Saturday - 20 January 2024 - 8:36 AM

भारत में विदेशी कोरोना टीकों की राह हुई आसान

जुबिली न्यूज डेस्क

कोरोना महामारी से जूझ रहे भारत में फिलहाल विदेशी कोरोना टीकों के प्रवेश का रास्ता आसान हो गया है। भारत सरकार ने मॉडर्ना और फाइजर जैसी कंपनियों के टीकों के लिए भारत में स्थानीय अध्ययन करने की बाध्यता को हटा दिया गया है।

दरअसल स्थानीय अध्ययन टीकों के भारतीय जीनों पर असर के बारे में पता लगाने के लिए किए जाते हैं। इस बाध्यता को हटाने की जानकारी भारत में दवाओं की नियामक संस्था डीसीजीआई के प्रमुख डॉक्टर वीजी सोमानी ने दी है।

डॉ. सोमनी ने बताया कि यह छूट उन टीकों को दी जाएगी जिन्हें अमेरिका, यूरोप, ब्रिटेन, जापान या विश्व स्वास्थ्य संगठन से इस्तेमाल की अनुमति मिल चुकी है।

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इन कंपनियों को उनके टीकों की हर खेप को कसौली स्थित सेंट्रल ड्रग्स लेबोरेटरी (सीडीएल) से जांच कराने की बाध्यता से भी छूट दे दी गई है। यह छूट तभी मिलेगी अगर हर खेप को कंपनी के मूल देश से प्रमाणन मिला हो।

लेकिन, टीका कंपनियों के लिए एक बाध्यता अभी भी रखी गई है जिसमें टीकों को व्यापक रूप से उपलब्ध कराने से पहले टीका पाने वाले पहले 100 लाभार्थियों की सात दिनों तक जांच करनी होगी और जांच के नतीजे पेश करने होंगे।

इसके अलावा सीडीएल हर खेप के उत्पादन के प्रोटोकॉल के सारांश की जांच-पड़ताल और समीक्षा जरूर करेगी। डीसीजीआई ने कहा कि यह बाध्यताएं भारत में टीकाकरण की बड़ी जरूरतों को देखते हुए हटाई गई हैं।

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वर्तमान में भारत में तीन कोरोना टीकों को अनुमति मिली हुई है। इसमें कोविशील्ड, कोवैक्सीन और स्पुतनिक वी शामिल है। लेकिन भारत में पहले दोनों टीके बहुत कम मात्रा में उपलब्ध हैं और तीसरे को तो अभी बड़ी संख्या में टीकाकरण अभियान में शामिल ही नहीं किया गया है।

देश में टीकाकरण की रफ्तार धीमी पड़ी हुई है और केंद्र सरकार पर मौजूदा टीकों की और अधिक खुराक और नए टीके उपलब्ध कराने का दबाव बढ़ता जा रहा है।

भारत पर है अंतरराष्ट्रीय दबाव

भारत में कोरोना की दूसरी लहर ने खूब तबाही मचायी है। यह तबाही अभी रूकी नहीं है। कोरोना के नये मामले आने कम हो गए हैं लेकिन मरने वालों का आंकड़ा अभी भी डरावना है।

कोरोना संकट के बीच फाइजर और मॉडर्ना जैसी कंपनियों के टीकों को भारत में लाने की कोशिशें चल रही हैं। मीडिया में आई कुछ खबरों में दावा किया गया था कि इन कंपनियों ने इस तरह की छूट की मांग भी की थी।

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कंपनियों ने इसके अलावा हर्जाने से सुरक्षा की भी मांग की हुई है, यानी कंपनियां चाहती हैं कि कि टीका लेने के बाद अगर किसी पर कोई दुष्प्रभाव पड़ा तो उसके लिए कंपनी जिम्मेदार नहीं होगी और उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।

भारत इसे एक महत्वपूर्ण नियम मानता है और कंपनियों की इस मांग को अभी तक माना नहीं गया है। लेकिन इन कंपनियों के टीके कब भारत में आ पाएंगे इस पर अभी तक स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई है।

दूसरी तरफ भारत पर टीकों की आपूर्ति का अंतरराष्ट्रीय दायित्व निभाने का दबाव भी बढ़ता जा रहा है। भारत ने फिलहाल टीकों के निर्यात पर रोक लगाई हुई है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि इस रोक से 91 देशों में टीकों की कमी हो गई है, जहां भारत के वादों की मदद से ही टीकों की आपूर्ति की उम्मीद थी।

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