Tuesday - 9 January 2024 - 5:26 PM

लिपुलेख विवाद पर चीन ने क्या कहा?

  • पहली बार इस मामले में चीन ने की है टिप्पणी
  • नेपाल कैबिनेट ने 18 मई को ही नेपाल की कैबिनेट ने नया राजनीतिक मैप जारी
  • 2015 में इसको लेकर भारत और चीन के बीच शुरु हुई थी बात, तब से नेपाल कर रहा है विरोध

न्यूज डेस्क

लिपुलेख को लेकर भारत और नेपाल आमने-सामने हैं। नेपाल अपनी बात पर अड़ा हुआ है और भारत अपनी। इस बीच नेपाल सरकार कोशिश कर रही थी कि वो लिपुलेख विवाद को चीन के पास ले जाएगी, पर मंगलवार को चीन ने इस मुद्दे पर अपना रूख स्पष्ट कर दिया। चीन के इस कदम से नेपाल का धक्का लगा है।

भारत ने लिपुलेख से तिब्बत में मानसरोवर तक सड़क बनाई है और नेपाल को इस पर आपत्ति है। नेपाल का कहना है कि लिपुलेख उसका इलका है जबकि भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि उसने अपने इलाके में सड़क बनाई है।

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भारत और नेपाल के बीच इसको लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है। भारत और नेपाल के बीच लिपुलेख को लेकर पहली बार विवाद नहीं बढ़ा है। 2015 से नेपाल इसका विरोध कर रहा है।

दरअसल, ये पूरा विवाद उस समय शुरू हुआ जब आठ मई को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वीडियो लिंक के जरिए 90 किलोमीटर लंबी इस सड़क का उद्घाटन किया था। उन्होंने पिथौरागढ़ से वाहनों के पहले काफिले को रवाना किया था।

भारत सरकार का कहना है कि इस सड़क से सीमावर्ती गांव पहली बार सड़क मार्ग से जुड़ेंगे।

इसके बाद ही नेपाल ने इस पर आपत्ति जतायी। नेपाल सरकार ने कहा था कि वह इस जमीन से अपना अधिकार नहीं छोड़ सकते हैं, हां वह भारत को लीज पर जमीन दे सकते हैं।

नेपाल की आपत्ति पर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने पिछले दिनों कहा था, “हाल ही में पिथौरागढ़ जिले में जिस सड़क का उद्घाटन हुआ है, वो पूरी तरह से भारतीय क्षेत्र में पड़ता है। कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्री इसी सड़क से जाते हैं।”

चीन ने इस विवाद से खुद को किया अलग

मंगलवार को एक पत्रकार ने रोजाना होने वाले प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस मामले को लेकर चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता शाओ लिजिआन से सवाल पूछा था।

पत्रकार ने सवाल किया, “भारत ने कालापानी इलाके में एक सड़क बनाई है और इस इलाके को लेकर नेपाल-भारत में विवाद है। नेपाल की सरकार ने कड़ा विरोध दर्ज कराया है और कहा है कि भारत नेपाल की संप्रभुता का उल्लंघन कर रहा है। पिछले सप्ताह भारत के सेना प्रमुख ने मनोहर पर्रिकर इंस्टिट्यूट ऑफ डिफेंस एंड एनलिसिस की ओर आयोजित प्रोग्राम में कहा था कि पूरे विवाद में कोई तीसरी ताकत शामिल है। आपका इस पर क्या कहना है?”

इस सवाल के जवाब में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि “कालापानी का मुद्दा भारत और नेपाल का द्विपक्षीय मुद्दा है। हमें उम्मीद है कि यह विवाद दोनों देश आपसी बातचीत के जरिए सुलझा लेंगे और कोई भी पक्ष एकतरफा कार्रवाई करने से बचेगा ताकि मामला और जटिल ना हो। “

वहीं नेपाली अखबार काठमांडू पोस्ट के मुताबिक नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भी मंगलवार को संसद में कहा था कि वो लिपुलेख मुद्दे को सुलझाने के लिए चीन से बातचीत कर रहे हैं।

पीएम ओली ने संसद में कहा, “हमारी सरकार के प्रतिनिधि चीन से बात कर रहे हैं। चीन ने कहा है कि लिपुलेख से मानसरोवर तक की सड़क भारत-चीन के बीच ट्रेड और पर्यटन रूट के लिए है और इससे लिपुलेख के ट्राई-जंक्शन स्थिति में कोई बदलाव नहीं आएगा।”

भारत और चीन के बीच इसे लेकर 2015 में ही बात शुरू हो गई थी। नेपाल तब से ही इसका विरोध कर रहा है।

भारत के हजारों तीर्थयात्री कैलाश मानसरोवर कई रूट से जाते हैं लेकिन लिपुलेख रूट को छोटा बताया जा रहा है। इस रूट से जाने पर समय कम लगेगा।

इस मामले में चीन ने अब तक चुप्पी साधे था, पर मंगलवार को उसने पहली बार इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया दी।

नेपाल ने जारी किया नया राजनीतिक मैप

नेपाल कैबिनेट ने 18 मई को ही नेपाल की कैबिनेट ने नया राजनीतिक मैप जारी किया था जिसमें लिम्युधुरा, कालापानी और लिपुलेख को नेपाल में बताया गया है, जबकि इन तीनों इलाकों को भारत अपना क्षेत्र बताता है।

19 मई को नेपाली पीएम ने संसद में लिपुलेख के बारे में कहा है, “हम अपनी जमीन वापस लाएंगे। कालापानी, लिपुलेख और लिम्पुयधुरा तीनों नेपाल के हैं और हम इसे वापस लाएंगे। मैं इस मुद्दे पर भारत से बातचीत शुरू करूंगा।”

प्रधानमंत्री ओली ने सत्ता में आने के बाद से कई बार भारत से सीमा विवाद पर बातचीत करने की कोशिश की है लेकिन अभी दोनों देशों के बीच बातचीत शुरू नहीं हो पाई है। नेपाली मीडिया के मुताबिक नेपाल के पूर्व मंत्री और राजनयिक भेख बहादुर थापा ने कहा है कि नेपाल के नए नक्शे से मामला और जटिल होगा। उन्होंने पूछा है कि अब इसके बाद क्या होगा?

थापा ने कहा है, “प्रधानमंत्री ओली क्या करना चाहते हैं इस पर कुछ भी स्पष्टता नहीं है। अब दोनों देशों के पास अलग-अलग नक्शे हैं लेकिन इससे कोई समाधान नहीं निकलने जा रहा। ”

नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टरई ने ट्वीट कर कहा है, “मैंने संसद में प्रधानमंत्री ओली को तीन घंटे सुना लेकिन मुझे कुछ भी ऐसा नहीं दिखा जिससे लगे कि वो चीजों का ठोस समाधान मुहैया करा रहे है।”

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