Wednesday - 10 January 2024 - 8:16 PM

काम की गारंटी हो तो रुक भी सकते हैं प्रवासी मजदूर

कृष्णमोहन झा
लाक डाउन की  घोषणा के बाद जो लाखों प्रवासी मजदूर करीब डेढ़ माह से दूसरे राज्यों में फंसे हुए थे अब उनकी घर वापसी का रास्ता साफ हो गया है |केंद्र सरकार ने लाक डाउन 2-0 की अवधि समाप्त होने के दो दिन पूर्व ही विशेष श्रमिक ट्रेनों से इन प्रवासी मजदूरों को उनके गृह राज्य भेजना शुरू कर दिया है |
केंद्र ने  फिलहाल 6 विशेष श्रमिक ट्रेन प्रारंभ की हैं जो दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी  मजदूरों की विशाल संख्या को देखते हुए काफी कम प्रतीत होती हैं लेकिन यह निसंदेह संतोष का विषय है कि अब यह सिलसिला आगे भी चलता रहेगा | गौर तलब है कि कई राज्यों की सरकारें प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के लिए विशेष ट्रेनें चलाने की मांग कर रही थीं और यह मांग करने वाली सरकारों में उन राज्यों की सरकारें भी  शामिल थीं जहां भाजपा के पास सत्ता की बागडोर है |महाराष्ट्र,कर्नाटक, बिहार, राजस्थान और पंजाब आदि राज्यों की सरकारें प्रवासी मजदूरों की वापसी के लिए विशेष ट्रेन चलाने की मांग करने वाली सरकारों में अग्रणी थीं |
दरअसल प्रवासी मजदूरों को वापस लाने की मांग  ने तब जोर पकडा जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ कोटा में फंसे अपने राज्य के छात्रों को बसों के जरिए वापस लाने में सफल हो गए, | इसके बाद दूसरे कई राज्यों की सरकारों ने कोटा से अपने राज्यों के छात्रों को वापस लाने के  लिए बसें भेजना शुरू कर दिया लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने यह कहते हुए अपने राज्य के छात्रों को कोटा से  बुलाने से इंकार कर दिया कि इसके लिए केंद्र सरकार को स्पष्ट  गाइड लाइन जारी करना चाहिए |
नीतिश कुमार के सख्त रुख के लिए राज्य के प्रमुख विपक्षी दल राजद ने उनकी तीखी आलोचना भी की परंतु उसका कोई असर नीतिश कुमार पर नहीं हुआ लेकिन देश के कई राज्यों की सरकारों ने प्रवासी मजदूरों की. गृह राज्य वापसी. के  लिए केंद्र सरकार से विशेष ट्रेन चलाने की मांग प्रारंभ कर दी |
कारण चाहे जो रहा हो परन्तु प्रवासी मजदूरों को उनके गृह राज्य वापस भेजने के लिए केंद्र सरकार ने विशेष ट्रेन  चलाने का जो फैसला किया है  उससे लाखों बेबस बेसहारा प्रवासी मजदूरों के चेहरे पर चमक दिखाई देने लगी है  |पिछले डेढ़ माह  के दौरान केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा उनसे बार बार की गई ये अपीलें भी उनकी व्याकुलता को कम नहीं कर पा रही थी कि वे  जहां हैं वहीं रहें|
प्रवासी मजदूरों को वापस उनके घर भेजने के लिए केंद्र सरकार ने विशेष ट्रेनें चलाने का अभी जो फैसला किया है उस पर भी विवाद शुरू हो गया है |अब केंद्र सरकार की आलोचना इस आधार पर की जा रही है कि सरकार को यह फैसला उसी समय करना चाहिए था जब देश में संपूर्ण लाक डाउन की घोषणा की गई थी | उस समय देश में कोरोना वायरस के संक्रमण की शुरुआत हुई थी इसलिए संक्रमितों की संख्या भी बहुत ही कम थी सरकार  अगर उसी समय प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के लिए विशेष ट्रेनेंचला देती तो संक्रमण फैलने का खतरा आज की तुलना में काफी कम होता |
जो लोग या राजनीतिक दल ऐसे विवाद खड़े कर रहे हैं वे यह समझने के लिए आखिर तैयार क्यों नहीं हैं कि उस समय कोरोना वायरस के संक्रमण का फैलाव रोकना सबसे बड़ी चुनौती थी इसलिए उस समय इस चुनौती से निपटने के उपायों पर ध्यान केन्द्रित करना जरूरी था और वही सरकार ने किया | शायद सरकार को उस समय यह अनुमान  नहीं रहा होगा कि आगे चल कर देश में कोरोना संक्रमितो की संख्या पैंतीस हजार के ऊपर पहुंच जाएगी |अगर सरकार लाक डाउन की शुरुआत के समय ही प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के इंतजामों में जुट जाती तो कोरोनावायरस का संक्रमण अधिक तेजी से बढने का खतरा था |इसलिए अब यह विवाद बेमानी प्रतीत होता है कि प्रवासी मजदूरों को इतने दिनों तक क्यों मुश्किल में डाले रखा |
