Wednesday - 31 July 2024 - 3:55 AM

क्यों माथे पर इस तरह नहीं लगाया जाता तिलक

What Is Scientific Secret
हिन्दू धर्म में तिलक या टीका लगाना अनिवार्य धर्मकृत्य है। माथा चेहरे का केंद्रीय भाग होता है, जहां सबकी नजर अटकती है। उसके मध्य में तिलक लगाकर, विशेषकर स्त्रियों में, देखने वाले की दृष्टि को बांधे रखने का प्रयत्न किया जाता है।
इस भारतीय सभियता के पीछे जहाँ ऋषि मुनि थे तो वही एक साथ वैज्ञानिक भी थे, और दार्शनिक भी। इसलिए किसी भी प्रचलन की स्थापना में दोनों दृष्टियों को ध्यान में रखा गया।
तिलक हमेशा भ्रूमध्य या आज्ञाचक्र के स्थान पर लगाया जाता है। शरीर शास्त्र की दृष्टि से यह स्थान पीनियल ग्रंथि का है। प्रकाश से इसका गहरा संबंध है।
एक प्रयोग में जब किसी की आंखों पर पट्टी बांधकर, सिर को ढक दिया गया और उसकी पीनियल ग्रंथि को उद्दीप्त किया गया, तो उसे मस्तक के भीतर प्रकाश की अनुभूति हुई।

ध्यान-धारणा के समय साधक के चित्त में जो प्रकाश अवतरित होता है, उसका संबंध इस स्थूल अवयव से अवश्य है। दोनों भौंहों के बीच कुछ संवेदनशीलता होती है। यदि हम आंखें बंद करके बैठ जाएं और कोई व्यक्ति भ्रूमध्य के निकट ललाट की ओर तर्जनी उंगुली ले जाए, तो कुछ विचित्र अनुभव होगा।

यही तृतीय नेत्र की प्रतीति है। इसे अपनी उंगुली भृकुटि-मध्य लाकर भी अनुभव कर सकते हैं। इसलिए जब यहां तिलक या टीका लगाया जाता है, तो उससे आज्ञाचक्र को नियमित स्फुरण मिलती रहती है।
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