Sunday - 7 January 2024 - 5:00 AM

तो क्या मोदी बदल पायेंगे मतदाताओं का मिजाज

सुरेंद्र दुबे 


झारखंड में एक सप्ताह बाद तस्वीर साफ हो जायेगी कि सत्ता में कौन आ रहा है। बीजेपी दोबारा सत्तासीन होगी या महागठबंधन सरकार बनायेगी, इस पर राजनीतिक विश्लेषकों में गंभीर मतभेद है। चौथे चरण का चुनाव हो चुका है और एक चरण  बाकी है। फिलहाल अब तक हुए चुनाव के बाद जो स्थिति सामने आ रही है उसमें ये तय है कि बीजेपी अपने बल पर सरकार बनाने नहीं जा रही है। उसे औरों के बल पर सरकार बनाने के लिए नाको चने चबाने पड़ सकते हैं। ये भी तय नहीं है कि उसे ऐसा करने का मौका मिलेगा भी या नहीं।

इस बात को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह शुरुआत से ही गंभीरता से समझ रहे हैं। इसीलिए रैलियों का दौर जारी है, जिसमें अमित शाह की अधिकांश रैलियों में बड़ी संख्या में कुर्सिया खाली मिली। जाहिर है इन कुसिर्यों पर बैठने वाले दूसरे दलों की रैलियों में बैठने चले गए। इंवेट मैनेजमेंट के उस्ताद दोनों नेताओं के कान इस बात को लेकर पूरी तरह खड़े हो गए हैं।

विपक्ष में कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा और राजद पर प्रधानमंत्री मुख्यत: कांग्रेस पर हमला कर रहे हैं, जो 81 में से महज 31 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा 43 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है। पर जेएमएम के खिलाफ मोर्चा खोलने के बजाए बीजेपी कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं, क्योंकि अगर एनआरसी, नागरिकता संसोधन कानून, अनुच्छेद 370 और राम मंदिर के सहारे भाजपा को अपनी वैतरणी पार लगानी है तो उसे राष्ट्रीय पार्टी पर निशाना साधना ही होगा।

चुनाव झारखंड का है, जहां 30 प्रतिशत से अधिक आदिवासी हैं जिनकी खनिज संपदा पर उनका कब्जा होने के बजाए अंबानी व अडानी का कब्जा है। पर इन मुद्दों को की चर्चा करने से भाजपा कतराती है, क्योंकि ये दोनों कार्पोरेट घराने भाजपा के लिए ऑक्सीजन का काम करते हैं। इसलिए ऑक्सीजन प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय मुद्दों के सिलेंडरों से फेफड़े फुलाने की कोशिशे हो रही हैं।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वहां अयोध्या में भगवान राम का भव्य मंदिर बनवाने के लिए हर घर से एक ईंट और 11 रुपए मांग-मांगकर माहौल को राममय बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं। राम मंदिर के बहाने बीजेपी मतदाताओं को स्थानीय मुद्दों और पेट में धधकती आग को भुलाकर राम के नाम पर वोट देने के लिए फुसलाने में लगी है।

बीजेपी के लिए विपक्षियों से ज्यादा अपने ही मुसीबत बने हुए हैं। सत्ता में उनके साथ रही आजसू और राम बिलास पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी और बिहार में उनके साथ सत्ता का सुख भोग रही जनता दल यूनाइटेड भाजपा से अलग होकर यहां चुनाव लड़ रहे हैं। जाहिर है इस अंबानी वकवायद से वोटों की बंदरबांट तो हो ही सकती है।

खुद मुख्यमंत्री रघुवर दास अब तक अपने कॅरियर का सबसे कठिन चुनाव लड़ रहे हैं। उनके खिलाफ बीजेपी के ही बागी नेता सरयू राय तथा कांग्रेस उम्मीदवार गौरव बल्लभ मैदान में हैं, जो उन्हें कड़ी चुनौती दे रहे हैं। गौरव बल्लभ तो बीबीसी को दिए गए साक्षात्कार में खुद अपनी जीत का ढिढोरा पीट चुके हैं। पर वहां के राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो असली लड़ाई दास और सरयू राय के ही बीच है।

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं, लेख उनके निजी विचार हैं)

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