Friday - 5 January 2024 - 2:40 PM

कोरोना की ‘वार्म वैक्सीन’ बनाने के करीब पहुंचे भारतीय वैज्ञानिक

जुबिली न्यूज डेस्क

भारतीय वैज्ञानिकों के खाते में एक और उपलब्धि जुडऩे वाली है। दरअसल भारतीय वैज्ञानिक कोरोना की वॉर्म वैक्सीन बनाने के काफी करीब पहुंच गए हैं। इस वैक्सीन का ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों परीक्षण किया है।

भारत के वैज्ञानिकों द्वारा बनाई कोरोना के एक वैक्सीन के फॉर्म्युलेशन का ऑस्ट्रेलिया के कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑर्गनाइजेशन ने परीक्षण किया है। रिसर्च ऑर्गनाइजेशन ने इसमें पाया है कि कोरोना वायरस के विभिन्न वेरिएंट्स पर यह वैक्सीन प्रभावी साबित हुई है।

बेंगलुरू स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के वैज्ञानिकों ने कोरोना की यह वॉर्म वैक्सीन बायोटेक स्टार्टअप फर्म मिनवैक्स के साथ मिलकर तैयार की है।

एसीएस इन्फेक्शियस डिजीज नामक पत्रिका में इस वैक्सीन को लेकर छपे एक शोध में ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों ने कहा है कि चूहों पर वैक्सीन के प्रयोग किए गए और काफी प्रभावशाली नतीजे मिले।

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पिछले सप्ताह प्रकाशित शोध पत्र में बताया गया है कि वैक्सीन ने चूहों में शक्तिशाली प्रतिरोधक क्षमता पैदा की और हैम्सटर्स को वायरस से बचाया।

यह वैक्सीन ने 37 डिग्री सेल्सियस पर एक महीने तक और 100 डिग्री सेल्सियस पर 90 मिनट तक स्थिर रही।

क्या होती है वॉर्म वैक्सीन

अब तक कोरोना की जितनी वैक्सीन बनी है उसमें अधिकांश वैक्सीन कोल्ड है। इसका मतलब है कि वैक्सीन को बहुत कम तापमान पर ही रखना पड़ता है। जैसे कि ऑक्सफर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन को 2-8 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है जबकि फाइजर को -70 डिग्री सेल्सियस तापमान से ज्यादा पर नहीं रखा जा सकता।

मेलबर्न के पास जीलॉन्ग स्थित सीएसआईआरओ के ऑस्ट्रेलियन सेंटर फॉर डिजीज प्रीपेअर्डनेस के साइंटिस्ट ने इस स्टडी में योगदान दिया है।

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उन्होंने टीका लगाए जाने के बाद लिए गए चूहों के खून के नमूनों की जांच की। इन चूहों को पूरी दुनिया में फैल रहे डेल्टा वेरिएंट समेत विभिन्न कोरोना वायरस से संक्रमित किया गया था।

रिसर्च के सह लेखक और प्रोजेक्ट लीडर डॉ. एसएस वासन ने कहा कि मिनवैक्स का टीका पाए चूहों ने कोरोना वायरस के सभी स्वरूपों के खिलाफ ताकतवर प्रतिरोध क्षमता दिखाई।

एक बयान में डॉ. वासन ने कहा, “हमारे आंकड़े दिखाते हैं कि मिनवैक्स ने ऐसे एंटिबॉडी बनाए जो अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा समेत सभी वेरिएंट्स को खत्म करने में कामयाब रहीं।”

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वहीं सीएसआईआरओ के हेल्थ एंड बायोसिक्यॉरिटी डायरेक्टर डॉ. रॉब ग्रेनफेल ने कहा कि दुनिया को वॉर्म वैक्सीन यानी अधिक तापमान पर भी स्थिर रहने वाले टीके की बहुत जरूरत है।

उन्होंने कहा, “ऐसी जगहों पर जहां संसाधनों की कमी है या फिर ऑस्ट्रेलिया के क्षेत्रीय इलाकों जैसे गर्म हिस्सों में, जहां कोल्ड स्टोरेज बड़ी चुनौती है, वहां के लिए वॉर्म वैक्सीन बहुत जरूरी है।”

अंतरराष्ट्रीय सहयोग जरूरी

इस साल के आखिर में इस वैक्सीन का मानव परीक्षण शुरू हो सकता है। ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिकों का रिसर्च मानव परीक्षण के लिए उचित उम्मीदवार चुनने में मददगार साबित होगा।

सीएसआईआरओ के हेल्थ एंड बायोसिक्यॉरिटी डाइरेक्टर डॉ. रॉब ग्रेनफेल कहते हैं कि कोविड से लडऩे में दुनियाभर के वैज्ञानिकों का सहयोग जरूरी है। उन्होंने कहा कि, ” कोरोना महामारी ने बताया है कि सस्ती वैक्सीन और इलाज उपलब्ध करवाने के लिए अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सहयोग बेहद जरूरी है।”

इससे पहले सीएसआईआरओ दो अहम कोविड वैक्सीनों का परीक्षण कर चुका है, जिनमें ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका का प्रि-क्लीनिकल परीक्षण भी शामिल है।

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