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राजद्रोह कानून : इन आंकड़ों से तो यही लगता है कि सुप्रीम कोर्ट की चिंता जायज है

जुबिली न्यूज डेस्क

पिछले सप्ताह देश की शीर्ष अदालत ने राजद्रोह कानून के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त करते हुए इसे अग्रेजों का कानून बताते हुए केंद्र सरकार से पूछा था कि आजादी के 75 साल बाद इसे बनाए रखना क्यों जरूरी है, जबकि अन्य पुराने कानूनों को निरस्त कर रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट की चिंता यूं ही नहीं है। दरअसल देश में देशद्रोह कानून का दुरुपयोग हो रहा है। सरकार के खिलाफ जो भी आवाज बुलंद कर रहा है उसके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हो जा रहा है। आंकड़े भी इसकी गवाही दे रहे हैं।

केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2014 और 2019 के बीच राजद्रोह कानून के तहत कुल 326 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से सबसे अधिक 54 मामले असम में दर्ज किए गए।

इन मामलों में से 141 में आरोप-पत्र दायर किए गए, जबकि छह साल की अवधि के दौरान इस अपराध के लिए महज छह लोगों को दोषी ठहराया गया।

अधिकारियों के अनुसार गृह मंत्रालय ने अभी तक 2020 के आंकड़े एकत्रित नहीं किए हैं। यदि असम की बात की जाए तो राज्य में दर्ज किए गए 54 मामलों में से 26 में आरोप-पत्र दाखिल हुए तो वहीं 25 मामलों में मुकदमे की सुनवाई पूरी हुई। हालांकि, प्रदेश में 2014 और 2019 के बीच एक भी मामले में किसी को भी दोषी नहीं ठहराया गया।

अब झारखंड की बात करते हैं। यहां छह वर्षों के दौरान आईपीसी की धारा 124 ए के तहत 40 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 29 मामलों में आरोप-पत्र दाखिल किए गए और 16 मामलों में सुनवाई पूरी हुई, जिनमें से एक व्यक्ति को ही दोषी ठहराया गया।

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वहीं हरियाणा में राजद्रोह कानून के तहत 31 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से 19 मामलों में आरोप-पत्र दाखिल किए गए और छह मामलों में सुनवाई पूरी हुई, जिनमें महज एक व्यक्ति को दोषी ठहराया गया।

इसके अलावा केरल, बिहार और जम्मू कश्मीर में 25-25 मामले दर्ज किए गए। बिहार और केरल में किसी भी मामले में आरोप-पत्र दाखिल नहीं किया जा सका, जबकि जम्मू कश्मीर में तीन मामलों में आरोप-पत्र दाखिल किए गए।

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हालांकि इन तीनों राज्यों में 2014 से 2019 के बीच किसी भी मामले में किसी को भी दोषी नहीं ठहराया गया।

कर्नाटक में भी राजद्रोह के 22 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 17 मामलों में आरोप-पत्र दाखिल किए गए, मगर सिर्फ एक मामले में सुनवाई पूरी की जा सकी। हालांकि, इस अवधि में किसी भी मामले में किसी को भी दोषी नहीं ठहराया गया।

कानून-व्यवस्था की वजह से चर्चा में रहने वाले उत्तर प्रदेश की बात करते हैं। यहां 2014 और 2019 के बीच राजद्रोह के 17 मामले दर्ज किए गए तो वहीं पश्चिम बंगाल में आठ मामले दर्ज किए गए। यूपी में आठ और बंगाल में पांच मामलों में आरोप-पत्र दाखिल किए गए लेकिन दोनों राज्यों में किसी को भी दोषी नहीं ठहराया गया।

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देश की राजनीति दिल्ली भी इससे अछूती नहीं रही। 2014 और 2019 के बीच दिल्ली में राजद्रोह के चार मामले दर्ज किए गए, लेकिन किसी भी मामले में आरोप-पत्र दाखिल नहीं किया गया।

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इसके अलावा मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा, सिक्किम, अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप, पुदुचेरी, चंडीगढ़, दमन और दीव, दादरा और नागर हवेली में छह वर्षों में राजद्रोह का कोई मामला दर्ज नहीं किया गया। तीन राज्यों महाराष्ट्र, पंजाब और उत्तराखंड में राजद्रोह का एक-एक मामला दर्ज किया गया।

2019 में दर्ज हुए सबसे ज्यादा मामले

गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देश में साल 2019 में सबसे अधिक राजद्रोह के 93 मामले दर्ज किए गए। इसके बाद साल 2018 में 70, 2017 में 51, 2014 में 47, 2016 में 35 और 2015 में 30 मामले दर्ज किए गए।

देश में 2019 में राजद्रोह कानून के तहत 40 आरोप-पत्र दाखिल किए गए जबकि 2018 में 38, 2017 में 27, 2016 में 16, 2014 में 14 और 2015 में छह मामलों में आरोप-पत्र दाखिल किए गए।

जिन छह लोगों को दोषी ठहराया गया, उनमें से दो को 2018 में तथा एक-एक व्यक्ति को 2019, 2017, 2016 और 2014 में सजा सुनाई गई। साल 2015 में किसी को भी दोषी नहीं ठहराया गया।

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