Sunday - 7 January 2024 - 5:43 AM

जगन मोहन क्यों विधान परिषद को खत्म करना चाहते हैं ?

अब्दुल हई

आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने सवाल उठाया है कि विधान परिषद का औचित्य क्या है ? मंत्रिमंडल ने 27 जनवरी को एक प्रस्ताव पारित कर राज्य विधान परिषद को समाप्त करने की प्रक्रिया को हरी झंडी भी दिखा दी। इस तरह का प्रस्ताव विधानसभा में भी लाया जाएगा और इसे आवश्यक कार्यवाही के लिए केंद्र के पास भेजा जाएगा।

आंध्र की 58 सदस्यीय परिषद में वाईएसआर कांग्रेस नौ सदस्यों के साथ अल्पमत में है। इसमें विपक्षी तेलगु देशम पार्टी के 28 सदस्य हैं। यहां पर जगनमोहन रेड्डी का थोड़ा स्वार्थ भी जुड़ा है। उनका तीन राजधनी बनाने का बिल अटक गया है।

मुख्यमंत्री वाई.एस. जगनमोहन रेड्डी की अध्यक्षता वाली आंध्र प्रदेश कैबिनेट ने राज्य के उच्च सदन विधान परिषद को समाप्त करने के विधेयक के मसौदे को मंजूरी दे दी है। आंध्र प्रदेश विधान परिषद को खत्म करने का फैसला सोमवार को हुई कैबिनेट की बैठक में लिया गया। विधान परिषद में विपक्षी तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा) के सदस्यों का प्रभुत्व है, जोकि सत्ताधारी वाईएसआरसी पार्टी द्वारा राज्य में तीन राजधानियां बनाने के फैसले का विरोध कर रही है।

विधान परिषद में जगन के तीन राजधानियों वाले महत्वाकांक्षी प्रस्ताव को झटका लगा है। इस संबंध में जब विधेयक को विधान परिषद में पेश किया गया तो तेदेपा ने इसे सिलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया, जिसके कारण उनकी यह परियोजना लटक गई है।

कैबिनेट ने विपक्षी तेदेपा द्वारा बहुमत के बल से विधानसभा के विधेयकों को रोकने के लिए कथित दुरुपयोग के मद्देनजर विधान परिषद को खत्म करने का संकल्प लिया है लेकिन वास्तव में यह सदन राज्य की जनता पर एक बोझ के समान है। सत्तारूढ़ और विपक्ष दोनों इसका जमकर दुरुपयोग करते हैं। इससे पहले तेदेपा ने विधान परिषद में एससी और एसटी के लिए अलग-अलग आयोग बनाने संबंधित प्रस्ताव में या तो देरी की या उसे खारिज कर दिया था।

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इसके अलावा परिषद ने सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा शुरू करने के विधेयक को भी खारिज कर दिया था। राज्य की विधान परिषद में तेदेपा नेता और पूर्व मंत्री वाई. रामकृष्णुडू ने संवाददाताओं से कहा, “अगर विधानसभा ने प्रस्ताव पारित कर दिया है तो भी यह महज प्रस्ताव ही होगा। केवल संसद को ही परिषद को खत्म करने का अधिकार है।” उन्होंने परिषद को समाप्त करने के वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) के फैसले को सबसे अलोकतांत्रिक और अवैध कदम करार दिया।

मुख्यमंत्री वाई एस जगनमोहन रेड्डी ने विधानसभा से कहा, ‘हमें गंभीरता से सोचने की जरूरत है कि क्या हमें ऐसे सदन की आवश्यकता है जो केवल राजनीतिक मंशा के साथ कार्य करता प्रतीत हो। परिषद का होना अनिवार्य नहीं है, जो हमारी अपनी रचना है और यह केवल हमारी सुविधा के लिए है।’

