Saturday - 6 January 2024 - 11:22 PM

महाराष्ट्र पॉलिटिकल ड्रामा : क्या आप भी इन सवालों के जवाब खोज रहे हैं ?

जुबिली न्यूज़ डेस्क

महाराष्ट्र के पॉलिटिकल ड्रामे का आखिर अंत हो ही गया और अब कल यानी कि 28 नवम्बर को उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं। महाराष्ट्र की राजनीति में पहली बार शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस एक साथ मिलकर सरकार चलाने जा रहे हैं। 24 अक्टूबर को महाराष्ट्र में चुनाव परिणाम आने के बाद एक महीने से भी ज्यादा समय गुजर चुका है।

इस बीच जो राजनीति की तस्वीर देश ने देखी वैसी तस्वीर पहले कभी नहीं देखी गई। पिछले एक महीने में महाराष्ट्र की राजनीति ने इस तरह पल पल रंग बदला कि खुद को चाणक्य और सियासी पंडित कहने वाले भी कोई भी भविष्यवाणी करने से पहले सौ बार सोचने को मजबूर हो गए।

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फ़िलहाल उद्धव ठाकरे के शपथ ग्रहण समारोह की तैयारियां जोरों पर हैं लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में कई ऐसे सवाल भी उठे जिनके जवाब अब तक अनुउत्तरित हैं। इन सवालों के जवाब कभी मिलेंगे भी या नहीं ये तो नहीं मालूम फ़िलहाल आइए जानते हैं कि जनता से लेकर राजनीतिक पंडित अभी भी किन सवालों के जवाब ढूंढ रहे हैं।

शिवसेना और बीजेपी में चुनाव पूर्व 50-50 का वादा हुआ या नहीं

महाराष्ट्र के पूरे सियासी ड्रामे के पीछे शिवसेना और बीजेपी के बीच गठबंधन का टूटना है। इस दोस्ती के टूटने की वजह बना 50-50 का फार्मूला। दरअसल शिवसेना चुनाव परिणाम आने के बाद इसी फार्मूला को मनवाने में अड़ गई थी। उद्धव ठाकरे का कहना था कि नई सरकार में हमें बराबर की हिस्सेदारी चाहिए जबकि बीजेपी को यह मंजूर नहीं था।

बीजेपी अभी भी बड़े भाई की भूमिका में रहना चाहती थी। शिवसेना ने कहा कि, चुनाव से पहले ही तय हुआ था कि 50-50 के फार्मूला पर गठबंधन रहेगा। वहीं बीजेपी का कहना है कि उसने ऐसा कोई वादा नहीं किया। अब कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ ये तो उद्धव और अमित शाह के आलावा किसी को नहीं मालूम।

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अजित पवार ने डिप्टी सीएम पद की शपथ क्यों ली

इस घटनाक्रम में सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के गठबंधन की ख़बरों के बीच 23 नवंबर को बाजी पलटते हुए बीजेपी ने एनसीपी के अजित पवार के साथ मिलकर सरकार बना ली।

अजित पवार ने डिप्टी सीएम पद की शपथ भी ली और दावा किया कि उनके साथ एनसीपी के कई विधायक हैं, लेकिन शरद पवार के सख्त तेवर के बाद अजित पवार को घर वापसी करनी पड़ी और बीजेपी को मुंह की खानी पड़ी।

हालांकि इसके बाद भी लोगों के जहन में एक सवाल बचा रह गया है कि अजित पवार का इस तरह बागी होना और फिर वापस आना कौन सी रणनीति थी। क्या यह सब शरद पवार के ही इशारे पर हुआ था या फिर वाकई पवार परिवार में कोई दरार पड़ चुकी है। जिसका क्लाइमेक्स अभी बाकी है।

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अमित शाह को देवेन्द्र फडणवीस ने गुमराह किया

सोशल मीडिया पर ऐसी ख़बरें चल रही हैं कि महाराष्ट्र में चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह का दांव इसलिए उल्टा पड़ा क्योंकि उन्हें देवेन्द्र फडणवीस ने गुमराह किया था। बताया जा रहा है कि देवेन्द्र ने शाह को भरोसा दिलाया था कि वह बहुमत सिद्ध कर लेंगे और उनके पास पर्याप्त संख्याबल है।

हालांकि सवाल यहां भी बनता है कि क्या अमित शाह इतनी बड़ी बाजी बिना किसी तैयारी के देवेन्द्र फडणवीस के भरोसे खेल सकते हैं। जिस अमित शाह ने पूरे देश में अपनी कूटनीति का लोहा मनवाया हो वह ऐसी चूक कैसे करेंगे। महाराष्ट्र में बीजेपी की इस छीछालेदर के लिए खुद अमित शाह ही जिम्मेदार हैं या फिर देवेन्द्र फडणवीस को मोहरा बनाया जा रहा है ?

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शिवसेना-एनसीपी और कांग्रेस की सरकार पूरे 5 साल चलेगी

फ़िलहाल राज्य में दो अलग विचारधार के दल मिलकर सरकार चलाने जा रहे हैं लेकिन सवाल यहां भी खड़ा है। लोगों को ऐसा लगता है कि यह बेमेल गठबंधन पूरे पांच साल सरकार चलाने में कामयाब नहीं होगा।

दरअसल समस्या यह है कि शिवसेना कट्टर हिंदुत्व की विचारधारा वाला संगठन है वहीं एनसीपी और कांग्रेस सेक्युलर विचारधारा के पक्षधर हैं ऐसे में इन दलों को अपने कार्यकर्ताओं को संभाले रहने के लिए अच्छी खासी मशक्कत करनी पड़ेगी।

अक्सर देखा गया है कि दो विपरीत विचारधारा के दल तो एक हो जाते हैं लेकिन कार्यकर्त्ता आपस में सामंजस्य नहीं बना पाते। हाल ही यूपी विधानसभा चुनाव के पूर्व सपा-बसपा गठबंधन भी हुआ लेकिन फिर दोनों ही दल आमने-सामने हैं।

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बीजेपी को सरकार बनाने की जिद क्यों थी

महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए बीजेपी इतना मेहनत क्यों कर रही थी यह सवाल भी बहुत से लोगों के मन में है। आखिर ऐसी क्या वजह थी कि यहां सरकार बनाने की कोशिश में पार्टी ने खुद की जग हंसाई करवा ली।

पत्रकार धीरेन्द्र अस्थाना का कहना है कि बीजेपी को इस बात का डर सता रहा था कि कहीं महाराष्ट्र के बाद दूसरे राज्यों में भी एनडीए में फूट न पड़ जाए। क्योंकि शिवसेना ने जिस तरह तेवर दिखाकर बीजेपी को बैकफुट में ला दिया है उसके बाद अन्य सहयोगी दल भी बीजेपी में हावी होने की कोशिश करेंगे।

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