Friday - 2 August 2024 - 9:55 AM

मजदूरों का इतना अपमान क्यों ?

सुरेंद्र दुबे

आज पूरे देश में कोरोना के योद्धाओं का अस्पतालों पर विमान से फूल बरसा कर सम्मान किया जा रहा है। सुबह दिल्ली में पुलिस मेमोरियल पर श्रद्धानजालि अर्पित कर इस कार्यक्रम की शुरआत की गई। रात को जहाजों पर लाइटिंग कर डाक्टरों व अन्य मेडिकल स्टाफ को सम्मानित कर उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन किया जायेगा। मेडिकल स्टाफ के पास पीपीई जैसी किट भी ठीक से उपलब्ध नहीं है फिर भी डॉक्टर उपचार में लगे है इसलिए वे हर सम्मान के हकदार है।

हालांकि आज का सम्मान पिछले सम्मान से बहुत फीका है। जब पहले लॉक डाउन पर हमने तालियां और थालियां बजाई थी तो पूरा देश इनके सम्मान से रोमांचित हो उठा था। दूसरे लॉक डाउन पर हमने दिये व मोमबत्तियां जलाई तो हमारा प्यार रोशनी में नहा कर पूरे देश में जगमगा उठा। इस बार का सम्मान कुछ जगहों तक सीमित था इसलिए वो आनंद नही आया। सम्मान तो हुआ पर हर घर तक आवाज़ नही पहुंची।

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हम आज देश के उन श्रम वीरों की बात करना चाहते है जिन्हें हम प्रवासी मज़दूर बता कर पूरे देश में मैराथन दौड़ करा रहे है। इन मजदूरों की व्यथा समझे बगैर हमने लॉक डाउन कर दिया और 40 दिन तक ये मजदूर भूखे प्यासे अपने घरों को जाने के लिए तरसते रहै। भिखमंगों की तरह लाइन लगा कर किसी तरह अपना पेट भरते रहे। प्रवासी मज़दूरों की संख्या 50 करोड़ के आस पास है। जाहिर है इतने लोगों को सरकार बैठकर खाना नही खिला सकती। स्वयं सेवी संगठनों, धर्मार्थ संगठनों व गुरद्वारों ने अपनी झोलियाँ न खोल दी होती तो दृश्य बहुत भयावह होता।

सरकार व मजदूर दोनों अड़ गये। सरकार कह रही थी जहां हो वही रहो। मजदूर कह रहे थे घर जाएंगे। मज़दूरों के घरों में 56 प्रकार के व्यंजन इंतज़ार नहीं कर रहे थे। वे भूखे थे। सरकार के रवैये से बुरी तरह आहत थे। ऐसे में उन्हें अपने परिवार याद आये। संकट में हर एक को घर परिवार ही याद आता है। एक मई को जब सरकार ने इन लोगों के लिये रेलें चलाने का निर्णय लिया तो लगा कि सरकार को इन कर्मवीरों की याद तो आई जो अपना खून पसीना बहा कर राष्ट्र निर्माण में लगातार योगदान देते हैं।

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पर कहानी तो अब शुरू होती है। रेलवे ने राज्यों पर इन मज़दूरों का किराया भुगतान करने का दायित्व सौंप दिया। राज्यों ने कह दिया कि उनकी हालात तो पहले से ही खराब है। यानि कि केंद्र व राज्य दोनों सरकारों ने ठेंगा दिखा दिया। ऐसा मज़दूर दिवस तो कभी नहीं मनां।जिस देश में 68 हज़ार करोड़ रुपये नीरव मोदी व चौकसी जैसे 50 जालसाजों के माफ कर दिये जाते है वहां इस महामारी में भी सरकार मज़दूरों से किराया वसूलने की निरलज़ता दिखा रही है।

अब ये मजदूर अपने घरों की ओर अपने किराए पर लौट रहे है। अपने गृह राज्य पहुंच कर 14 दिन के लिये कोरेंटाइन किये जाएंगे। हो सकता है सरकार वहां इनसे खाने के पैसे मांगे। करोड़ों मजदूर हैं जिन्हें घर पहुंचते पहुंचते मई का महीना समाप्त होंने वाला होगा। इसके बाद मज़दूर महीना दो महीना आराम करेगा। सरकार अर्थ व्यवस्था को पटरी प्रर लाने के।लिए काम शुरू कराना चाहती है। मज़दूर तुरंत काम पर लौटने से रहा। फिर काम पर कौन जायेगा और मशीन कौन चलायेगा। हो सकता है कि सरकार को तब लगे कि मज़दूरों का इतना अपमान नहीं करना चाहिए था।

(लेखक स्‍वंतत्र पत्रकार हैं, लेख उनका निजी विचार है)

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