगली कड़ी में जुबिली पोस्ट करेगा कई और बड़े खुलासे…)

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