Sunday - 7 January 2024 - 1:10 PM

जांच एजेंसियों के लिए मुसीबत बना पाकिस्तान से आया कबूतर

न्यूज डेस्क

पहले के दौर में संदेश भेजने के लिए लोग कबूतर का इस्तेमाल करते थे। राजा-महाराजा से लेकर सेना के लोग कबूतर की सेवा लेते थे। अब चूंकि इंटरनेट क्रांति आ चुकी है तो कबूतर से संदेश भेजना समझ से परे लगता है, लेकिन राजस्थान में पाकिस्तान से एक कबूतर ने जांच एजेंसियों को परेशान कर रखा है।

 

पाकिस्तान से उड़कर दो दिन पहले यह कबूतर राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में 61 एफ गांव में आया था। एक किसान लखविंद्र सिंह के खेत में कबूतर बैठा था। किसान को कबूतर संदिग्ध नजर आया तो उसने पुलिस को सूचना दी। पुलिस के साथ बीएसएफ के अधिकारी खेत में पहुंचे और कबूतर को अपने कब्जे में ले गए ।

वेटेनरी कॉलेज में होगी जांच

दो दिन तक कबूतर को श्रीकरणपुर पुलिस थाने में एक पिंजरे में रखा गया। बीएसएफ और पुलिस अधिकारियों ने अपने स्तर पर जांच की उसके बाद अन्य जांच एजेंसियों को सूचना दी।

17 सितंबर को इस कबूतर को बीकानेर के वेटेनरी कॉलेज में ले जाया गया। अब आगे की जांच वेटेनरी कॉलेज में होगी। इस कबूतर के पंख पर लिखे कोड को जानने के लिए दिल्ली से भी एक्सपर्ट आएंगे।

पुलिस के मुताबिक कबूतर की पूंछ पर दाहिनी तरफ उर्दू भाषा में मुहर लगी हुई है। साथ ही दस अंकों में नंबर भी लिखे हुए है । कबूतर के पैरों में उर्दू में उस्ताद, अख्तर और इरफान लिखा हुआ है ।

जांच एजेंसियों को शक है कि कबूतर को भारतीय सीमा में जासूसी के लिए भेजा गया है। इंटेलिजेंस एजेंसी की टीम कबूतर की गहनता से जांच कर चुकी है। इससे पहले भी इस तरह के कबूतर पाकिस्तान की तरफ से भारतीय सीमा में आते रहे है । इनमें से कुछ के पैरों पर कैमरा लगा हुआ भी मिला है ।

कबूतर कैसे बना डाकिया

पुराने समय में ही नहीं, बल्कि 19 वीं सदी की शुरुआत में होने वाले पहले विश्वयुद्ध तक कबूतर से संदेश भेजे जाते थे। सभी कबूतर अच्छे संदेशवाहक नहीं होते। कबूतरों में भी होमिंग प्रजाति इसके लिए विशेष रूप से जानी जाती थी। इस प्रजाति के कबूतरों की विशेषता यह थी कि उन्हें एक जगह से अगर किसी जगह के लिए भेजा जाता तो वे अपना काम करने के बाद वापस लौटकर अपनी जगह आते थे। इससे संदेश पहुंच जाने की पुष्टि भी हो जाती थी।

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बताया जाता है कि होमिंग प्रजाति के कबूतर अपनी जगह से 1600 किमी आगे उड़कर जाने पर भी रास्ता भटके बिना वापस लौट आते थे। उनके उड़ने की रफ्तार भी 60 मील प्रति घंटा होती थी, जोकि संदेश एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने के लिए पर्याप्त थी।

पक्षी-विज्ञानी बताते हैं कि ये कबूतर सूर्य की दिशा, गंध और पृथ्वी के चुम्बकत्व से वापस लौटने की दिशा तय करते थे।

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