वास्तव में वाईएसआर कांग्रेस ने 17 दिसंबर को पहली बार परिषद को खत्म करने की धमकी दी थी जब यह स्पष्ट हो गया था कि टीडीपी अनुसूचित जातियों के लिए एक अलग आयोग बनाने और सभी सरकारी स्कूलों को अंग्रेजी माध्यम में बदलने से संबंधित दो विधेयकों को रोकने पर आमादा थी। चूंकि 17 दिसंबर को विधानमंडल को स्थगित कर दिया गया था, इसलिए आगे कोई कार्रवाई नहीं की गई, लेकिन पिछले हफ्ते यह मुद्दा फिर उठ गया जब टीडीपी तीन-राजधानियों की योजना के विरोध में अपने रुख पर कायम रही।

वाईएसआर कांग्रेस अपने पक्ष में दो टीडीपी सदस्यों को लाने में कामयाब रही, लेकिन सरकार परिषद में तीन राजधानियों वाले विधेयक को पारित कराने में विफल रही। भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक राज्य में एक विधानमंडल का प्रावधान किया गया है। किसी राज्य में एक सदन और किसी में दो का प्रावधान है। केवल सात राज्यों में विधान मंडल और विधान परिषद् दोनों का प्रावधान है। दो सदन वाले विधानमंडल का उच्च सदन विधान परिषद और निम्न सदन विधानसभा कहलाता है। विधानसभा का गठन वयस्क मतदान के आधार पर प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने गए जनता के प्रतिनिधियों से होता है। जैसे केंद्र में लोकसभा का महत्त्व राज्यसभा से अधिक है, वैसे ही प्रांत में विधानसभा का महत्त्व विधान परिषद से अधिक है।

भारतीय संसद को यह अधिकार दिया गया है कि वह विधि-निर्माण करके किसी भी राज्य की विधान परिषद को समाप्त कर सकती है। अथवा जिस राज्य में विधान परिषद नहीं है वहां उसका निर्माण कर सकती है। यदि कोई राज्य अपने यहां विधान परिषद का गठन करना चाहता है तो इसके लिए विधानसभा के एक तिहाई सदस्यों के समर्थन के साथ प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजना होता है। केंद्र की मंजूरी के बाद राज्य में विधान परिषद का गठन हो सकता है। विधान परिषद के एक तिहाई सदस्य राज्य विधानसभा के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं। अन्य एक तिहाई स्थानीय निकायों के सदस्यों यानी नगर पालिका और जिला बोर्ड के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं।

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विधान परिषद के सदस्यों का कार्यकाल राज्यसभा सदस्यों की तरह छह साल का होता है। प्रत्येक दो साल पर एक तिहाई सदस्यों का चुनाव होता है। राज्यसभा सदस्यों के उलट विधान परिषद सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में वोट नहीं डाल सकते हैं। आंध्र प्रदेश में विधानसभा की 176 और विधान परिषद की 58 सीटें हैं। राज्य में विधान परिषद का गठन 1958 में हुआ था लेकिन 1985 में इसे समाप्त कर दिया गया था। हालांकि 2007 में इसका फिर से गठन किया गया। आंध्रप्रदेश के बंटवारे के बाद भी वहां विधान परिषद है।

सात राज्यों में विधान मंडल और विधान परिषद दोनों का प्रावधान है, वे राज्य हैं- आंध्र प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और जम्मू और कश्मीर। विधान परिषद कुछ भारतीय राज्यों में लोकतंत्र की ऊपरी प्रतिनिधि सभा है।

आंध्र प्रदेश से अलग होकर नए राज्य बने तेलंगाना में विधानसभा की कुल 119 और विधान परिषद की 40 सीटें है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 403 सीटें है और विधान परिषद की 100 सीटें है। विधान परिषद के सदस्य अप्रत्यक्ष चुनाव के द्वारा चुने जाते हैं। कुछ सदस्य राज्यपाल के द्वारा मनोनीत किए जाते हैं। विधान परिषद विधान मंडल का अंग है। इसके सदस्यों का कार्यकाल छह वर्षों का होता है लेकिन प्रत्येक दो साल पर एक तिहाई सदस्य हट जाते हैं। हालांकि इसके सदस्य वे भी बन जाते हैं जिन्हें जनता कभी नकार चुकी होती है।

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