Sunday - 7 January 2024 - 3:29 AM

रामनवमी का त्योहार बना पश्चिम बंगाल में सियासत का हथियार , जानें कैसे

जुबिली न्यूज डेस्क

रमजान चल रहा है और आज रामनवमी भी है। रामनवमी पर जुलूस निकालने की परंपरा रही है. इस बार पश्चिम बंगाल में जोरदार जुलूस निकाले जा रहा है. इसकी तैयारियां भांपकर प्रदेश की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के कान खड़े हो गए. उन्होंने किसी पार्टी या नेता का नाम तो नहीं लिया, लेकिन इशारों में ही बीजेपी को चेतावनी दे डाली. ममता ने कहा कि मुस्लिम इलाकों में रामनवमी का जुलूस गया और वहां हंगामा हुआ तो कानूनी-कार्रवाई की जाएगी.

उन्होंने कहा, ‘मैं रामनवमी जुलूस नहीं रोकूंगी लेकिन याद रखना, हम भी मार्च करेंगे, आप भी. रमजान का महीना भी चल रहा है। अगर तुम किसी मुस्लिम इलाके में जाकर हमला करते हो तो याद रखना, उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी.

पश्चिम बंगाल में कोई एक दशक पहले तक रामनवमी का त्योहार चुनिंदा मंदिरों और आम लोगों के घरों तक ही सीमित था, लेकिन वहाँ अब सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के बीच यह पर्व सियासत का प्रमुख अस्त्र बन गया है.

रामनवमी के मौके पर विश्व हिंदू परिषद और उसके सहयोगी संगठनों की ओर से सैकड़ों की तादाद में आयोजित रैलियां और हथियारों के साथ जुलूस निकालने के मुद्दे पर सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी के साथ लगातार टकराव होता रहा है.

क्या है योजना?

जानकारों का मानना है कि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने अगर तमाम राजनीतिक पंडितों के अनुमानों को झुठलाते हुए 42 में से 18 सीटें जीत लीं तो इसमें इन आयोजनों की अहम भूमिका रही है.उसके बाद साल दर साल इस मौके पर आयोजन और उसकी भव्यता बढ़ती ही जा रही है. बीते लोकसभा चुनावों में बीजेपी के मज़बूत प्रदर्शन के बाद इस त्योहार पर सियासत का रंग और गहरा हुआ है.अब जल्दी ही होने वाले पंचायत चुनावों को ध्यान में रखते हुए विहिप और हिंदू जागरण मंच जैसे सहयोगी संगठनों ने इस साल भी बड़े पैमाने पर रैलियां निकालने और राम महोत्सव मनाने का एलान किया है.विश्व हिंदू परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके सहयोगी संगठनों ने इस साल रामनवमी यानी 30 मार्च से हनुमान जयंती (छह अप्रैल) तक पूरे राज्य में सप्ताह भर चलने वाले राम महोत्सव के आयोजन का एलान किया है.संघ की ओर से क़रीब दो हज़ार इलाकों में रामनवमी के मौके पर समारोह आयोजित किए जाएंगे.

ममता की चिंता

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि रामनवमी मनाने पर उनको कोई एतराज़ नहीं है, लेकिन इससे राज्य के सांप्रदायिक ढांचे को नुक़सान नहीं पहुंचना चाहिए. ममता केंद्र की कथित उपेक्षा के विरोध में 29 और 30 मार्च को दो-दिवसीय धरने पर बैठी हैं.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बीते कुछ वर्षों के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भड़काऊ टिप्पणियों और रामनवमी के आयोजनों के विरोध की वजह से संघ और उसके सहयोगी संगठनों को अपना पांव जमाने में सहायता मिली है. इसके अलावा चुनाव के समय कई जगह ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने वालों के ख़िलाफ़ ममता जिस तरह भड़कीं और ऐसा करने वालों की गिरफ़्तारियां हुईं, उससे भी उनकी छवि ख़राब हुई. बीजेपी को लोकसभा चुनावों में इसका फ़ायदा मिला.

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राजनीतिक विश्लेषक प्रोफ़ेसर समीरन पाल कहते हैं, “मुर्शिदाबाद ज़िले में सागरदिघी उपचुनाव के नतीजों ने तमाम दलों को अपनी रणनीति में बदलाव पर मजबूर कर दिया है. भाजपा को लग रहा है कि वहां अल्पसंख्यक वोट कांग्रेस और सीपीएम के पाले में लौट रहे हैं. ऐसे में उसके लिए हिंदू वोटरों का धुव्रीकरण ज़रूरी हो गया है. राम महोत्सव मनाने की जड़ें इसी में छिपी हैं.

आखिर हिंदू-मुसलमान किया ही क्यों?

बीजेपी प. बंगाल में रामनवमी के जुलूस के बहाने मुसलमानों पर हमले करती है या करेगी, ममता बनर्जी अगर इस बात को लेकर आश्वस्त हैं तो फिर क्या वो यह गारंटी दे सकती हैं कि हिंदू त्योहारों पर दूसरे संप्रदाय कभी आपत्ति न करेंगे? ममता बनर्जी खुद को सेक्युलरिजम की चैंपियन के तौर पर पेश करती हैं, लेकिन उनके उनकी सरकार पर मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप लगते रहे हैं. अगर बीजेपी हिंदुओं को जोड़ने में जुटी है तो ममता भी मुसलमानों पर लट्टू हैं. अगर बीजेपी रामनवमी जुलूस के जरिए हिंदुओं को साध रही है तो ममता भी कड़े बयान देकर मुसलमानों को लुभा रहे हैं. क्या इन बातें सिरे से खारिज की जा सकती हैं? आखिर हिदायत सिर्फ हिंदुओं को क्यों, मुसलमानों को क्यों नहीं? इन सबसे भी बड़ा सवाल- एक मुख्यमंत्री को रामनवमी जैसे पवित्र त्योहार पर हिंदू-मुसलमान करने की जरूरत ही क्या है? क्या प. बंगाल में जल्द ही होने वाले पंचायत चुनावों के लिए दोनों तरफ से माहौल तो नहीं बनाया जा रहा है?

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