Wednesday - 10 January 2024 - 6:26 AM

सीवेज में मिला कोरोना वायरस

जुबिली न्यूज डेस्क

पूरी दुनिया में कोरोना वायरस को लेकर शोध चल रहा है। आए दिन कोरोना को लेकर कोई न कोई स्टडी प्रकाशित हो रही है। अब जयपुर से कोरोना को लेकर एक स्टडी सामने आई है जिसमें कहा गया है कि नगरपालिका के वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट और अस्पताल के अपशिष्ट जल में सार्स-सीओवी-2 (SARS-CoV-w)  वायरल जीन की उपस्थिति पाई गई है।

यह स्टडी जयपुर के बी लाल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने किया हैं। उन्होंने लगभग 1.5 महीने (मई और जून, 2020) में छह नगरपालिका वेस्ट वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट की विभिन्न इकाइयों से उपचारित (ट्रीटेड) और अनुपचारित (अनट्रीटेड) अपशिष्ट (वेस्ट) के नमूने एकत्रित किए।

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शोधकर्ताओं ने जयपुर के आसपास कोरोना उपचार के लिए नामित दो प्रमुख अस्पतालों के सीवेज से नमूने भी एकत्र किए। यह अध्ययन मेड्रिक्सिव जर्नल में 18 जून को प्रकाशित हुआ। यह प्री-प्रिंटेट पेपर और नॉन पीयर-रिव्यू जर्नल है।

एकत्र नमूनों से वायरल राइबोन्यूक्लिक एसिड (आरएनए) को निकाला गया और वायरल जीन का पता लगाने के लिए रीयल टाइम (आरटी) -पीसीआर विश्लेषण किया गया।

नगर पालिका के वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट से एकत्र किए गए नमूनों में से दो सैंपल पॉजिटिव पाए गए। वैज्ञानिकों ने यह भी जांचने की कोशिश की, कि क्षेत्र में समाचार पत्रों के माध्यम से रिपोर्ट किए गए कोविड -19 मामलों और वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के पॉजिटिव नमूनों के बीच संबंध है या नहीं।

वैज्ञानिकों के इस विश्लेषण से पता चला है कि पहले नमूने के तुरंत बाद, वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के आस-पास के क्षेत्रों, (जहां से अनट्रीटेड सैंपल वायरस परीक्षण के लिए एकत्र किए गए थे), में कोविड-19 रोगियों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई।

शोधकर्ताओं ने ट्रीटेट वेस्ट वाटर नमूनों में वायरल जीनोम की उपस्थिति के लिए भी परीक्षण किया क्योंकि इस पानी का उपयोग कृषि क्षेत्रों में सिंचाई के लिए किया जाता है।

अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि ट्रीटेट वाटर में वायरस के जीनोम नहीं पाए गए। यहां तक कि उन इलाकों के ट्रीटेट वाटर में भी वायरस के जीनोम नहीं पाये गए जहां के अनट्रीटेट वाटर में वायरस के जीनोम की पुष्टि हुई थी। जिसके कारण कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अपशिष्ट उपचार प्रणालियों (वेस्ट ट्रीटमेंट सिस्टम) के प्रभाव को मान्यता मिली है।

अध्ययन करने वाले समूह का दावा है कि यह पहला अध्ययन है जो भारत में सीवेज नमूनों से सार्स- सीओवी-2 की उपस्थिति की पुष्टि करता है और एक चेतावनी देने का आधार देता है जहां व्यक्ति-परीक्षण उपलब्ध नहीं हो सकता है।

हालांकि शोधकर्ताओं को उन साइटों के उपचारित (ट्रीटेट) नमूनों में कोई वायरल जीनोम नहीं मिला, जहां के अनुपचारित (नॉनट्रीटेट) अपशिष्ट जल में वायरस का पता चला था

यह (सीवेज वॉटर) समुदाय में वायरस के प्रसार की निगरानी के लिए एक महत्वपूर्ण टूल है, खासकर महामारी के दौरान, जब क्लीनिकल डाइग्नोसिस करना कठिन और एसिमटमेटिक इन्फेक्शन आम हैं।

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