इन लाखों लोगों के घर लौटने का इंतजाम करना एक जटिल प्रक्रिया है | केंद्रसरकार  अभी जितनी संख्या में श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन चला रही है वह प्रवासी मजदूरों की विशाल संख्या की तुलना में इतनी कम है कि प्रवासी मजदूरों की घर वापसी में लंबा वक्त लग जाएगा, इसीलिए अभी सरकार पर और ट्रेनें चलाने के लिए दबाव बढ़ेगा | अगर सरकार  पर्याप्त संख्या में विशेष ट्रेनें चलाने के लिए तैयार हो भी जाती है तो उसके बाद जब ये प्रवासी मजदूर जब अपने राज्य में पहुँचेंगे तब एक साथ इतने लोगों को क्वेरेन्टीन में रखना भी कठिन चुनौती होगा |
बहुत से मजदूरों के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वे अपनी टिकट खुद खरीद सकें इसलिए इनके रेल किराए के भुगतान की जिम्मेदारी राज्यसरकारें अपने ऊपर ओढ रही हैं. | दरअसल इस संबंध में एक विस्तृत गाइड लाइन जारी किए जाने की आवश्यकता है ताकि प्रवासी मजदूरों की घर वापसी बिना किसी झंझट के संपन्न हो सके |
जो  प्रवासी मजदूर अपने घर वापस जा रहे हैं उनमें  से बहुतों का यह कहना है कि वे अब अपने निवास स्थान की जगह के आसपास ही रोजी रोटी का कोई साधन तलाश लेंगे लेकिन वापस नहीं आएंगे लेकिन क्या यह सच नहीं है कि इन प्रवासी मजदूरों के लिए उनके मूल राज्य में ही रोजगार के साधन उपलब्ध होते तो वे रोजगार की तलाश में अपने घर से मीलों दूर जाने का  विकल्प नहीं चुनते |
सवाल यह उठता है कि किसी राज्य में लाखों की संख्या में घर लौटने वाले इन मजदूरों को क्या अपने गृह राज्य में ऐसा रोजगार मिल पाएगा कि वे अपना और अपने परिवार का पेट अच्छी तरह पाल सकें |हो सकता है कि अभी कोरोना वायरस के संक्रमण की भयावहता से घबरा कर उ्न्होंने अपने घर लौट जाने का विकल्प चुन लिया हो परंतु इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि कोरोना संकट पर काबू पा लिए जाने के बाद परिस्थितियां सामान्य होते ही उनके मन में पुनः वापस अपने काम के स्थान पर लौटने की उत्कंठा जाग उठे |
कुछ समय बाद बहुत से मजदूरों के मन में यह विचार आ सकता है कि परिवार के आर्थिक सामाजिक  उन्नयन के लिए घर से मीलों दूर जाकर  बेहतर नौकरी करने में ही भलाई है |दरअसल आज आवश्यकता इस बात की है कि गृह राज्य लौटने वाले प्रवासी मजदूरों को यह भरोसा दिलाया जाए कि कुछ दिन बाद हालात बेहतर होते ही  सभी उद्योग धंधे पहले की तरह चलने लगेंगे और फिर उनकी जिंदगी की गाडी एक बार फिर से पटरी पर आ जाएगी | हरियाणा, तेलंगाना और कर्नाटक आदि राज्यों की सरकारें इस दिशा में पहल करने के लिए आगे आई हैं | दरअसल हकीकत यह है कि अगर मजदूरों को काम चाहिए तो उद्योग जगत को भी काम काज शुरू करने के मजदूर चाहिए | दोनों एक दूसरे के पूरक हैं |
इसलिए अब यह सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे प्रवासी मजदूरों को घर९ वापसी के अपने फैसले पर पुनर्विचार के राजी करें |इसके लिए निराश हताश मजदूरों के दिल जीतने की जरूरत है |देखना यह है कि इस दिशा में किसी पक्ष से कोई ईमानदार कोशिश होती है अथवा नहीं लेकिन सर्वोत्तम विकल्प यही है |

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और डिजियाना समूह के राजनीतिक संपादक हैं)

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