Monday - 22 January 2024 - 6:26 PM

बिहार चुनाव : महागठबंधन में कम सीटों के ऑफर से वामदल नाराज़

जुबिली न्यूज़ डेस्क

नई दिल्ली. बिहार में अगले दो महीने के भीतर चुनाव निबट जाने हैं, लिहाजा बिहार में चुनावी गतिविधियाँ बहुत तेज़ी से चल रही हैं. एक तरफ नीतीश कुमार के नेतृत्व में राजग की तैयारियां चल रही हैं तो दूसरी तरफ राजद महागठबंधन की तैयारियों में जुटा हुआ है. बिहार चुनाव में लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल का पलड़ा क्योंकि सबसे ज्यादा भारी है इसलिए महागठबंधन में किसको कितनी सीटें मिलनी हैं यह तय करने में राष्ट्रीय जनता दल ही आगे है. राजद ने इस चुनाव के लिए वामदलों को जितनी सीटों का ऑफर किया है उससे वामदलों में नाराजगी है और यह अभी कहा नहीं जा सकता कि वामदल इस महागठबंधन का हिस्सा रहेंगे या नहीं.

सीपीआईएमएल के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने संवाददाता सम्मेलन आयोजित कर इस बात पर नाराजगी जताई है कि राजद ने उन्हें महागठबंधन में बहुत कम सीटें देने की बात कही है जबकि हम बिहार में सौ सीटों पर लड़ते आये हैं. महागठबंधन से जुड़े सूत्रों का कहना है कि वामदल पहले ज्यादा सीटों पर लड़ते थे यह सही है लेकिन उन्हें इधर कामयाबी कम सीटों पर मिल पा रही है. पिछले चुनाव में वामदल सिर्फ तीन सीटों पर चुनाव जीता था. 1990 के बाद से वामदलों के सीटें जीतने का सिलसिला बहुत कम हो गया है.

2019 के लोकसभा चुनाव में कन्हैया कुमार बेगुसराय से सीपीआई के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे. कन्हैया के चुनाव पर पूरे देश की निगाहें टिकी थीं. कन्हैया इस सीट से चुनाव हार गए थे. हार का अंतर भी बहुत बड़ा था.

बिहार में पुराने दौर में वाम दलों की पोजीशन बहुत अच्छी हुआ करती थी. 1969 में तो वाम दलों के समर्थन से कांग्रेस ने सरकार बनाई थी. 1972 में वामदल सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरा था और नेता विपक्ष की कुर्सी वामदलों को मिली थी, लेकिन हालात बदले और वाम दलों की सीटें घटती चली गईं. हालांकि लालू प्रसाद यादव को पहली बार मुख्यमंत्री बनाने में भी वामदलों की सबसे बड़ी भूमिका थी. इसी के बाद 1991 में वामदलों ने लोकसभा की नौ सीटें जीती थीं. 96 के चुनाव में वामदल लोकसभा की सिर्फ तीन सीटें ही जीत पाए.

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वामदलों ने गरीबों के हक़ को लेकर जो संघर्ष किया उसकी वजह से उनकी सियासी ज़मीन मज़बूत हुई लेकिन मंडल आन्दोलन के बाद पिछड़ी जातियों के नेताओं लालू प्रसाद यादव, शरद यादव और नीतीश कुमार के साथ ही रामविलास पासवान ने उस ज़मीन पर कब्ज़ा जमा लिया और वामदलों के जमे हुए पाँव उखड़ गए. इसके बाद बिहार से झारखंड टूटकर अलग हो गया. झारखंड टूटने के बाद वामदल भी कमज़ोर हो गए.

वामदल क्योंकि कमज़ोर हो चुके हैं इसीलिये महागठबंधन ने भे उन्हें कम सीटें ऑफर की हैं. इस ऑफर को वामदल किस तरह से लेते है यही बात यह तय करेगी कि वामदल महागठबंधन का हिस्सा रहेंगे या नहीं.

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