Friday - 12 January 2024 - 12:17 PM

प्रदेश में उपचुनाव: यूँ ही नहीं होते राजनीति में पेंच

रतन मणि लाल

कहा जाता है कि वह राजनीति भी क्या जिसकी पहले से भविष्यवाणी की जा सके। राजनीति तो वही है जिसके बारे में अपने और विरोधियों को भी आखिरी मौके तक पता न चल पाए। उत्तर प्रदेश में 21 अक्टूबर को 11 विधान सभा क्षेत्रों में चुनाव के लिए हुए मतदान के बाद अधिकतर दलों को उम्मीद थी कि वे पहले से बेहतर प्रदर्शन करेंगे।

सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को विश्वास था कि उपचुनाव में निराशाजनक प्रदर्शन के इतिहास को वे नकारेंगे और अपने कब्जे की सभी नौ सीटें जीतेंगे। विपक्षी दलों में समाजवादी पार्टी को उम्मीद थी कि वे वर्तमान सरकार के प्रति लोगों के असंतोष के दम पर आधे से ज्यादा सीटें जीत ले जायेंगें। बहुजन समाज पार्टी को पूरा विश्वास था कि पिछले चुनाव में सपा के साथ हुए गठबंधन को तोड़ के वे मजबूत होकर उभरेंगे और मायावती के नेतृत्त्व में कमाल दिखायेंगे। और कांग्रेस को भी उम्मीद थी कि पार्टी में शीर्ष नेतृत्त्व को लेकर उपजी दुविधा के बावजूद वे प्रियंका गाँधी वाड्रा के दिशानिर्देश में कुछ बेहतर करेंगे।

इन सीटों में आठ (गंगोह, इगलास, लखनऊ कैंट, गोविंदनगर, मानिकपुर, जैदपुर, बल्हा, घोसी) पर भाजपा का कब्ज़ा था जबकि एक सीट (प्रतापगढ़) उनकी सहयोगी अपना दल के पास थी। एक सीट (रामपुर) सपा और एक (जलालपुर) बसपा के पास थी।

मतगणना के अंत में प्राप्त नतीजों के अनुसार, सात सीटें भाजपा ने जीतीं हैं, जबकि एक (प्रतापगढ़) उसकी सहयोगी अपना दल ने, और तीन सीट (रामपुर, जैदपुर और जलालपुर) सपा ने जीती है।

मतदाताओं की राजनीति

लेकिन इस बार शायद मतदाताओं ने अपने तरह की राजनीति कर डाली। न केवल सभी क्षेत्रों में अपेक्षा के अनुरूप मतदान नहीं हुआ, बल्कि लखनऊ कैंटोनमेंट जैसे महत्त्वपूर्ण राजधानी के क्षेत्र में 30 प्रतिशत से भी कम मतदान मतदाताओं की बेरुखी का अंदाज दिखा गया।

मतदाताओं ने या तो राजनीतिक दलों के कहने पर बड़ी संख्या में बाहर निकल कर वोट नहीं डाला, या दलों के समर्थक उन्हें वोट डालने के लिए प्रेरित करने में असफल रहे। लोगों के बीच किसी दल को लेकर कोई उत्साह नहीं दिखा– या यूं कहें कि उपचुनाव के प्रति ही कोई उत्साह नहीं दिखा। किसी भी क्षेत्र में प्रचार में भी कोई उत्साह या गर्मजोशी का भी अभाव रहा।

जहाँ तक राजनीतिक दलों का सवाल है, भाजपा ने इन उपचुनावों के प्रचार में पूरी ताकत लगा दी, और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बनाते हुए मंत्रिमंडल विस्तार, संगठन में बदलाव, प्रशासनिक फेरबदल, तेजी से लिए गए महत्त्वपूर्ण फैसलों आदि से यह स्पष्ट कर दिया कि वे इन उपचुनावों को कितनी गंभीरता से ले रहे हैं। सपा की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने व्यापक स्तर पर प्रचार करके अपने समर्थकों को उत्साहित किया, जबकि बसपा ने लम्बे समय बाद उपचुनाव लड़ने का निर्णय लेकर पार्टी की बदली सोच की ओर इशारा किया। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से, मायावती अपेक्षा के अनुरूप न तो प्रचार में शामिल हुईं, और न ही उन्होंने पार्टी के संगठन को उपचुनाव प्रचार में जी जान से लग जाने का आवाहन किया।

उभरते हुए संकेत

सभी नतीजों से कोई न कोई संकेत स्पष्ट रूप से सामने आया है। जहां भाजपा की स्वीकार्यता अभी भी बरक़रार है, वहीँ कुछ क्षेत्रों में पार्टी की जीत का कम अंतर लोगों के बीच सरकार के काम करने के तरीके के प्रति असंतोष या नाराजगी का संकेत है।

