Friday - 5 January 2024 - 8:03 PM

कौन है दादी हृदयमोहिनी जिनके निधन पर PM मोदी ने दी श्रद्धांजलि

जुबिली स्पेशल डेस्क
प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की मुखिया राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनी (Dadi Hridya Mohini) का गुरुवार सुबह 10:30 बजे देहांत हो गया. उनका निधन 93 साल की उम्र में हुआ है।
जानकारी के मुताबिक उन्होंने अपनी अंतिम सांसे मुंबई के सैफी हॉस्पिटल में ली है। उनके पार्थिव शरीर को एयर एंबुलेंस से राजस्थान के आबू रोड शांतिवन में अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय ले जाया जाएगा।
उन्हें दिव्य बुद्धि का वरदान प्राप्त था। अंतिम संस्कार संस्थान के शांतिवन में 13 मार्च को किया जाएगा। दादी के निधन पर राष्ट्पति से लेकर प्रधानमंत्री और दादी के निधन पर छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित कई लोगों ने भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी है।
ब्रह्माकुमारीज के सूचना निदेशक बीके करुणा ने बताया कि राजयोगिनी दादी हृदय मोहिनी का स्वास्थ्य कुछ समय से ठीक नहीं चल रहा था।
मुम्बई के सैफी हॉस्पिटल में आपका कुछ समय से स्वास्थ्य लाभ चल रहा था। डॉक्टरों के मना करने के बाद आपको दो दिन पूर्व ही मुख्यालय लाया गया था।
 निधन की सूचना पर संस्थान के भारत सहित विश्व के 140 देशों में स्थित सेवाकेन्द्रों पर शोक की लहर दौड़ गई। साथ ही ब्रह्माकुमारीज के आगामी कार्यक्रमों को स्थगित कर दिया गया है।
वर्ष 1928 में कराची में हुआ था जन्म 
दादी हृदयमोहिनी के बचपन का नाम शोभा था। आपका जन्म वर्ष 1928 में कराची में हुआ था। आप जब 8 वर्ष की थी तब संस्था के साकार संस्थापक ब्रह्मा बाबा द्वारा खोले गए ओम निवास बोर्डिंग स्कूल में दाखिला लिया।
यहां आपने चौथी कक्षा तक पढ़ाई की। स्कूल में बाबा और मम्मा (संस्थान की प्रथम मुख्य प्रशासिका) के स्नेह, प्यार और दुलार ने इतना प्रभावित किया कि छोटी सी उम्र में ही अपना जीवन उनके समान बनाने की निश्चय किया। वहीं आपकी लौकिक मां की भक्ति भाव से परिपूर्ण थीं।
मात्र चौथी कक्षा तक की थी पढ़ाई 
दादी हृदयमोहिनी ने मात्र चौथी कक्षा तक ही पढ़ाई की थी। लेकिन तीक्ष्ण बुद्धि होने से आप जब भी ध्यान में बैठतीं तो शुरुआत के समय से ही दिव्य अनुभूतियां होने लगीं। यहां तक कि आपको कभी बार ध्यान के दौरान दिव्य आत्माओं के साक्षात्कार हुए, जिनका जिक्र उन्होंने ध्यान के बाद ब्रह्मा बाबा और अपनी साथी बहनों से भी किया।
1969 में ब्रह्मा बाबा के निधन के बाद बनीं परमात्म दूत
18 जनवरी 1969 में संस्था के संस्थापक ब्रह्मा बाबा के अव्यक्त होने के बाद परमात्म आदेशानुसार दादी हृदयमोहिनी ने परमात्मा संदेशवाहक और दूत बनकर लोगों के लिए आध्यात्मिक ज्ञान और दिव्य प्रेरणा देने की भूमिका निभाई।
दादीजी ने 2016 तक संस्थान के मुख्यालय माउंट आबू में हर वर्ष आने वाले लाखों भाई-बहनें के लिए परमात्मा का दिव्य संदेश देकर योग-तपस्या बढ़ाने के लिए प्रेरित किया।
एक बार चर्चा के दौरान दादीजी ने बताया था कि जब में मन की शक्ति से वतन में जाती हूं तो आत्मा तो शरीर में रहती है लेकिन मुझे इस शरीर का भान नहीं रहता है। उस दौरान मेरे द्वारा जो वचन उच्चारित होते हैं वह भी मुझे याद नहीं रहते हैं।
बाबा से दादीजी को हुए थे साक्षात्कार 
एक साक्षात्कार के दौरान दादी ने बताया था कि जब वह 9 वर्ष की थीं और अपने मामा के यहां गईं थीं, तभी उनके घर ब्रह्मा बाबा का आना हुआ। यहां बाबा से उन्हें दिव्य साक्षात्कार हुआ था।
बाबा हम बच्चों का इतना ख्याल रखते थे कि खुद अपने हाथ से दूध में काजू-बादाम डालकर खिलाते थे। बाबा का प्यार, स्नेह इतना मिला कि कभी भी लौकिक मां-बाप की याद नहीं आई।
14 साल तक हैदराबाद में रहकर की कठिन साधना
दादी हृदयमोहिनी ने 14 वर्ष तक बाबा के सानिध्य में रहकर कठिन योग-साधना की। इन वर्षों में खाने-पीने को छोडक़र दिन-रात योग साधना में वह लगी रहती थीं।
इसके साथ ही बाबा एक-एक सप्ताह का मौन कराते थे। तभ से दादी का स्वभाव बन गया था कि जितना काम हो उतना ही बात करती थीं। अंत समय तक वह मौन में रहीं।
नॉर्थ उड़ीसा विश्वविद्यालय ने प्रदान की डिग्री
राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनीजी को नॉर्थ उड़ीसा विश्वविद्यालय, बारीपाड़ा ने डी. लिट (डॉक्टर ऑफ लिटरेचर) की उपाधि से विभूषित किया है। दादी को यह उपाधि उड़ीसा में प्रभु के संदेशवाहक के रूप में लोगों में आध्यात्मिकता का प्रचार-प्रसार करने और समाजसेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान पर प्रदान की गई।
संस्था की 80वीं वर्षगांठ पर मुख्यालय माउण्ट आबू, आबू रोड के शांतिवन में आयोजित अंतरराष्ट्रीय महासम्मेलन एवं सांस्कृतिक महोत्सव में 28 मार्च 2017 को नॉर्थ उड़ीसा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. प्रफुल्ल कुमार मिश्रा ने उपाधि प्रदान की।
उन्होंने दादी के कार्यों की सराहना करते हुए इसे गौरव का विषय बताया था। कुलपति मिश्रा ने कहा कि मैं आज यह डिग्री दादी को देते हुए बहुत ही गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। संस्था विश्व शांति, प्रेम, भाईचारा और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में जो कार्य कर रही है वह अनुपम उदाहरण है।
दादी जानकी के निधन के बाद बनीं थीं मुख्य प्रशासिका-
पिछले साल 27 मार्च 2020 में संस्थान की पूर्व मुख्य प्रशासिका 104 वर्षीय राजयोगिनी दादी जानकी जी के निधन के बाद आपको संस्थान की मुख्य प्रशासिका नियुक्त किया गया था।
अस्वस्थ होने के बाद भी आपको दिन-रात लोगों का कल्याण करने की भावना लगी रहती थी। दादीजी मुंबई से ही संस्थान की गतिविधियों का सारा समाचार लेतीं और समय प्रति समय निर्देशन देतीं।
Radio_Prabhat
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