Thursday - 11 January 2024 - 7:32 PM

नेहरू से लेकर मोदी तक सबके लिए पूर्वांचल क्यों रहा खास

रतन मणि लाल

उत्तर प्रदेश में लोक सभा चुनाव के लिए सात चरणों में फैला मतदान 29 अप्रैल को प्रदेश के मध्य और बुन्देलखण्ड क्षेत्र की 13 सीटों पर पूरा होकर, पूर्व की ओर बढ़ चलेगा। इसके बाद मई की 6, 12 और 19 को प्रदेश के पूर्वांचल नाम से प्रसिद्ध इस क्षेत्र में मतदान होना है, और यहाँ का परिणाम प्रदेश और देश की राजनीति में निर्णायक होगा।

सोमवार 29 अप्रैल को अवध के शाहजहांपुर, खीरी, हरदोई, मिश्रिख, फर्रुखाबाद, इटावा, कन्नौज, उन्नाव, अकबरपुर, कानपुर, जालौन, झाँसी और हमीरपुर के मतदाता अपना प्रतिनिधि चुनेंगे, और इसके बाद के चरणों में यह वोट-यात्रा राजधानी लखनऊ समेत मध्य और पूर्वी उत्तर प्रदेश के 41 क्षेत्रों में पंहुचेगी। पूर्वांचल में सभी दलों के दिग्गज अपना भाग्य अजमाने को तैयार हैं और इनमे प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी (वाराणसी), कांग्रेस के सोनिया गाँधी (राय बरेली) व राहुल गाँधी (अमेठी), केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह (लखनऊ), समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव (आजमगढ़) और अन्य वरिष्ठ शामिल हैं।

ऐसा कुछ है पूर्वांचल में, कि राष्ट्रीय पटल पर अपनी जगह बनाने के इच्छुक किसी भी राजनीतिक व्यक्ति को इस क्षेत्र में अपनी जगह बनाना जरूरी लगता है। पिछले कई दशकों से कांग्रेस पार्टी के जवाहरलाल नेहरु, विजयलक्ष्मी पंडित, इंदिरा गाँधी, राजीव व संजय गाँधी, सोनिया व राहुल गाँधी इसी क्षेत्र से लोक सभा का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं। यही नहीं, जब नरेंद्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधान मंत्री पद का दावेदार घोषित किया गया तो उन्होंने ने भी वाराणसी को अपना चुनावी क्षेत्र चुना।

देश का पिछड़ा माना जाने वाला यह क्षेत्र हर साल बाढ़ और बीमारियों से जूझता है, बेरोजगारी और अनियंत्रित जनसँख्या यहाँ की बड़ी समस्याएं हैं और लोगों व सरकार के काम करने के तरीके में एक अलग ही लय है, जिसकी वजह से बड़े उद्योग यहाँ आने से सदा कतराते रहे हैं. राजनीतिक कारणों से जो उद्योग पिछले कुछ दशकों में सरकारी या निजी क्षेत्र में लगे भी, वे भी जल्द ही दम तोड़ गए।

उत्तर पूर्वी राज्यों खासतौर पर बिहार व झारखण्ड से बड़ी संख्या मे लोग यहाँ आकर बसे हुए हैं, इस क्षेत्र में रहने वाले चिकित्सा और अन्य बड़ी जरूरतों के लिए वाराणसी और लखनऊ को ही सबसे अधिक वरीयता देते हैं। धार्मिक व तीर्थस्थलों के स्थित होने के कारण यहाँ देश भर से श्रद्धालु साल भर आते रहते हैं।

राजनीतिक तौर पर यहाँ जातीय समीकरण ही मायने रखते हैं, और यही बड़ी वजह है कि लोगों द्वारा अपनी पसंद का प्रतिनिधि चुनने के बावजूद भी यहाँ सड़कों, बिजली और पानी की व्यवस्था के साथ सामान्य शहरी सुविधाएं भी लगभग वैसी ही हैं जैसी दशकों पहले थीं। प्रत्याशी का जीतना उसकी जाति, क्षेत्रीय जुड़ाव, दमदार व्यक्तित्व और सरकारी-पुलिस तंत्र पर नियंत्रण पर ही निर्भर करता है।

