Wednesday - 10 January 2024 - 11:15 PM

देशद्रोह कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

जुबिली न्यूज डेस्क

देश की शीर्ष अदालत ने गुरुवार को राजद्रोह संबंधी ”औपनिवेशिक काल” के दंडात्मक कानून के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की। अदालत ने इस प्रावधान की वैधता को चुनौती देने वाली ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’  की याचिका समेत याचिकाओं के समूह पर केंद्र से जवाब मांगा।

अदालत ने कहा कि उसकी चिंता कानून के दुरुपयोग को लेकर है। उसने केंद्र सरकार से सवाल किया कि वह राजद्रोह पर औपनिवेशिक काल के कानून को समाप्त क्यों नहीं कर रहा।

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि उसकी मुख्य चिंता ”कानून का दुरुपयोग”  है और उसने पुराने कानूनों को निरस्त कर रहे केंद्र से सवाल किया कि वह इस प्रावधान को समाप्त क्यों नहीं कर रहा।

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अदालत ने कहा कि राजद्रोह कानून का मकसद स्वतंत्रता संग्राम को दबाना था, जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों ने महात्मा गांधी और अन्य को चुप कराने के लिए किया था। इस बीच, अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने प्रावधान की वैधता का बचाव करते हुए कहा कि राजद्रोह कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ दिशानिर्देश बनाए जा सकते हैं।

अदालत मेजर-जनरल (सेवानिवृत्त) एसजी वोम्बटकेरे की एक नई याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए (राजद्रोह) की संवैधानिक वैधता को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर अनुचित प्रतिबंध है।

मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम और छत्तीसगढ़ के कन्हैया लाल शुक्ला की याचिका पर ये नोटिस जारी किया है। इसमें बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन बताते हुए इस प्रावधान को चुनौती दी गई थी।

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खंडपीठ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860 की धारा 124-ए को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसके तहत राजद्रोह के अपराध में सजा दी जाती है। याचिका में दावा किया गया कि धारा 124-ए बोलने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(ए) के तहत प्रदान किया गया है।

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दोनों याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि वे अपनी संबंधित राज्य सरकारों एवं केंद्र सरकार पर सवाल उठा रहे हैं। सोशल मीडिया मंच फेसबुक पर उनके द्वारा की गईं टिप्पणियों एवं कार्टून साझा करने के चलते 124-ए के तहत उनके विरूद्ध एफआईआर दर्ज की गई हैं।

याचिकाकर्ताओं ने इस कानून के दुरुपयोग का आरोप भी लगाया है। याचिका में कहा गया है कि 1962 से धारा 124 ए के दुरुपयोग के मामले लगातार सामने आए हैं।

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