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आखिर क्यों शिवपाल सपा के बगैर भी है मजबूत

स्पेशल डेस्क

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में एक समय सपा काफी मजबूत हुआ करती थी। इतना ही नहीं सपा की मजबूती का ये आलम रहा है कि दूसरे दल भी यहां पर अकेले जीतने का दावा नहीं करते थे। हालांकि उस दौर में सपा को बसपा से मजबूती चुनौती मिलती रही है। दरअसल मुलायम ने अपनी पार्टी सपा को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान दिलायी है। इस दौरान मुलायम ने अपना राजीतिक विस्तार राष्ट्रीय स्तर पर भी किया।

इतना ही नहीं मुलायम दिल्ली की राजनीतिक में ज्यादा सक्रिय रहने लगे और यूपी की सियासत अपने भाई शिवपाल यादव और अपने बेटे अखिलेश यादव को सौंप दी लेकिन परिवार की एकता ज्यादा दिन तक नहीं चल सकी और पार्टी कमजोर हो गई।

दरअसल अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव के बीच रार इतनी ज्यादा बढ़ गई कि दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए। इसका सबसे बड़ा खामियाजा खुद अखिलेश के साथ-साथ सपा को भुकतना पड़ा है। सपा की सरकार चली गई और बीजेपी का राज यूपी में आ गया। इस दौरान जिन-जिन लोगों से अखिलेश ने हाथ मिलाया था, उनसे पार्टी को फायदा होने के बजाये नुकसान हुआ।

अखिलेश ने कांग्रेस और सपा के साथ गठबंधन किया था लेकिन इसके उलट पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा। इतना ही नहीं अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव ने भी उनसे किनारा कर लिया और अपनी नई पार्टी बनाकर सपा को चुनौती देने लगे। इसके बाद दोनों के बीच बातचीत तक बंद हो गई। दोनों अगले चुनाव में एक दूसरे को चुनौती देने की तैयारी में है।

इस बारे में खुद शिवपाल यादव ने भी बेबाकी से अपनी राय रखी है और कहा है कि तीन महीने में शानदार संगठन खड़ा किया है और यूपी की सियासत को प्रभावित किया है। अगर हमें विपक्षी दलों के गठबंधन में शामिल किया जाता तो लोकसभा चुनाव के परिणाम कुछ और होते। शिवपाल यादव यहीं नहीं रूके और आगे कहा कि राजनीति कई बार अंकगणित से अधिक रसायन शास्त्र होता है। उन्होंने सपा का नाम लिए बिना कहा कि उनके एक नेता ने कहा था कि पुराना रिकार्ड देख लें, बड़े बड़े नेताओं ने संगठन बनाए उनका राजनीतिक अस्तित्व खत्म हो गया। मेरे बारे में कहा गया कि इनका पूर्वांचल में कोई राजनीतिक आधार नहीं है।

राजनीतिक जानकारों की माने तो शिवपाल यादव की पार्टी प्रसपा इन दिनों सपा का विकल्प बनने की कोशिशों में लगी हुई लेकिन ये कहना अभी जल्दीबाजी होगी, क्योंकि सपा अब भी कुछ पुराने चेहरों के बल पर वापसी करने की बात कह रही है। इसी को ध्यान में रखकर अखिलेश यादव अब अकेले ही चुनावी दंगल में उतरना चाहते हैं। इसके साथ ही अखिलेश यादव उन मुद्दों पर सरकार घेरते हुए नजर आ रहे हैं जिनसे सपा को भविष्य में फायदा होगा।

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