Saturday - 13 January 2024 - 8:47 PM

शिवसेना को बीजेपी का ‘छोटा भाई’ बनने से क्यों हैं परहेज

न्यूज डेस्क

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव की तिथि की कभी भी घोषणा हो सकती है। सत्तारूढ़ से लेकर विपक्षी दल चुनावी जंग में उतरने के लिए तैयार हैं। विपक्षी दलों कांग्रेस और एनसीपी में जहां सीटों का बंटवारा हो गया है वहीं सत्तारूढ़ दल बीजेपी और शिवसेना में अब तक सीटों को लेकर सहमति नहीं बन पाई है।

विधानसभा सीटों को लेकर शिवसेना और बीजेपी में काफी समय से खींचतान चल रही है। ये दोनों पार्टियां एक-दूसरे का साथ भी नहीं छोडऩा चाहती और सीटों को लेकर कोई समझौता भी नहीं करना चाहती।

बढ़ते जनाधार और लोकसभा चुनाव में मिली प्रचंड जीत से बीजेपी के हौसले बुलंद है तो वहीं शिवसेना ने बीजेपी के गठबंधन के बाद से हमेशा बीजेपी से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा है, इसलिए वह कम सीटों पर चुनाव लडऩे से बच रही है। उसे अपनी प्रतिष्ठा  प्रभावित होती दिख रही है। हालांकि वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना दोनों ही अलग-अलग चुनाव लड़े थे।

शिवसेना जहां 50-50 के फॉर्मुले (135 सीट) पर सीटों का बंटवारा करना चाहती है, वहीं बीजेपी करीब 160 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ऩा चाहती है।

गौरतलब है कि वर्ष 1989 में राम मंदिर आंदोलन ने तूल पकड़ा था और उसी दौरान शिवसेना ने पहली बार बीजेपी के साथ गठबंधन किया था। तब से लेकर दोनों भगवा पार्टियों में शिवसेना ने हमेशा से विधानसभा चुनाव में बीजेपी से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा।

आखिर क्यों डर रही है शिवसेना

एक ओर शिवसेना बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ऩा नहीं चाहती, तो वहीं दूसरी ओर कम सीटों पर समझौता नहीं करना चाह रही। कुछ दिनों पहले शिवसेना प्रमुख उद्घव ठाकरे ने कहा था कि बीजेपी और शिवसेना का गठबंधन अटल है। लेकिन शिवसेना फूंक-फूंककर कदम रख रही है। वह सारी परिस्थितियों पर नजर बनाए हुए है।

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दरअसल महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी की हालत पतली है। यदि शिवसेना कम सीटों पर चुनाव लड़ने की बीजेपी की धमकी को मान लेती है तो चुनाव बाद भी उसे बीजेपी की शर्तों पर ही रहना पड़ेगा, क्योंकि उस समय इनका कोई विरोधी राज्य में बचा नहीं होगा। इसके अलावा शिवसेना के डर का एक और कारण गोवा की महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी का उदाहरण भी है।

शिवसेना को डर है कि बीजेपी अपने सहयोगी दल महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) जैसा हश्र उसका भी कर सकती है।

राजस्थान से भी शिवसेना ले रही सबक

हाल के दिनों में राजस्थान में भी ‘सीनियर’ पार्टनर कांग्रेस ने हाल ही में अपनी ‘जूनियर’ पार्टनर बीएसपी के 6 विधायकों को अपनी पार्टी में विलय करा लिया। बीएसपी 12 निर्दलीय विधायकों के साथ राजस्थान में कांग्रेस सरकार को बाहर से समर्थन दे रही थी। 200 विधायकों के सदन में कांग्रेस के 100 विधायक हैं। कांग्रेस के इस कदम पर बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने निशाना साधा और कांग्रेस को धोखेबाज पार्टी बताया।

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