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तो क्या इस बार इन मुद्दों पर ध्यान देंगे नीतीश कुमार

प्रीति सिंह

एक बार फिर नीतीश कुमार बिहार की बागडौर संभालने जा रहे हैं। आज वह सातवीं बार मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेंगे। इस बार वह मुख्यमंत्री बन रहे हैं तो इसका श्रेय बीजेपी को जाता है।

इस बार के चुनाव में बिहार की जनता ने नीतीश कुमार के उस तरह भरोसा नहीं किया जैसे हर बार करती आई थी। नीतीश कुमार बिहार की सत्ता अब तक काबिज रहे हैं तो उसकी बड़ी वजह उनकी छवि रही है। उनकी सुशासन बाबू की छवि की वजह से ही वह पिछले 15 सालों से लगातार बिहार की सत्ता में काबिज रहे, लेकिन इस चुनाव में उनकी लोकप्रियता में काफी कमी देखी गई।

चुनाव के दौरान नीतीश कुमार को भी भलीभांति एहसास हो गया था कि वह चुनाव में पिछड़ रहे हैं। इसी को देखते हुए उन्होंने चुनाव के अंतिम चरण में इमोशनल होकर कहा कि यह उनका अंतिम चुनाव है। उनके इस बयान के सियासी मायने निकाले गए कि यह उनका एक राजनीतिक स्टंट था।

उनके इस इमोशनल बयान पर भी जनता ने भरोसा नहीं जताया। बिहार की जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भरोसा जताया और उसी का नतीजा रहा कि चुनाव में एनडीए को बहुमत मिला। चूंकि एनडीए ने नीतीश कुमार को चेहरा बनाकर विधानसभा चुनाव लड़ा था, उन्हें शुरु से मुख्यमंत्री घोषित कर रखा था, इसलिए चुनाव नतीजे आए तो बीजेपी ने उन्हें फिर एक बार मुख्यमंत्री बना रही है।

हालांकि जब चुनाव नतीजे आए थे और एक तरह से भाजपा को जनादेश मिला, तो यह भी कयास लगने लगे कि अब शायद भाजपा का मुख्यमंत्री होगा लेकिन तब कई लोगों का कयास था कि शायद मुख्यमंत्री भाजपा का होगा।

लेकिन भाजपा की जीत के जश्न के वक्त प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने घोषणा कर साफ कर दिया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही होंगे। इस तरह तमाम कयासों को विराम लग गया और नीतीश कुमार को एक और मौका मिल गया।

नीतीश कुमार सातवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभालने जा रहे हैं। इतने लंबे समय तक सत्ता में रहने के बाद वे अच्छी तरह जानते हैं कि बिहार में कहां किस चीज की जरूरत है।

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बिहार की जनता ने लालू प्रसाद यादव को नकार कर नीतीश कुमार को इसलिए चुना था क्योंकि उनकी छवि एक कुशल प्रशासक के रूप में बनी हुई है, लेकिन चुनावी नतीजों को देखते हुए कहा जा सकता है कि जनता का नीतीश पर से विश्वास कमजोर हो गया है।

यह सच है कि नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद बिहार में कानून-व्यवस्था के मामले में उल्लेखनीय प्रगति भी दर्ज हुई, मगर पिछले कार्यकाल में लोगों को उनसे निराशा हुई तो इसलिए कि विकास के मामले में वे विफल साबित हुए।

बिहार देश का एक ऐसा प्रदेश है, जहां से उत्कृष्ट प्रतिभाएं और प्रतिबद्ध मानव श्रम निकलता है, लेकिन शिक्षा और रोजगार के लिए सबसे अधिक पलायन भी वहीं से होता है। यहां के लोगों को बेहतर इलाज के लिए दूसरे राज्यों का रुख करना पड़ता है। बिहार आर्थिक विकास के मामले में सबसे पिछड़े राज्यों में भी शुमार है।

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चुनावी माहौल में नीतीश कुमार बार-बार दावे करते रहे कि वे औद्योगिक इकाइयों को प्रोत्साहन देंगे, ताकि रोजगार के लिए लोगों को दूरे राज्यों में पलायन न करना पड़े, लेकिन सत्ता में आने के बाद इन तरफ उनका ध्यान नहीं गया। समस्याएं जस की तस बनी रही।

इतना ही नहीं नीतीश के पिछले कार्यकाल में अपराध के आंकड़े भी बढ़े। हत्या और बलात्कार की घटनाओं में बढ़ोतरी दर्ज हुई। इन घटनाओं को रोकने या कार्रवाई करने में प्रशासन के स्तर पर शिथिलता ही देखी गई। इन सबको लेकर तो लोगों में नाराजगी थी ही, रही सही कसर कोरोना ने पूरी की दी।

जब केंद्र सरकार ने कोरोना संक्रमण से बचाव के मद्देनजर देशव्यापी तालाबंदी की घोषणा की तो बिहार में नीतीश कुमार प्रशासन में घोर लापरवाही देखी गई। चाहे वह जांच के मामले में तत्परता दिखाने की जरूरत रही हो, गरीबों और बेसहारा लोगों को भोजन और दूसरी जरूरी चीजें उपलब्ध कराने की बात रही हो या फिर दूसरे शहरों से वापस अपने गांव-घर लौटे प्रवासी मजदूरों की सुध लेने की, हर मामले में नीतीश कुमार सरकार लचर साबित हुई। विधानसभा चुनावों में इसकी नाराजगी देखी गई।

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लेकिन सबसे अधिक गुस्सा युवाओं में बढ़ती बेरोगारी को लेकर बना रहा। राजद नेता तेजस्वी यादव ने इसी मुद्दे को उठाकर बिहार के युवाओं को अपने पक्ष में करने में सफल रहे।

इसलिए नई जिम्मेदारियों के साथ नीतीश कुमार की चुनौतियां सबसे अधिक बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य के मोर्चे पर होंगी। केंद्र में बीजेपी की सरकार है और यह उम्मीद स्वाभाविक है कि नीतीश कुमार उसके सहयोग से बिहार की इन चुनौतियों से पार पाने का प्रयास करेंगे।

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