सैयद मोहम्मद अब्बास
कहते हैं कि आज के दौर में सच दिखाना आसान नहीं होता, क्योंकि अक्सर सच को दबाने के लिए उसे तोड़-मरोड़कर पेश किया जाता है। मौजूदा समय में मीडिया, राजनीति और सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के चलते सही और गलत के बीच की लकीर धुंधली हो जाती है।
इतना ही नहीं, सच बोलने या दिखाने वालों पर सवाल उठाए जाते हैं और उनका विरोध किया जाता है।
इस दौरान दबाव या धमकियों का भी सामना करना पड़ता है, लेकिन इसके बावजूद कुछ मीडिया संस्थान आज भी अपनी ईमानदारी और साहस के साथ सच्चाई को सामने लाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
मुख्यधारा की मीडिया पर सरकार का प्रभाव रहता है। ऐसे में जनता की आवाज़ दबकर सरकारी भोंपू बन जाती है। जो लोग अपने जमीर का सौदा नहीं कर पाते और सही-गलत का फर्क समझते हैं, वे सरकारी भोंपू से अलग होने में विश्वास रखते हैं।
देश के कुछ चुनिंदा पत्रकार आज भी सच दिखाने के लिए ज़मीनी स्तर पर संघर्ष कर रहे हैं। उन्हें न तो किसी बड़े बैनर की जरूरत है और न ही किसी मीडिया संस्थान की। ऐसे ईमानदार पत्रकार सिर्फ और सिर्फ सच दिखाने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। उन्हीं पत्रकारों में शामिल हैं डॉ. उत्कर्ष सिन्हा, जिनकी सोच से जुबिली पोस्ट की नींव रखी गई।
देश के प्रतिष्ठित पत्रकारों और विशेषज्ञों के लेख इसकी विशिष्ट पहचान हैं। जुबिली पोस्ट में ऐसे 40 विशेषज्ञों के लेख लगातार प्रकाशित होते रहे हैं. जिनमे कई प्रतिष्ठित संपादक, शिक्षाविद और तकनीकी विशेषज्ञ शामिल है.
छह साल का सफर और अटूट संघर्ष
गोरखपुर के जुबिली इंटर कालेज के कुछ पुराने सहपाठी दोस्तों की साझा सोच ने इस परिकल्पना को न सिर्फ जन्म दिया बल्कि इसे साकार करने में तन मन धन से सहयोग दिया. पंकज राय, डा. त्रिलोक रंजन और राजीव राय ने अजय कान्त राय, अनिल चौबे और अशोक श्रीवास्तव ने परदे के पीछे से इस परियोजना को साकार करने और ईमानदार पत्रकारिता के लिए भामाशाह की भूमिका निभाई .
जुबिली पोस्ट आज अपना छठा जन्मदिन मना रहा है। इन छह सालों में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले, लेकिन आज भी यह अपनी “आजाद खबर” के वादे के साथ लगातार आगे बढ़ रहा है।
इन छह वर्षों में यह स्तरीय खबरों का ठिकाना बना रहा, ढेरों सफल प्रयोग किए, कई झंझावात झेले, फिर उबरा, नई लकीरें खींचीं और अब आगे और भी बहुत कुछ करना बाकी है।
जब इसकी नींव रखी जा रही थी, तभी तय हो गया था कि मौजूदा दौर की पत्रकारिता से बिल्कुल अलग सोच के साथ खबरों की दुनिया में कदम रखना होगा। जो सच है, वही दिखाना है। हमारी टैगलाइन भी यही थी – “आजाद खबर का वादा”। इसलिए हमने पूरी ईमानदारी के साथ इसी टैगलाइन पर विश्वास रखते हुए लगातार आगे बढ़ने का संकल्प लिया।
एक छोटी-सी टीम दिन-रात एक करके काम करती है और इस दौरान हमने कई बार उन मुद्दों को उठाया, जो आम लोगों से जुड़े होते हैं। चाहे खेल का मैदान हो या राजनीति की पिच, जुबिली पोस्ट की चर्चा हर जगह होती है।
कोरोना काल में हमने बुरे दिन देखे, लेकिन इसके बावजूद हमारे इरादे मजबूत रहे। आज हम अपने सातवें वर्ष में प्रवेश कर चुके हैं और अभी बहुत कुछ करना बाकी है।