Sunday - 7 January 2024 - 6:08 AM

ममता के बयान बोले ओवैसी- गरीब की जोरू सबकी भाभी

जुबिली न्‍यूज डेस्‍क

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव की सरगर्मी तेज हो गई है। इस बार का चुनाव कई मायनों में खास होने वाला है। एक तो बीजेपी पूरी ताकत से इस बार सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का मुकाबला करने को तैयार है,  वहीं पहली बार असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम भी बंगाल में अपना दमखम दिखाने जा रही है।

ओवैसी की एंट्री से ममता बनर्जी को यहां भी बिहार चुनाव वाले हाल का डर होने लगा है। उन्होंने आरोप लगाया है कि बीजेपी AIMIM को पैसे देकर अल्पसंख्यक वोट बंटवा रही है।

सबसे पहले जानते हैं कि ममता बनर्जी ने अपने बयान में क्या कहा। दरअसल जलपाईगुड़ी में आयोजित जनसभा संबोधित करते हुए ममता ने बिना नाम लिए निशाना साधा। ममता ने कहा, ‘अल्पसख्यकों के वोटों को विभाजित करने के लिए उन्होंने (बीजेपी) हैदराबाद की एक पार्टी (AIMIM) को पकड़ा है। बीजेपी उन्हें पैसे देती है और वे वोटों को बांटने का काम करते हैं। बिहार चुनाव में भी यह देखा गया है।’

वहीं AIMIM अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने ममता के इस बयान पर पलटवार करते हुए कहा कि ममता बनर्जी को फिक्र करनी चाहिए अपने घर की, उनकी पार्टी के इतने लोग भाजपा में जा रहे हैं। वो अपनी पार्टी की बौखलाहट मेरे ऊपर निकाल रही हैं। हैदराबाद में एक कहावत है गरीब की जोरू सबकी भाभी।

दरअसल बंगाल में ममता बनर्जी अल्पसंख्यकों की पहली पसंद मानी जाती हैं। उनके समर्थन की बदौलत ही ममता दस साल से सत्ता में हैं। लेकिन इस बार AIMIM के बंगाल चुनाव में उतरने से सारे समीकरण बिगड़ते नजर आ रहे हैं। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि ओवैसी ममता के इसी खास वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं और इसका सीधा फायदा बीजेपी को होता नजर आ रहा है।

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बिहार चुनाव के नतीजों ने ओवैसी का आत्मविश्वास बढ़ाया है। उनकी पार्टी ने भले ही पांच सीटें जीती हों लेकिन महागठबंधन के वोट काटने की चर्चा सबसे ज्यादा रही। इससे पहले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में पहली बार आंध्र प्रदेश या तेलंगाना के बाहर AIMIM ने विधानसभा सीटें जीती थीं। लिहाजा ओवैसी और उनके कार्यकर्ता उत्साहित हैं और अब बंगाल पर नजरें गढ़ाए हुए हैं। दूसरी ओर बंगाल में बीजेपी के मजबूत होने के साथ ही धार्मिक आधार पर वहां ध्रुवीकरण भी तेजी से हो रहा है। ऐसे में ओवैसी की एंट्री ममता बनर्जी के लिए बड़ा सिरदर्द है।

ओवैसी ने बीजेपी को हराने के लिए ममता बनर्जी को चुनाव पूर्व गठबंधन का प्रस्ताव भी दिया था लेकिन ममता ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। उल्टा अब वह ओवैसी को बीजेपी का सहयोगी बताते हुए ताबड़तोड़ हमले कर रही हैं। ओवैसी की पार्टी बंगाल में कितना असर डालेगी, यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन बिहार चुनाव जैसी या उससे ज्यादा की सफलता का अनुमान लगा रही AIMIM के लिए यहां कई चुनौतियां होंगी।

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बंगाल की चुनावी राजनीति में अल्पसंख्यकों का प्रभाव बिहार से ज्यादा है और यह ममता का कोर वोटर भी माना जाता है। पश्चिम बंगाल में पहली बार चुनाव लड़ने जा रही एआईएमआईएम महत्वपूर्ण सीटों पर ही फोकस करेगी। माना जा रहा है कि ओवैसी की एआईएमआईएम मुस्लिम बहुल जैसे मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तर दिनाजपुर और कुछ अन्य सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी।

2011 की जनगणना के मुताबिक, पश्चिम बंगाल की कुल आबादी का 27.01 फीसदी हिस्सा मुस्लिम समुदाय थे। अब यह आंकड़ा 30 फीसदी के करीब पहुंच गया है। बांग्लादेश सीमा से लगे राज्य मुस्लिम बहुल हैं। मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तर दिनाजपुर में मुस्लिम आबादी अधिक है। इसके अलावा दक्षिण और उत्तर 24 परगना जिलों में भी इनका खासा असर है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 294 विधानसभा सीटों वाले राज्य में मुस्लिम समुदाय 120 सीटों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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कभी यहां मुस्लिम वोट बैंक पर लेफ्ट का दबदबा था। फिर धीरे-धीरे यह वोट बैंक ममता की तरफ खिसकना शुरू हुआ और इसी वोट बैंक की बदौलत ममता सत्ता में बनी रहीं। सत्ता में रहने के दौरान ममता सरकार ने अल्पसंख्यकों की सहायता के लिए दर्जनों योजनाएं शुरू की हैं। इनमें मदरसों को सरकारी सहायता से लेकर छात्रों के लिए स्कॉलरशिप और मौलवियों की आर्थिक मदद भी शामिल है। इन्हीं कारणों से बीजेपी समेत अन्य दल ममता पर तुष्टिकरण के आरोप लगाते रहे हैं।

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हाल के दिनों में अल्पसंख्यकों के एक तबके में टीएमसी के प्रति नाराजगी भी बढ़ी है। ऐसे में बंगाल चुनाव में ओवैसी की मौजूदगी उन्हें नया विकल्प दिला सकती है। यही वजह है कि इन दिनों ममता बनर्जी और उनकी टीएमसी ओवैसी और उनकी पार्टी पर हमलावर हो गई है।

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