Saturday - 20 January 2024 - 10:55 AM

गर्मी का कहर : महिला मछली विक्रेताओं की आय पर संकट

जुबिली न्यूज डेस्क

तपती गर्मी का असर अब लोगों के रोजगार पर पड़ता दिख रहा है। देश के अधिकांश राज्यों में गर्मी कहर बरपा रही है। मुंबई में तपती गर्मी की वजह से महिला मछली विक्रेताओं की परेशानी बढ़ गई है।

इस कठोर मौसम का असर मुंबई की 40 हजार महिला मछली विक्रेताओं पर भी देखने को मिल रहा है। दरअसल मौसम की मार की वजह से कम मछली पकड़ी जा रही है जिसकी वजह से मछली की कीमत बढ़ गई है।

पॉम्फ्रेट जैसी मछली की कीमत पिछले एक पखवाड़े में तीन गुना बढ़ गई है। यह मछली 1500 रुपए किलो बिक रही है।

मछली की कीमत बढ़ जाने की वजह से ग्राहक इससे दूरी बना रहे हैं। ऊंची कीमतों की वजह से मछली देखकर आगे बढ़ जा रहे हैं।

मछली बिक्रेता सरिता पाटिल मुंबई के अचानक बढ़ते तापमान को कम मछली पकड़े जाने के लिए जिम्मेदार मानती हैं। वे तर्क देती हैं कि अनिश्चित मौसम के कारण उनकी गिरती आय के लिए उन्हें मुआवजा दिया जाना चाहिए।

पाटिल तर्क देते हुए कहती हैं- तूफान के कारण मछुआरों की नावों को नुकसान पहुंचने के बाद सरकारी सहायता मिलती है, जबकि किसानों को सूखे और बाढ़ से फसल के नुकसान के लिए सहायता मिलती है।

वह आगे कहती हैं, ” पहले महिलाएं (यहां) अपनी कमाई पर 10 बच्चों की परवरिश कर सकती थीं। अब हमारे पास पैसे नहीं हैं। मेरी मां हमें स्कूल नहीं भेज सकती थी लेकिन उन्होंने हमें मछली पकडऩा सिखाया ताकि हम आत्मनिर्भर बन सकें। अब हम क्या करें अगर समुद्र में मछली नहीं हैं?”

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मौसम विभाग के अनुसार मुंबई में मार्च में गंभीर हीटवेव की स्थिति दर्ज की गई, जिसमें तापमान सामान्य से कम से कम 10 दिनों में 6-7 डिग्री सेल्सियस अधिक था।

महिला विक्रेताओं पर असर

मछली पकडऩे की मात्रा पर इन जलवायु परिवर्तनों का असर अब मुंबई की महिला मछली विक्रेताओं पर पड़ रहा है। वे पीढिय़ों  से इस कारोबार से जुड़ी हैं। उन्हें आर्थिक रूप से स्वतंत्र माना जाता रहा है।

देश के कई हिस्सों में पिछले महीने की गर्मी रिकॉर्ड स्तर पर थी। हाल के दिनों में महिला मछली विक्रेताओं के सामने कई नई चुनौतियां आईं हैं, जैसे कि ऑनलाइन सीफूड डिलीवरी ऐप्स का बाजार में आना और चक्रवातों के बीच मछली पकडऩे के कम दिनों का होना भी शामिल है।

राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड (एनएफडीबी) के आंकड़ों से पता चलता है कि केंद्र सरकार मछुआरों को मृत्यु और विकलांगता के लिए बीमा देती है, जिसमें अब तक लगभग 2.8 लाख लोग कवर किए जा चुके हैं।

मछली श्रमिक संघों का कहना है कि अनिश्चित मौसम से होने वाले नुकसान के खिलाफ भी इसी तरह के बीमे की जरूरत है।

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एनएफडीबी द्वारा संकलित डेटा के अनुसार पिछले दो दशकों में अरब सागर के ऊपर चक्रवातों में 52 फीसदी की वृद्धि हुई, जो समुद्र की सतह के तापमान में 1.2-1.4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के कारण है।

पाटिल कहती हैं, “समुद्र हमारा खेत है और हम भी जलवायु परिवर्तन के पीडि़त हैं।”

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में मत्स्य पालन और संबंधित गतिविधियों में लगभग 2.8 करोड़ कर्मचारी हैं। मछली पकडऩे के बाद की सभी गतिविधियों का 70 फीसदी महिलाओं द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

मुंबई में कोली समुदाय की अनुमानित चालीस हजार महिला मछली विक्रेता हैं, जो शहर की मूल निवासी हैं। वे मछली व्यापारियों से स्टॉक खरीदती हैं, फिर उसे छांटती हैं और पैक करने के बाद बाजार में बेचती हैं।

साल 2020 में भारत के समुद्रों से पकड़ी गईं कुछ मछली लगभग 3.7 मिलियन टन थी, जो कि 2012 में 3.2 मिलियन टन मछली से कहीं अधिक थीं।

महाराष्ट्र मछलीमार कृति समिति के देवेंद्र दामोदर टंडेल कहते हैं कि उनकी समिति पिछले महीने के लू के कारण हुए नुकसान का आकलन कर रही है. टंडेल ने कहा कि चक्रवात आने पर उन्हें एकमात्र मुआवजा मछली के लिए भंडारण बॉक्स मिलता है. वे पूछते हैं “इससे क्या उद्देश्य पूरा होगा?”

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