Sunday - 7 January 2024 - 7:28 AM

किसकी शह पर स्वास्थ्य विभाग में होती रही फर्जी नियुक्तियां?

जुबिली न्यूज ब्यूरो 

कस्तूरबा विद्यालयों में फर्जी नियुक्तियों का मामला जिस वक्त तूल पकड़े हुए हैं उसी वक्त यूपी के स्वास्थ महकमे में भी फर्जी नियुक्तियों के बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है।

बीते 11 जून को स्वास्थ्य विभाग का मिर्जापुर जिले का सीएमओ कार्यालय अचानक सुर्खियों में आ गया जब सतर्कता अधिष्ठान की संस्तुति पर वर्षों से जमे 64 फर्जी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। नियुक्तियों में हुई धांधलियों के बीच स्वास्थ्य विभाग में फर्जीकर्मियों की इस खबर ने और हलचल मचा दी है।

क्या है पूरा मामला ?  

मिर्जापुर  जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय में लगातार अवैध नियुक्तियों की शिकायत हो रही थी लेकिन फिर भी फर्जी नियुक्ति करने वाले बाबुओं और अधिकारियों में इसका कोई खौफ नहीं था और इस रैकेट ने 64 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की फर्जी नियुक्ति कर डाली।जब इस पर बवाल मचा तब शासन ने इसकी जांच सतर्कता विभाग को सौंप दी।

शासन के पत्र संख्या 51(1)/2010 टीसी 10 दिसंबर 2010 के संदर्भ में उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान ने जांच में सीएमओ मिर्जापुर के अधीनस्थ वर्ष 1996 से अप्रैल 1998 तक 64 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की नियुक्ति को अवैध पाया और इसी को आधार मान कर शासन ने इन 64 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की नियुक्ति को निरस्त करने का निर्णय सुना दिया। इस बाबत निदेशक(प्रशासन) ने सीएमओ को नियमानुसार कारवाई करने का आदेश दे दिया और आखिरकार सीएमओ मिर्जापुर ने  दिनांक 11जून 2020 को  तत्काल प्रभाव से इनकी सेवाएं समाप्त कर दीं।

अभियोग पंजीकृत कराये जाने की भी है संस्तुति

विशेष निदेशक उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान के  14 नवंबर 2017  को भेजे गए अर्ध शासकीय पत्र संख्या- स.अ./अनु-2-खु.-135/2011 व पुलिस अधीक्षक,उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान के  दिनांक 14 नवम्बर 2017 व पुलिस अधीक्षक की अनुपूरक जांच आख्या में संस्तुति की गई कि तत्कालीन सीएमओ डॉ पीसी श्रीवास्तव व 64 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के विरुद्ध अभियोग पंजीकृत कराया जाए।

4 महीने तक नहीं की गई कोई कार्यवाही

शासन ने 64 कर्मियों की बर्खास्तगी के लिए 30 जनवरी 2020 को ही निदेशक(प्रशासन) को आदेश दे दिया था लेकिन निदेशक प्रशासन ने  इसे 4 महीने लटकाए रखने के बाद 10 जून को सीएमओ मिर्जापुर को कारवाई के लिए पत्र लिखा। इस बीच 4 महीने में इन फर्जी कर्मचारियों को लगभग  एक करोड़ से अधिक भुगतान भी कर दिया गया।

बता दें कि चतुर्थ श्रेणी के इन कर्मचारियों को जिनमें कुछ अब लिपिक वर्ग में भी प्रमोशन पा गए हैं इन्हें कम से कम औसतन प्रतिमाह लगभग 40,000 का वेतन प्राप्त होता है, 4 महीने नौकरी और कर देने के कारण इनको एक करोड़ से अधिक का वेतन का भुगतान किया गया। अब इस भुगतान की जिम्मेदारी कौन लेगा  और इस मामले का दोष किसके सर यह भी एक सवाल है।

हर संवर्ग में हुई अवैध नियुक्तियां

सूत्रों की मानें तो मिर्जापुर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय में फार्मेसिस्ट,एएनएम,एक्सरे टेक्नीशियन के संवर्ग में स्थानांतरण दिखाकर दर्जनों अवैध नियुक्तियां करायी गयीं। मामला प्रकाश में आने पर अभियोग भी पंजीकृत कराया गया लेकिन कारवाई सिफर रही।

कुछ ऐसे ही अवैध नियुक्तियों वालों के नाम जुबली पोस्ट की जानकारी में हैं। जय नारायण,शैलेंद्र कुमार शिवनारायण, दिलराम यादव,राजशेखर, दिनेश सिंह कैलाश चंद्र बतौर फार्मेसिस्ट नियुक्त रहे और एक्स-रे टेक्निशियन के रूप में शिवशंकरइसके अलावा एएनएम के पद पर राजकुमारी देवी, रीना जायसवाल, सरोज देवी,नीलू,जानकी,संगीता, शकुंतला देवी के नाम प्रमुख हैं। इन अवैध नियुक्तियों की संख्या सैकड़ों में बतायी जा रही है।

फर्जी नियुक्तियों के सूत्रधार बाबुओं पर महानिदेशालय रहता है मेहरबान ?

यह रैकेट कितना सशक्त है इस बात का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि 2009 में अपर निदेशक,मिर्जापुर मण्डल ने इस संबंध में महानिदेशक को पत्र लिखकर बताया था कि पूरा जनपद फर्जी नियुक्ति करने वाले बाबुओं के रैकेट से त्रस्त है लेकिन महानिदेशालय में इनका इतना प्रभाव है कि हर बार यही बाबू यहां चले आते हैं।

सूत्रों का कहना है कि मिर्जापुर के चिकित्सालय में तैनात एक लिपिक और एक फर्मासिस्ट को तो दोष सिद्ध होने पर जेल भी भेजा गया था लेकिन महानिदेशालय ने फिर उसी जगह पर इन्हें नियुक्त भी कर दिया।

यूपी सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ लगातार भ्रष्टाचार के प्रति जीरो तलारेंस की नीति पर कामे हैं मगर विभागीय षड्यंत्रकारी इसे सफल नहीं होने दे रहे। मामला फिलहाल निदेशक प्रशासन  के पाले में है कि वे इस मामले में आगे जांच कराती हैं या फिर इस मामले को यही रोक दिया जाता है।

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