सपा की तीन सीटों पर जीत अखिलेश यादव के नेत्तृत्व के प्रति समर्थन का सन्देश है, और प्रमुख विपक्षी पार्टी के तौर पर सपा के स्थापित होने का स्पष्ट संकेत है।

बसपा का कमजोर प्रदर्शन पार्टी के लिए मंथन का विषय है क्योंकि पार्टी प्रमुख मायावती के लिए यह चुनाव सपा के साथ हुए गठबंधन से अलग होने के जनादेश का संकेत था। साफ़ है कि उनका पारंपरिक वोट बैंक तो खिसका ही है, उनके गठबंधन करने और तोड़ने का सिलसिला उनके समर्थकों को रास नहीं आया है।

कांग्रेस के लिए ये नतीजे एक बार फिर कमजोर संगठन और प्रादेशिक नेतृत्त्व की ओर इशारा करते हैं। प्रदेश कांग्रेस कमिटी में हुए बदलाव बहुत देर से हुए और नयी टीम को इन चुनावों के लिए काम करने का कम समय मिला।

क्या कहते हैं नतीजे

रामपुर से पूर्व मंत्री (और वर्तमान सांसद) आज़म खान की पत्नी तंजीन फातिमा ने सपा के लिये सीट बरक़रार रखी, जिससे साफ है कि व्यक्तित्वों का प्रभाव अभी भी मायने रखता है और भाजपा के लिए आज़म खान और रामपुर के बीच के गहरे सम्बन्ध को तोड़ना आसान नहीं।

सपा ने बाराबंकी की जैदपुर सीट भाजपा से छीन कर पार्टी के लिए लखनऊ से लगे जिले की इस सीट पर भाजपा के लिए चिंता बढ़ा दी है। सपा प्रत्याशी गौरव रावत ने भाजपा के अम्बरीश को हराया और यह सपा के लिए उत्साहवर्धक जीत है।

लखनऊ कैंट से भाजपा के वरिष्ठ नेता सुरेश तिवारी की जीत इस इलाके में भाजपा के प्रभाव को रेखांकित करती है, लेकिन बहुत कम मतदान पार्टी के लिए चिंता का विषय है।

कानपुर शहर की गोविंदपुर विधान सभा सीट से भाजपा के सुरेन्द्र मैथानी ने इस क्षेत्र में पार्टी की मजबूत पकड़ बनाये रखी है और महत्वपूर्ण यह है कि यहाँ दूसरे नम्बर पर कांग्रेस की करिश्मा ठाकुर रहीं।

चित्रकूट की मानिकपुर से भाजपा के आनंद शुक्ला जीते, जबकि दूसरे नंबर पर सपा के निर्भय सिंह रहे। बसपा के राजनारायण कोल का तीसरे नम्बर पर रहना पार्टी के लिए इस इलाके में घटते समर्थन का संकेत है। अलीगढ़ की इगलास सीट से भाजपा के राजकुमार ने बसपा के प्रत्याशी अभय कुमार बंटी को हराया।

बहराइच की बलहा सीट पर भाजपा उम्मीदवार सरोज सोनकर ने जीत दर्ज की, और दूसरे नम्बर पर सपा प्रत्याशी किरन भारती रहीं। बसपा के रमेश गौतम तीसरे स्थान पर रहे जबकि कांग्रेस की उम्मीदवार मन्नू देवी मात्र 1184 वोट पाकर अपनी जमानत खो बैठीं।

सहारनपुर की गंगोह सीट से भाजपा प्रत्याशी किरत सिंह जीत गए, जबकि कांग्रेस के नोमान मसूद 11 राउंड तक आगे थे। प्रदेश कांग्रेस सचिव प्रियंका गांधी ने मतगणना में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए ट्वीट किया है और पार्टी चुनाव आयोग में शिकायत करने का मन बना रही है।

प्रतापगढ़ सीट पर भाजपा की सहयोगी पार्टी अपना दल प्रत्याशी राजकुमार पाल ने जीत दर्ज की, और यह सीट पहले भी अपना दल के ही पास थी।

घोसी सीट से भाजपा के विजय राजभर ने जीत हासिल की, जबकि कुछ महीनों पहले हुए लोक सभा चुनाव में बसपा ने यह सीट भाजपा को हरा कर अपने नाम की थी।

आंबेडकरनगर की जलालपुर सीट पर बसपा प्रत्याशी छाया वर्मा ने आखिरी वक्त तक बढ़त बनाए रखी जो कि बसपा के लिए थोड़ी राहत की खबर है।

आने वाले दिनों में बसपा में आत्ममंथन, सपा में उत्साह, कांग्रेस में शिकायत, और भाजपा में चिंता का माहौल देखने को मिल सकता है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं , लेख में उनके निजी विचार हैं )

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