Friday - 12 January 2024 - 1:11 AM

यूँ ही राह चलते चलते: अतीत के गुनगुने ख्वाब से रूबरू एक जीवंत दस्तावेज

कुमार भवेश चंद्र

अपने अतीत की यादों से गुजरना अपने ही जीवन की दूसरी यात्रा की तरह ही होता है…इसमें सुख है.. दुख है…खुशियां हैं और संताप भी। लेकिन जो भी है बेगाना या अनजाना नहीं बल्कि अपना सा है। एक छोटी सी पुस्तिका के रूप में सावित्री सिनहा की स्मृतियों का दस्तावेज ‘यूं ही राह चलते चलते’ से गुजरते हुए कब आप अपनी स्मृतियों में खो जाएंगे आपको पता भी नहीं चलेगा।

सावित्री सिनहा की शख्सियत पर बात से पहले उनकी इस पहली पुस्तक की चर्चा जरूरी है। यह पुस्तक उम्र के 80 के पड़ाव को पार करने वाली एक घरेलू महिला की यादों के जरिए आपको बीते दिनों के समाज और उसके दर्शन की ओर ले जाता है। सामाजिक समस्याओं और संस्कारों से रू ब रू कराता है। आपको बताता है कि हमारी-आपकी यात्रा किन पड़ावों से होकर गुजरी है। बार-बार आपको अपने अतीत की यादों में झांकने को विवश करता है। और इतना कुछ कर देने वाली किताब की लेखिका को सामान्य श्रेणी में आप नहीं ही रखना चाहेंगे।

अभी तो ये आपको ये भी बताना बाकी है कि इस कहानी ने कोरोनाकाल में जन्म लिया है। जब पूरी दुनिया और समूचा देश, हमारा आपका सबका वजूद दरवाजे में कैद हो गया था। किसी आशंका से डर से गया था। तब ये कहानी अतीत की यादों से निकलकर कागज पर स्याही की शक्ल में नमूदार हुआ। दो प्रतिभावान पत्रकार और लेखकों की अम्मा सावित्री सिनहा का कागज और कहानियों से इस तरह का रिश्ता पहले न था।

इस पुस्तक में खुश्बू का एक अलग रंग ये भी है कि अक्सर हमने मांओं को अपने बेटों को प्रेरित करते देखा-सुना है। लेकिन इस पुस्तक का जन्म बेटों की प्रेरणा से हुई है। लेखक-पत्रकार डॉ. उत्कर्ष सिनहा ने अपनी मां की इस पुस्तक का भावुक प्रस्तावना पेश किया है, विद्वानों की नजर में ये किताब साहित्य नहीं हो सकती है लेकिन मेरी नजर में उससे बड़ी है। ये दस्तावेज एक प्रेरणा है, एक नसीहत है और जिंदगी के सफरनामों की रंगीन पेंटिंग है।

इस पुस्तक को पढ़ते हुए डॉ उत्कर्ष से की ये बातें आपके यकीन में बदल जाएंगी। सावित्री सिनहा ने बताया है कि कहानियों से उनका नाता तो पुराना था, लेकिन वे खुद अपनी कहानी के जरिए एक युग को आपके सामने लेकर आएंगी ये सोचा नहीं था। सचमुच सावित्री सिनहा की ये स्मृतियां आपके मानस पटल पर अतीत के न मिटने वाले दस्तावेज की तरह चिपक जाएंगी।

कुल 11 कहानियों वाली यह पुस्तक ऐसा उत्सुकता पैदा करती है कि आप किसी वेबसीरीज की तरह इन्हें जल्दी से जल्दी निपटा लेने की जुगत में भिड़ जाएंगे। कुल 64 पन्नों का ये दस्तावेज कई अनुभवों से गुजरने के समान है। कवर पेज की खूबसूरती के लिए अली रजा की तारीफ बनती है लेकिन प्रूफ की गलतियों के लिए किसे दोष दूं यह समझना होगा। पुस्तक को महज पारिवारिक लोगों के बीच प्रसार की भावना ने शायद प्रकाशक का ध्यान उस ओर नहीं जाने दिया। अगर संशोधित संस्करण बाजार में पहुंचे तो आम पाठक भी इसे हाथो हाथ लेंगे।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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