जीतने वाले प्रतिनिधि अपनी जाति व क्षेत्र के लोगों को अपने पक्ष में रखने के लिए तत्पर रहते हैं और लोग भी अपने ही सजातीय उम्मीदवार को जिताने के लिए तत्पर रहते हैं, भले ही उसने उनका कोई काम किया हो या नहीं। इस विषय में किये गए सवालों का जवाब अधिकतर यही मिलता है कि जीतेगा तो वही जिसे उस क्षेत्र में प्रभाव रखने वाली जातियां चाहेंगी।

वर्ष 2014 में यह स्थिति एकदम फर्क थी। जाति और संप्रदाय के विरोधाभास के बावजूद लोगों ने नरेंद्र मोदी को एक नई उम्मीद के प्रतीक के रूप में समर्थन दिया। उसके पहले की सरकारों द्वारा किये काम, उन सरकारों की कमियों और भ्रष्टाचार के आरोपों के तले कहीं दब-छिप गए. लोगों ने अपने निर्णय से इस बात पर विश्वास किया कि मोदी बदलाव लायेंगे, अच्छे दिन लायेंगे और खुशहाली लायेंगे। आज पांच साल बाद मोदी अपने काम करने के लिए पांच साल और मांग रहे हैं, लेकिन उन्हें रोकने के लिए उनके विरोधी जातिगत अंतर्विरोधों को दरकिनार कर उन्हें कड़ी टक्कर देने को तत्पर हैं।

पूर्वांचल में प्रदेश के अयोध्या (पूर्ववर्ती फैजाबाद), वाराणसी, गोरखपुर, देवीपाटन, बस्ती, आजमगढ़ और मिर्जापुर मंडल के 24 जिले सम्मिलित हैं, और यहाँ की 29 लोक सभा सीटों में 2009 में भाजपा ने केवल चार (बांसगांव, गोरखपुर, वाराणसी और आजमगढ़) जीती थें, लेकिन 2014 में आजमगढ़ (विजेता मुलायम सिंह यादव) और अमेठी (विजेता राहुल गाँधी) छोड़ सभी सीटों पर भाजपा विजयी रही।

मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से पांच बार सांसद रह चुके हैं लेकिन फिर भी बाद में हुए उप-चुनाव में भाजपा गोरखपुर और फूलपुर सीट हार गई थी, और इसके पीछे भी जातीय समीकरणों का न सही न बैठ पाना था। हालांकि एक आश्चर्यजनक घटनाक्रम में गोरखपुर जीतने वाले प्रवीण निषाद अब भाजपा के साथ हैं और संतकबीरनगर से प्रत्याशी हैं. गोरखपुर से भोजपुरी अभिनेता रवि किशन भाजपा उम्मीदवार हैं, तो वही आजमगढ़ से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के विरुद्ध एक और लोकप्रिय भोजपुरी अभिनेता दिनेश लाल यादव निरहुआ भाजपा के प्रत्याशी हैं।

मोदी स्वयं वाराणसी से एक बड़े रोड शो के बाद नामांकन दाखिल कर चुके हैं, और उस के एक दिन पहले खबर आई थी कि कांग्रेस की ओर से प्रियंका गाँधी वाड्रा वहां से प्रत्याशी नहीं होंगी। अब वहां से सपा की ओर से शालिनी यादव और कांग्रेस की ओर से अजय राय उम्मीदवार हैं।मोदी के सामने कोई मजबूत चुनौती नहीं दिखती।

अन्य चर्चित प्रत्याशियों में गाजीपुर से केन्द्रीय मंत्री मनोज सिन्हा और अफज़ल अंसारी (बसपा), कुशीनगर से आरपीएन सिंह (कांग्रेस), अपना दल से केन्द्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल (मिर्जापुर) और सुल्तानपुर से केंद्रीय मंत्री मानेका गाँधी हैं. सपा-बसपा गठबंधन की ओर से अखिलेश यादव और मायावती इस क्षेत्र में संयुक्त रैली करेंगे। यदि मोदी की लोकप्रियता और राष्ट्रवाद की हुंकार का जादू वाराणसी के बाहर भी चल जाता है, तब तो भोजपुरी अभिनेताओं का जादू भी चल सकता है, अन्यथा जातिगत और सांप्रदायिक आधार पर ही नतीजे आने की सम्भावना है।

 

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