Sunday - 7 January 2024 - 12:59 PM

कोरोना महामारी : खतरे में है महिलाओं और नवजातों का जीवन

  •  स्वास्थ्य सेवाओं में 20 फीसदी की कमी
  • 37 करोड़ बच्चे रह जाएंगे मिड डे मील से वंचित

जुबिली न्यूज डेस्क

कोरोना महामारी की वजह से दुनिया के ज्यादातर देश परेशान है। कोरोना वायरस की वजह से जहां संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं तो वहीं कोरोना महामारी की वजह से महिलाओं और नवजातों का जीवन खतरे में पड़ गया है।

दरअसल सरकारें कोरोना संक्रमण की वजह से अन्य बीमारियों पर ध्यान नहीं दे पा रही है जिसकी वजह से ये समस्या बढ़ती जा रही है। स्वास्थ्य सुविधाओं से बढ़ती दूरी इस खतरे को और बढ़ा रही है।

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संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट के मुताबिक इस महामारी के चलते महिलाओं, नवजात शिशुओं, बच्चों और किशोरों तक स्वास्थ्य सुविधाओं और सामाजिक सेवाओं की पहुंच में 20 फीसदी की कमी आई है। ऐसे में जो देश पहले ही खस्ता-हाल स्वास्थ्य सुविधाओं से जूझ रहे थे, उन देशों में महिलाओं और बच्चों पर इस महामारी का असर कुछ ज्यादा ही पड़ रहा है।

एक अनुमान के मुताबिक इस महामारी के कारण स्वास्थ्य सेवाओं में जो अवरोध आया है, उसकी वजह से पांच साल से कम आयु के करीब 400,000 या उससे अधिक बच्चों की जानें गई हैं, जबकि यदि 2018 के आंकड़ों को देखें तो इस वर्ष में जन्म के पहले महीने में ही 25 लाख नवजातों की मृत्यु हो गई थी, पर अनुमान है कि इस महामारी के कारण यह आंकड़ा बढ़कर 26,68,000 पर पहुंच जाएगा।

इसके अलावा कोरोना महामारी की वजह से अर्थव्यवस्था को जो नुकसान पहुंचा है उसके कारण रोजगार की भारी कमी आई है। घटती आय और बढ़ती गरीबी ने पहले से ही स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित आबादी के लिए समस्याओं को और बढ़ा दिया है।

रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना महामारी 6.6 करोड़ बच्चों को इतना गरीब कर देगी कि उनके लिए दो वक्त का भोजन मिलना भी मुश्किल हो जाएगा, स्वास्थ्य सेवाएं तो बहुत दूर की बात है।

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रिपोर्ट में कहा गया है कि पोषक आहार और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण गर्भवती महिलाओं का जीवन और कष्दायक हो गया है। अनुमान है कि यह महामारी हर साल होने वाली मातृत्व मौतों में 24,400 का और इजाफा कर देगी। जब किसी महिला की गर्भावस्था में होने वाली किसी बीमारी, पोषण, खून की कमी आदि कारणों के कारण या प्रसव होने के 42 दिनों के अंदर मौत हो जाए, तो उसे मैटरनल डेथ (मातृ मृत्यु) कहते हैं।

मालूम हो कि हर साल प्रसव और उसके बाद करीब 295,000 महिलाओं की मौत हो जाती है, जिसका बड़ा कारण पोषण की कमी है।

इसके अलावा भारत सहित कई देशों में स्कूलों में दिया जा रहा मिड डे मील, यानी दोपहर का भोजन बच्चों के पोषण का एक जरुरी हिस्सा है, पर अनुमान है कि इस महामारी के चलते करीब 37 करोड़ बच्चे इस मिड डे मील से वंचित रह जाएंगे।

1.35 करोड़ बच्चे को नहीं लग पाए जीवन रक्षक टीके

संयुक्त राष्ट्र से जुडी एलिजाबेथ मेसन के मुताबिक कोरोना महामारी के कारण विकसित और विकासशील दोनों ही देशों में स्वास्थ्य सेवाएं बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। हालात अभी भी नहीं सुधरे हैं। ऐसे में महिलाओं, नवजात शिशुओं, बच्चों और किशोरों को मिलने वाली स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा चुकी हैं।

मेसन ने कहा कि यदि आंकड़ों को देखें तो इस दौरान करीब 1.35 करोड़ बच्चे जरुरी जीवन रक्षक टीकों से वंचित रह जाएंगे।

दरअसल संक्रमण रोकने के लिए जो तालाबंदी की गई थी, उस दौरान इन जीवन रक्षक टीकों से जुड़ी सेवाओं को लगभग बंद कर दिया गया था। साथ ही इसमें लगे स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को हटाकर कोविड-19 की रोकथाम में लगा दिया गया था। यह समस्या केवल एक देश की नहीं है। 20 से अधिक देशों ने माना है कि उनके देशों में इस बीमारी के कारण जरुरी जीवन रक्षक टीकों की कमी पैदा हो गई है।

महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहे हैं हिंसा के मामले

यूएन की रिपोर्ट के अनुसार तालाबंदी के दौरान गर्भनिरोधक उपायों की कमी के चलते गरीब और मध्यम आय वाले देशों में 1.5 करोड़ से ज्यादा अनवांटेड प्रेगनेंसी हो सकती है। जबकि दूसरी ओर इस बीमारी के बढ़ते दबाव के कारण अवसाद, चिंता और अनिश्चितता बढ़ रही है। इस महामारी ने महिलाओं के खिलाफ हो रहे हिंसा के मामलों को भी बढ़ा दिया है।

अनुमान है कि तालाबंदी के हर तीन महीनों में महिलाओं के खिलाफ हिंसा और प्रताडऩा के करीब 1.5 करोड़ अतिरिक्त मामले सामने आ रहे हैं। जबकि इमरजेंसी कॉल्स में 30 फीसदी की वृद्धि देखी गई है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार 2000 के बाद से मातृ और बाल मृत्यु दर में उल्लेखनिय कमी आई है। आंकड़े दिखाते हैं कि पिछले बीस सालों में इनमें लगभग 40 फीसदी की कमी आई है और यह कमी केवल अमीर देशों में ही नहीं बल्कि गरीब देशों में भी रिकॉर्ड की गई है।

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