जुबिली स्पेशल डेस्क
मैं उस लड़के (तेजस्वी यादव) को बहुत साल से फॉलो कर रहा हूं, बहुत लोग मानते थे कि इस चुनाव में वो कमजोर कड़ी है लेकिन वो एक बहुत मजबूत कड़ी उभर कर सामने आया है।
और राज्यों में बड़े नेताओं के जो लड़के राजनीति में आए हैं उनसे सबसे सुपर तेजस्वी हैं। तेजस्वी यादव को लेकर शिवसेना के राज्यसभा सांसद और राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय राउत ने अपना विचार रखा है।
संजय राउत की बात में क्या है दम
अगर देखा जाये तो संजय राउत की बात में दम जरूर लग रहा है। दरअसल तेजस्वी यादव को रोकने के लिए पूरा NDA लगा हुआ है।
आलम तो यह है नीतीश ही नहीं अब पीएम मोदी तेजस्वी यादव की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए चुनावी दंगल में खुद उतर आए है और तेजस्वी को जंगलराज का युवराज भी बता डाला है।
यह भी पढ़ें : बिहार की चुनावी रणभूमि में क्या है राहुल गांधी की भूमिका ?
जो तेजस्वी यादव बिहार चुनाव से पहले नीतीश के लिए चुनौती नहीं थे लेकिन अब हालात पूरी तरह से उलट है।
बिहार की जनता बदलाव चाहती है और उसे तय करना फिर से नीतीश या फिर युवा तेजस्वी पर भरोसा किया जाये।
तेजस्वी को लेकर अलग-अलग राय थी सहयोगियों में
तेजस्वी यादव को लेकर उनके सहयोगियों में अलग-अलग राय थी। इतना ही नहीं चुनाव से पहले कुछ छोटे दल महा गठबंधन का हिस्सा थे लेकिन तेजस्वी यादव को कमजोर कड़ी बताकर एनडीए का हिस्सा बन गए है।
तेजस्वी यादव ने इस दौरान बेहद समझदारी से बिहार चुनाव में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करायी है।
तेजस्वी ऐसे बने महागठबंधन में सीएम के चेहरे
तेजस्वी यादव ने पहले कांग्रेस को मनाया और सीपीएम को अपने नेतृत्व में चुनाव लडऩे के लिए राजी किया।
लालू के दौर में कांग्रेस को कम सीटे दी जाती थी लेकिन इस बार महागठबंधन में सीटों के बंटवारे के तहत राज्य की 243 सीटों में से 144 राष्ट्रीय जनता दल, 70 कांग्रेस और 29 सीट वाम दलों के खाते में आयी हैं।
यह भी पढ़ें : ‘बीजेपी के लिए महंगाई पहले डायन थी, अब भौजाई बन गई है’
यह भी पढ़ें : लव जिहाद पर सीएम योगी ने क्या चेतावनी दी?
यह भी पढ़ें : तेजस्वी ने तोड़ा लालू यादव का यह रिकार्ड
इस वजह से तेजस्वी यादव कांग्रेस को ज्यादा सीट देकर सबको चौंका डाला है। हालांकि तेजस्वी यादव ने अपने पिता लालू से हटकर ये कदम उठाया है। हालांकि कांग्रेस जिन सीटों पर चुनाव लड़ रही हैं वहां पर राजद उतनी मजबूत नहीं है।
तेजस्वी की रैलियों में जुटती भीड़ क्या दे रही है इशारा
हालांकि अब तेजस्वी यादव की रैलियों में जुटती भीड़ से एक बात तो साफ हो गई है कि इस बार नीतीश कुमार के लिए राह आसान नहीं है। राजनीतिक के जानकार भी तेजस्वी की रैलियों में उमड़ रही भीड़ से जीत-हार का अंदाजा लगाना की बात कह रहे हैं।
महागठबंधन के प्रत्याशियों की ओर से रैलियों और सभाओं में भी तेजस्वी यादव हीं नजर आ रहे हैं। इस वजह से वो एक दिन में 16-16 रैलियां कर रहे हैं।
तो ऐसे बन गए तेजस्वी यादव अपनी पार्टी में बड़े नेता
31 साल के तेजस्वी यादव अपनी पार्टी में बड़े नेताओं में शुमार हो गए है। हालांकि अहम बात यह है कि तेजस्वी यादव की लोकप्रियता ठीक उसी तरह से नजर आ रही है जिस तरह से 90 के दशक में लालू यादव की होती थी।
तेजस्वी यादव ने जनता के बीच अपनी छवि को और अच्छा करने के लिए उन्होंने सबसे पहले 1990 से 2005 तक 15 साल के लालू-राबड़ी शासन के दौरान भूल के लिए माफी मांगी और बड़ी सफाई से उन्होंने चुनावी पोस्टर से लालू को गायब कर जनता के बीच एक अलग मैसेज देने की कोशिश की है।
यह भी पढ़ें : आखिरकार पश्चिम बंगाल के लिए बीजेपी को मिल ही गया मुद्दा
यह भी पढ़ें : भीड़ के उत्साह में खुद की नसीहत भूल रहे हैं नेता
यह भी पढ़ें : डंके की चोट पर : लव – जेहाद – राम नाम सत्य
जो इस चुनाव में राजद के लिए काफी नई हैं। शुरुआत केवल तेजस्वी के चेहरे के साथ नई सोच, नया बिहार’ के पोस्टर से हुई है।
अहम बात यह है कि लालू या राबड़ी देवी के बिना राजद के किसी भी पोस्टर की कल्पना करना शायद आसान भी नहीं था लेकिन राजद ने तेजस्वी यादव को लेकर अपनी सोच बता दी है।
यह भी पढ़ें : बीजेपी ने सुधारी अपनी गलती
यह भी पढ़ें : बिहार की महाभारत में तेजस्वी अभिमन्यु होंगे या अर्जुन?
यह पोस्टर राजद के पुराने अतीत को भुलाकर नई सोच को लेकर आया है। इतना ही नहीं मीसा भारती को भी पोस्टर से दूर रखने की रणनीति के पीछे पार्टी को भाई-भतीजावाद के आरोपों से बचाना भी था।
चुनावी मैदान में तेजस्वी यादव हिट हैं। युवाओं में उनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है। वह एक परिपक्व नेता की भांति अपने सधे भाषणों से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं।